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ये है छत्तीसगढ़ का क्राइम फ्री गांव, 100 सालों में दर्ज नहीं हुआ एक भी अपराध

कोरबा के फुलझर गांव ने गांधी जी के सत्य और अहिंसा के आदर्श को वास्तव में साकार कर दिखाया है. यहां के ग्रामीण और पुलिस रिकॉर्ड पर यकीन करें तो गांव के लोगों ने 140 साल में कभी भी थाने की दहलीज पर कदम नहीं रखा है. ये गांव पूरे राज्य के लिए एक मिसाल है.

क्राइम फ्री गांव
क्राइम फ्री गांव
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Published : Jan 27, 2020, 3:56 PM IST

कोरबा: समय बदल रहा है, गांव बदल रहे हैं और बदलते समय के साथ आपराधिक गतिविधियां भी बढ़ रही हैं. बढ़ता आपराधिक ग्राफ जहां एक तरफ राज्य सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन गया है, वहीं प्रदेश में एक ऐसा गांव भी है जहां कलयुग में 'रामराज' स्थापित है. इस गांव में तकरीबन 140 साल से कोई अपराध नहीं हुआ. हम बात कर रहे हैं कोरबा जिला मुख्यालय के अंतिम छोर पर स्थित ग्राम पंचायत फरसवानी के आश्रित गांव फुलझर की.

छत्तीसगढ़ का क्राइम फ्री गांव फुलझर

मिसाल है ये गांव
फुलझर गांव ने गांधी जी के सत्य और अहिंसा के आदर्श को वास्तव में साकार कर दिखाया है. यहां के ग्रामीण और पुलिस रिकॉर्ड पर यकीन करें तो गांव के लोगों ने 140 साल में कभी भी थाने की दहलीज पर कदम नहीं रखा है. ये गांव पूरे राज्य के लिए एक मिसाल है. इस गांव को शांति और अहिंसा के लिए कई पुरस्कार मिल चुके हैं.

फुलझर की कुल जनसंख्या 400 है, इसमें 2 वार्ड आते हैं. यहां के लोग आपस में मिलजुल कर रहते हैं. बताया जाता है कि एक समय ऐसा भी था जब इस गांव के आस-पास कच्ची शराब का जखीरा बहा करता था, बावजूद इसके इस गांव की शांति पर कोई आंच नहीं आई.

कोरबा जिले का गठन 1998 में हुआ था, इसके पहले फुलझर चांपा थाने के अंतर्गत आता था. चांपा थाने के रिकॉर्ड में भी इस गांव के नाम पर एक भी एफआईआर दर्ज नहीं है. इसके बाद ये गांव उरगा थाना क्षेत्र के अंतर्गत आया है. इसके बाद भी इस गांव में एक भी एफआईआर दर्ज नहीं हुआ है.

रमन सिंह ने दिया था पुरस्कार
गांव को अपराध मुक्त बनाए रखने के लिये तत्कालीन भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने 2011 में गांव को सम्मानित करते हुए 51 हजार रुपये की नकद राशि प्रदान की थी. इस राशि से गांववालों ने मिलकर हसदेव नदी के किनारे शिव मंदिर का निर्माण कराया था. इस गांव को कई सरकारी योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन के साथ ही साक्षरता के क्षेत्र में अहम योगदान देने के लिए भी पुरस्कृत किया जा चुका है. वहीं कई सामाजिक संगठनों ने भी गांव को सम्मानित किया है.

ग्रामीणों को एकजुट करने में रामलाल पटेल की अहम भूमिका
गांव के पटेल 80 वर्षीय रामलाल पटेल की गांव को एकजुट करने में अहम भूमिका रही है. रामलाल पांचवीं तक चांपा में पढ़े हैं. तब गांव के कई लोग अनपढ़ थे. 1975 में रामलाल को गांव का पटेल चुना गया था. तब से लेकर अब तक कोई भी अपराध गांव में दर्ज नहीं हुआ है. वे बताते है कि गांव के लोग आज भी बड़ों का कहना मानते हैं. जो भी छोटे-मोटे विवाद गांव में होते हैं, उन्हें स्थानीय स्तर पर ही सुलझा लिया जाता है. अब तक ऐसा कोई भी बड़ा मामला गांव में सामने नहीं है आया है, जिससे की थाने में जाने की जरूरत पड़े.

