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मुर्गा लड़ाई की आड़ में सजता है शराब और जुए का बाजार

कोंडागांव में ग्रामीण अपनी पुरानी परंपरा और संस्कृति को आज भी निभाते आ रहे हैं. यहां ग्रामीण मुर्गा लड़ाई का खेल खेलते हैं, लेकिन इसकी आड़ में शराब और जुए का बाजार भी सजता है.

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Published : Jan 8, 2020, 8:12 PM IST

market of liquor gambling is prostrated
मुर्गा लड़ाई की आड़ में जुए-शराब का बाजार

बस्तर संभाग आदिवासी बहुल क्षेत्र है. यहां ग्रामीण कई प्रथाओं, परंपराओं और संस्कृतियों को सदियों से निभाते आ रहे हैं. इन्हीं परंपराओं में से एक है 'मुर्गा लड़ाई' का खेल. यहां अधिकतर साप्ताहिक बाजारों और मेलों में मुर्गा लड़ाई खेल आदिवासी खेलते हैं. इसमें दो पक्षों के लोग अपने-अपने मुर्गा को लड़ने के लिए आमने-सामने छोड़ देते हैं और दर्शक दीर्घा में बैठे लोग इस "मुर्गा लड़ाई" का आनंद लेते हैं.

मुर्गा लड़ाई की आड़ में सजता है शराब और जुए का बाजार

सट्टा-जुआ और शराब का सजता है बाजार

लेकिन अब इस पारंपरिक खेल की आड़ में सट्टा और जुए का खेल भी चलता है. इतना ही नहीं यहां खुलेआम शराब बेची और परोसी भी जाती है.

अपनी मेहनत की कमाई बर्बाद कर रहे ग्रामीण

इस बाजार में भोले-भाले ग्रामीण अपनी मेहनत की कमाई लुटा रहे हैं. वहीं बाजार में आने वाली महिलाओं और बच्चों पर भी इसका असर पड़ता है. लेकिन शासन-प्रशासन इस मामले में खामोश हैं.

बस्तर संभाग आदिवासी बहुल क्षेत्र है. यहां ग्रामीण कई प्रथाओं, परंपराओं और संस्कृतियों को सदियों से निभाते आ रहे हैं. इन्हीं परंपराओं में से एक है 'मुर्गा लड़ाई' का खेल. यहां अधिकतर साप्ताहिक बाजारों और मेलों में मुर्गा लड़ाई खेल आदिवासी खेलते हैं. इसमें दो पक्षों के लोग अपने-अपने मुर्गा को लड़ने के लिए आमने-सामने छोड़ देते हैं और दर्शक दीर्घा में बैठे लोग इस "मुर्गा लड़ाई" का आनंद लेते हैं.

मुर्गा लड़ाई की आड़ में सजता है शराब और जुए का बाजार

सट्टा-जुआ और शराब का सजता है बाजार

लेकिन अब इस पारंपरिक खेल की आड़ में सट्टा और जुए का खेल भी चलता है. इतना ही नहीं यहां खुलेआम शराब बेची और परोसी भी जाती है.

अपनी मेहनत की कमाई बर्बाद कर रहे ग्रामीण

इस बाजार में भोले-भाले ग्रामीण अपनी मेहनत की कमाई लुटा रहे हैं. वहीं बाजार में आने वाली महिलाओं और बच्चों पर भी इसका असर पड़ता है. लेकिन शासन-प्रशासन इस मामले में खामोश हैं.

Intro:मुर्गा लड़ाई के बाज़ार में ग्रामीण लुटाते हैं अपनी गाढ़ी कमाई.......


