कोंडागांव: जिले के सबसे बड़े ग्राम पंचायत बड़ेकनेरा के मारीगुड़ा-जूनापारा के लोग आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. इस इलाके में न तो सड़क की कोई सुविधा है और न ही पीने के लिए साफ पानी. यहां निवासरत ग्रामीण वर्षों से झिरिया का पानी पीते आ रहे हैं. यहां की स्थिति गर्मी और बारिश के दिनों में और ज्यादा खराब हो जाती है.
मारीगुड़ा-जूनापारा में सुविधाओं का अभाव
15 से 20 घर, लगभग 100 की आबादी वाले कोंडागांव जिले के सबसे बड़े ग्राम पंचायत बड़ेकनेरा के मारीगुड़ा-जूनापारा के लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. ऊंचे और पठारी क्षेत्र में बसाहट की वजह से बरसात में जूनापारा एक टापू में तब्दील हो जाता है. हालांकि बड़ेकनेरा ग्राम पंचायत में विकास की बयार केवल कागजों में ही नजर आती है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का भी बड़ेकनेरा ग्राम पंचायत में आगमन हो चुका है. पर जूनापारा वार्ड के लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. पीसीसी चीफ मोहन मरकाम का विधानसभा क्षेत्र है और उनका प्रवास आए दिन यहां होता रहता है. बावजूद इसके यहां की सूरत और तस्वीर अब तक नहीं बदली. जबकि यह क्षेत्र ना ही नक्सलग्रस्त है और ना ही पहुंच विहीन. फिर भी 15 से 20 घरों के लोगों को बुनियादी सुविधाएं ना मिलना चिंता का विषय है.
झिरिया से पानी पीने को मजबूर ग्रामीण
मारीगुड़ा-जूना पारा में रहने वाले ग्रामीणों को रोजाना 1 किलोमीटर झिरिया तक पानी लेने जाना होता है. जहां एक गड्ढे से निकल रहे पानी का उपयोग पीने के साथ निस्तारी आदि के लिए ग्रामीण करते आ रहे हैं. ग्रामीणों ने अपनी इस मांग को लेकर कई दफे कलेक्टर जनदर्शन के साथ ही स्थानीय जनप्रतिनिधियों को अपनी पीड़ा तो सुनाई. पर इनकी पीड़ा और मांगों की सभी ने अनसुना कर दिया. ग्रामीणों की माने तो सड़क नहीं होगी तो एक बार चल जाएगा, लेकिन पीने के साफ पानी की व्यवस्था होना बहुत जरूरी है, जिससे साल भर साफ और स्वच्छ पानी मिल सके. ग्रामीणों ने बताया कि हम लोगों को रोजाना पीने के पानी के लिए भटकना पड़ता है. लेकिन हमें पानी झिरिया से ही मिल पाता है, जिसे हम पीते हैं. यदि हैंडपंप या नल कनेक्शन की व्यवस्था करवा दिया जाए तो हम लोगों को काफी सुविधा होगी.
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गर्मी और बारिश के मौसम में बढ़ जाती है दिक्कतें
ग्रामीणों ने बताया कि क्षेत्र में गर्मी और बारिश के दिनों में लोगों की दिक्कते और ज्यादा बढ़ जाती है. गंभीर बीमारी फैलने का डर भी हमेशा बना रहता है. दो साल पहले इसी इलाके में डायरिया से पीड़ित मरीजों की अचानक संख्या बढ़ने से हरकत में आए स्वास्थ्य विभाग ने यहां सप्ताह भर तक अपना अस्थाई शिविर लगाकर लोगों की जांच करने में लगा रहा. हालांकि इस दौरान तीन लोगों की मौत भी हो गई थी. मामले की गंभीरता को देखते हुए ग्राम पंचायत ने अपने स्तर पर जो बन सका वो तो किया ही. वहीं जिला प्रशासन की टीम भी लगातार मौके पर पहुंच लोगों से मिलकर
उनका कुशलक्षेम पूछती रही. दो साल पहले जो दंश यहां के रहवासियों ने झेला है वह अब नहीं देखना चाहते हैं.
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आंगनबाड़ी की सुविधा नहीं
ग्रामीणों ने बताया कि यहां केवल साफ पानी पीने के लिए ही समस्या नहीं है, बल्कि सड़क की व्यवस्था के लिए भी उन्हें जूझना पड़ रहा है. क्षेत्र में आंगनबाड़ी नहीं है. बच्चों को 1 किलोमीटर दूर आंगनबाड़ी में पढ़ाने ले जाना पड़ता है. वहीं सड़क भी नहीं है. बरसात में टापू की स्थिति बन जाने से आंगनबाड़ी भी नहीं ले जा पाते हैं.शासन-प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वे क्षेत्र के हर अंतिम व्यक्ति तक बुनियादी सुविधाएं पहुंचा सके. पर जिले के सबसे बड़े ग्राम पंचायत मारीगुड़ा- जूनापारा के लोगों की व्यथा है कि न ही यह क्षेत्र नक्सलग्रस्त है और ना ही पहुंच विहीन है फिर भी वे बुनियादी सुविधाओं के लिए आज भी तरस रहे हैं.
साफ और स्वच्छ जल की मांग
क्षेत्र में बोर की व्यवस्था और एक हैंडपंप कुछ वर्ष पूर्व लगाया गया था. कुछ दिनों तक तो इसमें पानी ठीक आया. पर लाल पानी जो पीने योग्य नहीं है वह इसमें से आने लगा. जिसे देखते हुए पीएचई विभाग ने इसे रेड मार्क लगाते हुए प्रतिबंधित कर दिया. उसके बाद से ग्रामीणों ने कई दफे क्षेत्र में बेहतर पेयजल की व्यवस्था के लिए गुहार लगाई जो कि आज तक लंबित है. अब जनदर्शन कलेक्टर में भी इस हेतु आवेदन दिया गया है. बहरहाल यहां समस्याओं का अंबार है और सुध लेने वाला कोई नहीं है.