बताया जाता है कि गांव में पंच पद के लिए यूं तो कई गांव के लोग नामांकन भरते हैं, लेकिन जीत फुलझर के निवासी की ही होती है. गांव के लोग हसदेव नदी के किनारे सब्जी की खेती कर अपना जीवन यापन करते हैं.

कोरबा: समय बदल रहा है, गांव बदल रहे हैं और बदलते समय के साथ आपराधिक गतिविधियां भी बढ़ रही हैं. बढ़ता आपराधिक ग्राफ जहां एक तरफ राज्य सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन गया है, वहीं प्रदेश में एक ऐसा गांव भी है जहां कलयुग में 'रामराज' स्थापित है. इस गांव में तकरीबन 140 साल से कोई अपराध नहीं हुआ. हम बात कर रहे हैं कोरबा जिला मुख्यालय के अंतिम छोर पर स्थित ग्राम पंचायत फरसवानी के आश्रित गांव फुलझर की.

छत्तीसगढ़ का क्राइम फ्री गांव फुलझर

मिसाल है ये गांव
फुलझर गांव ने गांधी जी के सत्य और अहिंसा के आदर्श को वास्तव में साकार कर दिखाया है. यहां के ग्रामीण और पुलिस रिकॉर्ड पर यकीन करें तो गांव के लोगों ने 140 साल में कभी भी थाने की दहलीज पर कदम नहीं रखा है. ये गांव पूरे राज्य के लिए एक मिसाल है. इस गांव को शांति और अहिंसा के लिए कई पुरस्कार मिल चुके हैं.

फुलझर की कुल जनसंख्या 400 है, इसमें 2 वार्ड आते हैं. यहां के लोग आपस में मिलजुल कर रहते हैं. बताया जाता है कि एक समय ऐसा भी था जब इस गांव के आस-पास कच्ची शराब का जखीरा बहा करता था, बावजूद इसके इस गांव की शांति पर कोई आंच नहीं आई.

कोरबा जिले का गठन 1998 में हुआ था, इसके पहले फुलझर चांपा थाने के अंतर्गत आता था. चांपा थाने के रिकॉर्ड में भी इस गांव के नाम पर एक भी एफआईआर दर्ज नहीं है. इसके बाद ये गांव उरगा थाना क्षेत्र के अंतर्गत आया है. इसके बाद भी इस गांव में एक भी एफआईआर दर्ज नहीं हुआ है.

रमन सिंह ने दिया था पुरस्कार
गांव को अपराध मुक्त बनाए रखने के लिये तत्कालीन भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने 2011 में गांव को सम्मानित करते हुए 51 हजार रुपये की नकद राशि प्रदान की थी. इस राशि से गांववालों ने मिलकर हसदेव नदी के किनारे शिव मंदिर का निर्माण कराया था. इस गांव को कई सरकारी योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन के साथ ही साक्षरता के क्षेत्र में अहम योगदान देने के लिए भी पुरस्कृत किया जा चुका है. वहीं कई सामाजिक संगठनों ने भी गांव को सम्मानित किया है.

ग्रामीणों को एकजुट करने में रामलाल पटेल की अहम भूमिका
गांव के पटेल 80 वर्षीय रामलाल पटेल की गांव को एकजुट करने में अहम भूमिका रही है. रामलाल पांचवीं तक चांपा में पढ़े हैं. तब गांव के कई लोग अनपढ़ थे. 1975 में रामलाल को गांव का पटेल चुना गया था. तब से लेकर अब तक कोई भी अपराध गांव में दर्ज नहीं हुआ है. वे बताते है कि गांव के लोग आज भी बड़ों का कहना मानते हैं. जो भी छोटे-मोटे विवाद गांव में होते हैं, उन्हें स्थानीय स्तर पर ही सुलझा लिया जाता है. अब तक ऐसा कोई भी बड़ा मामला गांव में सामने नहीं है आया है, जिससे की थाने में जाने की जरूरत पड़े.

बताया जाता है कि गांव में पंच पद के लिए यूं तो कई गांव के लोग नामांकन भरते हैं, लेकिन जीत फुलझर के निवासी की ही होती है. गांव के लोग हसदेव नदी के किनारे सब्जी की खेती कर अपना जीवन यापन करते हैं.