Body:बस्तर संभाग आदिवासी बहुल क्षेत्र है ग्रामीण आदिवासी आज भी अपनी पुरानी परंपरा और संस्कृति को जीते हैं, ऐसी कई प्रथाओं, परंपराओं व संस्कृतियों को आदिवासी सदियों से निभाते आ रहे हैं, इन्हीं परंपराओं-संस्कृतियों में से एक है आदिवासियों द्वारा खेला जाने वाला "मुर्गा लड़ाई" का खेल।

बस्तर संभाग में अधिकतर साप्ताहिक बाजारों ,मेलों में यह मुर्गा लड़ाई खेल ग्रामीणों-आदिवासियों द्वारा खेला जाता है, इसमें दो पक्षों के लोग अपने-अपने मुर्गा को लड़ने के लिए आमने-सामने छोड़ देते हैं और दर्शक दीर्घा में बैठे लोग इस "मुर्गा लड़ाई" का आनंद लेते हैं। यह आदिवासियों का मनोरंजन के लिए खेला जाने वाला एक खेल है जो अक्सर वे साप्ताहिक बाजार मेले आदि में खेलते हैं।


Conclusion:समय बदलने के साथ ही आदिवासियों के इस पारंपरिक खेल का भी विस्तार हो गया,अब इसे ज्यादातर लोग सट्टा-जुआ के लिए खेलते हैं, जिले के कई साप्ताहिक बाजारों में यह दृश्य आम हो गया है , "मुर्गा लड़ाई" बाजार की आड़ में सट्टा जुए ने अपने पैर पसार लिए हैं।
आज जिले के हर साप्ताहिक बाजार में मुर्गा लड़ाई का एक अलग बाजार सजा दिखाई देगा और यहां लोग अपनी गाढ़ी कमाई लुटाते नजर आएंगे यहां दूर-दूर से लोग सट्टा जुआ खेलने आते हैं लगभग जिले के हर साप्ताहिक बाजार में लोग "मुर्गा लड़ाई"की आड़ में सट्टा जुआ खेलते नजर आ जाएंगे।
यही नहीं "मुर्गा लड़ाई" बाजार केवल सट्टा-जुआ का ही केंद्र नहीं बल्कि यहां शराब खोरी भी जमकर होती है, खुलेआम शराब बेची व परोसी जाती है वहीं शासन प्रशासन मूकदर्शक बने बैठे हैं,
मुर्गा लड़ाई की आड़ में सट्टा-जुआ, शराब का बाजार खुलेआम सजाया जाता है जहां आपको छोटे-छोटे बच्चे भी नजर आ जाएंगे जो इन सभी चीजों की ट्रेनिंग ले रहे हैं।
मुर्गा लड़ाई बाजार के सट्टा-जुआ, शराब ने भोले-भाले आदिवासियों व ग्रामीणों को इस कदर अपनी गिरफ्त में ले लिया है कि वे अपनी गाढ़ी कमाई यहां लुटाते नजर आते हैं।
कई नौजवानों का तो यह रोजगार बन गया है वह जिले के हर छोटे-बड़े साप्ताहिक बाजारों में जाकर मुर्गा लड़ाई बाजार में सट्टा-जुआ ,शराब खोरी करते नजर आते हैं। ताश की पत्तियों, सट्टा-जुआ खेलने पर पुलिस की पैनी नजर रहती है, पकड़े जाने का खतरा भी होता है पर यहां खुलेआम खेले जाने पर कोई खतरा नहीं होता है जिससे इनके हौसले बुलंद हो रहे हैं।

जरूरत है कि शासन-प्रशासन के जिम्मेदार लोग इस ओर ध्यान दें और "मुर्गा लड़ाई" बाजार के इस खेल को खेल ही बने रहने दें नहीं तो सट्टा-जुआ और शराब खोरी के दंश से ग्रामीण आदिवासी उबर नहीं पाएंगे और बर्बादी के कगार पर जाते चले जाएंगे।
यूं तो शासन-प्रशासन द्वारा ग्रामीणों के लिए कई जनकल्याणकारी कार्य ,योजनाएं चलाई जा रही हैं पर इस ओर भी ध्यान देने की जरूरत है ताकि शासन-प्रशासन की कल्याणकारी योजनाओं का पूरा लाभ ग्रामीण आदिवासियों को मिल सके।

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