कोरबा: ऊर्जाधानी में इन दिनों कुत्ते खतरनाक पर्वो वायरस के संक्रमण से जूझ रहे हैं. फिर चाहे वह स्ट्रीट डॉग हों, या फिर पालतू सभी तरह के डॉग संक्रमण में आकर खून की उल्टी और दस्त कर रहे हैं.
विडंबना यह है कि पशुपालन विभाग, नगर निगम के पास इसे रोकने के पर्याप्त इंतजाम मौजूद नहीं है. जिसके कारण स्ट्रीट डॉग्स की तादात में तो कमी आई ही है. इसके साथ ही साथ पालतू कुत्ते पालने का शौक रखने वाले लोग बेहद परेशान हैं.
15 माह से कम उम्र के डॉग चपेट में
पार्वो वायरस अमूमन मौसम बदलने के दौरान कुत्तों में पनपता है. जानकार बताते हैं कि इससे ग्रसित 90% कुत्ते रिकवर नहीं हो पाते, जिससे उनकी मौत हो जाती है.संक्रमण आते ही पालतू कुत्ते हों या फिर स्ट्रीट डॉग. खाना-पीना त्याग देते हैं, वह पानी तक नहीं पी सकते. लगातार खून की उल्टी और दस्त होने लगते हैं. अलग-अलग मामलों में 2 से 10 दिन तक तड़पने के बाद उनकी मौत हो जाती है. इस बीच यदि कारगर इलाज उन्हें उपलब्ध हो गया तो ही उनकी जान बच पाती है. ऐसे अवसर भी बेहद काम आते हैं.पार्वो वायरस की चपेट में 15 माह से कम उम्र तक के डॉग अधिक चपेट में आते हैं. जबकि वयस्क कुत्तों के इस वायरस की चपेट में आने की संभावना बेहद कम रहती है.
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ड्रिप चढ़ाना ही एकमात्र इलाज
इस बीमारी से लड़ने के लिए कुत्तों में ड्रिप लगाकर बोतल के जरिए ग्लूकोस और अन्य दवाओं को शरीर में पहुंचाना पड़ता है. पार्वो के चपेट में आते ही कुत्तों की अंतड़ी के भीतर की झिल्ली में छाले पड़ जाते हैं, जिससे वह कुछ भी खा-पी नहीं सकते. ड्रिप की सुविधा केवल जिला मुख्यालय स्थित पशु चिकित्सालयों में है. वहां तक पशुपालक पहुंच नहीं पाते. वहीं पशु चिकित्सकों की संख्या भी कम है. सरकारी चिकित्सक लोगों के घर नहीं जाते हैं और लोग पशुओं को चिकित्सालय तक ले जा नहीं पाते.
तेजी से घट रही स्ट्रीट डॉग्स की संख्या
पार्वो वायरस के प्रकोप के कारण इन दिनों सड़कों पर स्ट्रीट डॉग की संख्या तेजी से घटी है. अमूमन स्ट्रीट डॉग्स के जो झुंड सड़कों पर दिखते थे, वह लगभग नदारद हो चुके हैं. कुत्तों में यह भीषण संक्रमण फैला हुआ है. जिसके कारण जो विदेशी नस्ल के कुत्तों का व्यवसाय हुआ करता था. वह भी फिलहाल बंद है.
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विभाग नहीं लगाता मल्टीवायरल का टीका
कुत्तों में प्रमुख रूप से 2 तरह के टीकाकरण होते हैं, जिनमें रेबीज के बारे में सभी को जानकारी है. इसे इंसानों को भी लगाया जाता है और कुत्तों में भी इसे नियमित अंतराल पर लगवाना होता है. जबकि दूसरा टीका पार्वो, केनाइन, डिस्टेंपर जैसे कुछ संक्रमण को रोकने के लिए लगाया जाता है.
इस तरह के वायरस केवल कुत्तों में ही पाए जाते हैं. इंसानी शरीर पर इनका असर नहीं होता. लेकिन शासन स्तर पर केवल रेबीज के टीकाकरण का प्रावधान है. जबकि मल्टीवायरल टीके का कोई भी प्रावधान नहीं है. पालतू कुत्तों का शौक रखने वाले लोग निजी तौर पर खरीद कर इसे जरूर अपने कुत्तों को लगाते हैं, लेकिन वायरस का संक्रमण तेज हो तो कभी-कभी टीका भी काम नहीं आता.