कोरबा: समय बदल रहा है, गांव बदल रहे हैं और बदलते समय के साथ आपराधिक गतिविधियां भी बढ़ रही हैं. बढ़ता आपराधिक ग्राफ जहां एक तरफ राज्य सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन गया है, वहीं प्रदेश में एक ऐसा गांव भी है जहां कलयुग में 'रामराज' स्थापित है. इस गांव में तकरीबन 140 साल से कोई अपराध नहीं हुआ. हम बात कर रहे हैं कोरबा जिला मुख्यालय के अंतिम छोर पर स्थित ग्राम पंचायत फरसवानी के आश्रित गांव फुलझर की.
मिसाल है ये गांव
फुलझर गांव ने गांधी जी के सत्य और अहिंसा के आदर्श को वास्तव में साकार कर दिखाया है. यहां के ग्रामीण और पुलिस रिकॉर्ड पर यकीन करें तो गांव के लोगों ने 140 साल में कभी भी थाने की दहलीज पर कदम नहीं रखा है. ये गांव पूरे राज्य के लिए एक मिसाल है. इस गांव को शांति और अहिंसा के लिए कई पुरस्कार मिल चुके हैं.
फुलझर की कुल जनसंख्या 400 है, इसमें 2 वार्ड आते हैं. यहां के लोग आपस में मिलजुल कर रहते हैं. बताया जाता है कि एक समय ऐसा भी था जब इस गांव के आस-पास कच्ची शराब का जखीरा बहा करता था, बावजूद इसके इस गांव की शांति पर कोई आंच नहीं आई.
कोरबा जिले का गठन 1998 में हुआ था, इसके पहले फुलझर चांपा थाने के अंतर्गत आता था. चांपा थाने के रिकॉर्ड में भी इस गांव के नाम पर एक भी एफआईआर दर्ज नहीं है. इसके बाद ये गांव उरगा थाना क्षेत्र के अंतर्गत आया है. इसके बाद भी इस गांव में एक भी एफआईआर दर्ज नहीं हुआ है.
रमन सिंह ने दिया था पुरस्कार
गांव को अपराध मुक्त बनाए रखने के लिये तत्कालीन भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने 2011 में गांव को सम्मानित करते हुए 51 हजार रुपये की नकद राशि प्रदान की थी. इस राशि से गांववालों ने मिलकर हसदेव नदी के किनारे शिव मंदिर का निर्माण कराया था. इस गांव को कई सरकारी योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन के साथ ही साक्षरता के क्षेत्र में अहम योगदान देने के लिए भी पुरस्कृत किया जा चुका है. वहीं कई सामाजिक संगठनों ने भी गांव को सम्मानित किया है.
ग्रामीणों को एकजुट करने में रामलाल पटेल की अहम भूमिका
गांव के पटेल 80 वर्षीय रामलाल पटेल की गांव को एकजुट करने में अहम भूमिका रही है. रामलाल पांचवीं तक चांपा में पढ़े हैं. तब गांव के कई लोग अनपढ़ थे. 1975 में रामलाल को गांव का पटेल चुना गया था. तब से लेकर अब तक कोई भी अपराध गांव में दर्ज नहीं हुआ है. वे बताते है कि गांव के लोग आज भी बड़ों का कहना मानते हैं. जो भी छोटे-मोटे विवाद गांव में होते हैं, उन्हें स्थानीय स्तर पर ही सुलझा लिया जाता है. अब तक ऐसा कोई भी बड़ा मामला गांव में सामने नहीं है आया है, जिससे की थाने में जाने की जरूरत पड़े.
बताया जाता है कि गांव में पंच पद के लिए यूं तो कई गांव के लोग नामांकन भरते हैं, लेकिन जीत फुलझर के निवासी की ही होती है. गांव के लोग हसदेव नदी के किनारे सब्जी की खेती कर अपना जीवन यापन करते हैं.