Intro:कोरबा। 100 साल बीत गए लेकिन इस गांव की शांति आज तक भांग नहीं हुई। बदलते जमाने के साथ अपराध के नए-नए तरीके इजाद किए जा रहे हैं। वहीं कोरबा में एक गांव ऐसा है, जहां एक शताब्दी बीत जाने के बाद भी आज तक एक भी एफआईआर थाने में दर्ज नहीं कराई गई है।
यह संभव हुआ है गांव के बड़े बुजुर्गों व सामान्य लोगों की आपसी समझ बूझ के कारण। गांधी जी के सत्य व अहिंसा के आदर्श को वास्तव में इस गांव ने साकार कर दिखाया है।


Body:हम बात कर रहे हैं कोरबा जिला मुख्यालय के अंतिम छोर पर स्थित ग्राम पंचायत फरसवानी के आश्रित गांव फुलझर की।फुलझर की कुल जनसंख्या 400 है। जहां 2 वार्ड आते हैं, यहां के ग्रामीण व पुलिस रिकॉर्ड पर यकीन करें तो गांव के 140 साल के रिकॉर्ड के मुताबिक गांव के लोगों ने कभी भी थाने की दहलीज पर कदम नहीं रखा है। कोरबा जिले का गठन 1998 में हुआ था, इसके पहले फुलझर चांपा थाने के अंतर्गत आता था। चांपा थाने के रिकॉर्ड में भी इस गांव के नाम पर एक भी एफआईआर दर्ज नहीं है ।इसके बाद जब से यह गांव उरगा थाना क्षेत्र के अंतर्गत आया है, तब से भी इस गांव से एक भी एफआईआर थाने में दर्ज नहीं हुई। एक समय ऐसा भी था जब इस गांव के आसपास कच्ची शराब का जखीरा बहा करता था। लेकिन फिर भी इस गांव के शांति पर कोई आंच नहीं आई। शराब बनाने और बेचने पर पूरी तरह से प्रतिबंध भी है।

रमन सिंह दिया था पुरस्कार
गांव को अपराध मुक्त बनाए रखने के लिये तत्कालीन भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने 2011 में गांव को सम्मानित करते हुए 51 हजार रुपये की नगद राशि प्रदान की थी। इस राशि से गांव वालों ने मिलकर हसदेव नदी के किनारे शिव मंदिर का निर्माण कर लिया था। कई सरकारी योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन के साथ ही साक्षरता के क्षेत्र में अहम योगदान के लिए भी गांव को पुरस्कृत किया जा चुका है। कई सामाजिक संगठनों ने भी गांव को सम्मानित किया है।



Conclusion:पटेल हैं सूत्रधार
गांव के पटेल 80 वर्षीय रामलाल पटेल की गांव को एकजुट करने में अहम भूमिका रही है। रामलाल पांचवी तक चांपा में पढे हैं। तब गांव के कई लोग अनपढ़ थे। पटेल कहते हैं कि उनका जन्म 1947 में हुआ था, और 1975 में उन्हें गांव का पटेल चुना गया था। तब से लेकर अब तक कोई भी अपराध गांव में दर्ज नहीं हुआ है। पटेल कहते हैं कि गांव के लोग आज भी बड़ों का कहना मानते हैं। जो भी छिटपुट विवाद गांव में होते हैं। उन्हें स्थानीय स्तर पर ही सुलझा लिया जाता है। अब तक ऐसा कोई भी बड़ा मामला गांव में सामने आया ही नहीं है। जिससे कि थाने में जाने की आवश्यकता महसूस हो।
गांव में पंच पद के लिए यूं तो अन्य गांव के लोग भी नामांकन भर देते हैं। लेकिन जीत फुलझर के निवासी की ही होती है। हसदेव नदी के किनारे सब्जी की खेती कर गांव वाले जीवन यापन करते हैं। जो कि इनकी जीविकोपार्जन का प्रमुख जरिया है।

बाइट
रामलाल पटेल, गांव के पटेल खाकी रंग की स्वेटर पहने हुए
रामवती, ग्रामीण, फुलझर साड़ी पहने हुए
शिव कुमार सोनी,पोस्टमैन

नोट : सीएसपी की बाइट रिपोर्टर ऐप से भेजी गई है।


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