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इस रियासती कचहरी की बैरकें बनीं शौचालय!

साल 1932 में राजा कोमलदेव ने कांकेर में रियासती कचहरी बनवाई थी. यह कचहरी खुद में कई सुखद क्षणों को समेटे हुए है, लेकिन शासन-प्रशासन की उपेक्षा के कारण अब यह खंडहर बन चुकी है.

princely court
रियासती कचहरी
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Published : Sep 9, 2021, 7:19 PM IST

Updated : Sep 10, 2021, 9:15 AM IST

कांकेर : कांकेर का इतिहास (History of Kanker) काफी समृद्धशाली और सुखद (prosperous and pleasant) रहा है, लेकिन वर्तमान में इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं. अगर आज भी शासन-प्रशासन इसकी सुध ले और नियमित देखरेख कराए तो यहां की छटा देखते ही बनेगी. कांकेर के रियासतकालीन समय में साल 1932 में बनी रियासती कचहरी (princely court) के तोरण द्वार की भव्यता आज भी देखते बनती है. इस कचहरी का यह द्वार खुद इसकी महत्ता और इसके स्वर्णिम इतिहास का बखान रहा है. लेकिन दुखद है कि यह विरासत, जो भावी पीढ़ी की धरोहर है सरकारी उपेक्षा की शिकार होने के कारण धीरे-धीरे लुप्त होने की कगार पर है. यह किसी एक धरोहर की कहानी नहीं है, बल्कि कमोबेश यहां की सभी धरोहरों की यही स्थिति है. इसी कचहरी परिसर में कभी जिला सत्र न्यायालय भी लगा करता था. आरोपी व विचाराधीन कैदियों को जिन बैरकों में पेशी होने तक रखा जाता था, उनके बैरकों का उपयोग अब शौच व प्रसाधन के लिए होने लगा है.

रियासती कचहरी

खिसक रही है भवन के सामने हिस्से की ईंट

साल 1932 में बनी यह कचहरी भवन खंडहर हो चुकी है. भवन के सामने के हिस्से की ईंट खिसक रही है. कई जगह दीवार व छतें कमजोर हो चुकी हैं. भवन की दीवारों में पौधे भी उग आए हैं. इन पेड़-पौधों की जड़ें भवन की दीवारों को कमजोर कर रही हैं. नब्बे के दशक का बना बार रूम भी इसी कचहरी परिसर में है, जो अब खंडहर में तब्दील हो चुकी है. भवन की दीवारों में आई दरारें खुद अपने स्वर्णिम इतिहास पर सिसक रही हैं.

1932 में राजा कोमलदेव ने बनवाई थी कचहरी

मांझापारा स्थित कचहरी कार्यालय साल 1932 में राजा कोमलदेव ने बनवाया था. पहले यहां राज दरबार लगता था. न्यायिक फैसले यहीं होते थे. बाद में यहां पर कई शासकीय कार्यालय संचालित होना शुरू हो गए. इसी कचहरी भवन में जिला बनने के बाद साल 1998 में कलेक्ट्रेट लगना शुरू हुआ. नया भवन बनने तक कलेक्ट्रेट यहीं लगता था.

नए भवन बनते गए, उपेक्षित होती गई कचहरी

नगरपालिका कार्यालय भी पहले यहीं लगता था. कार्यालयों के नए भवन बनते गए तथा धीरे-धीरे यह भवन उपेक्षा का शिकार होने लगा. कचहरी के प्रवेश द्वार पर ही भवन में कई जगह दीवारें पूरी तरह से दरक गईं हैं. भवन से ईंट उखड़कर निकलनी शुरू हो गई हैं. फिर भी मरम्मत की ओर शासन-प्रशासन कोई ध्यान नहीं दे रहा है.

अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा

रियासतकालीन कई धरोहरों को खुद में सहेजे इस शहर में कई ऐसी इमारतें हैं, जिनका निर्माण आजादी के पहले हुआ. शहर के मध्य में साल 1932 में बनाई गई यह रियासती कचहरी अब अपनी जर्जर अवस्था में है. जिला प्रशासन और लोक निर्माण विभाग की देखरेख के बाद भी इसके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. बात मुख्य इस भवन के द्वार की हो या अंदर के कमरों की छत की, सभी जीर्ण-शीर्ण हो चुकी हैं. छतों से गिरते प्लास्टर से रोज किसी बड़े हादसे की आशंका बनी रहती है.

यहां अब भी होता है तहसील कार्यालय का संचालन

वरिष्ठ अधिवक्ता नवीश चतुर्वेदी ने बताया कि शहर के मध्य स्थित इस पुरानी कचहरी में समय के साथ हमेशा भीड़ रही. यहां अब भी तहसील कार्यालय का संचालन होता है. यहां पर आज भी कोर्ट बार रूम है. कांकेर की इस ऐतिहासिक इमारत को सहेजने की जरूरत है, लेकिन धीरे-धीरे भवन धराशायी होने की कगार पर है. जर्जर होती इस कचहरी के रख-रखाव का अधिकांश हिस्सा लोक निर्माण विभाग के जिम्मे है. इमारत के कुछ हिस्सों में जिला प्रशासन का नियंत्रण है.

कांकेर : कांकेर का इतिहास (History of Kanker) काफी समृद्धशाली और सुखद (prosperous and pleasant) रहा है, लेकिन वर्तमान में इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं. अगर आज भी शासन-प्रशासन इसकी सुध ले और नियमित देखरेख कराए तो यहां की छटा देखते ही बनेगी. कांकेर के रियासतकालीन समय में साल 1932 में बनी रियासती कचहरी (princely court) के तोरण द्वार की भव्यता आज भी देखते बनती है. इस कचहरी का यह द्वार खुद इसकी महत्ता और इसके स्वर्णिम इतिहास का बखान रहा है. लेकिन दुखद है कि यह विरासत, जो भावी पीढ़ी की धरोहर है सरकारी उपेक्षा की शिकार होने के कारण धीरे-धीरे लुप्त होने की कगार पर है. यह किसी एक धरोहर की कहानी नहीं है, बल्कि कमोबेश यहां की सभी धरोहरों की यही स्थिति है. इसी कचहरी परिसर में कभी जिला सत्र न्यायालय भी लगा करता था. आरोपी व विचाराधीन कैदियों को जिन बैरकों में पेशी होने तक रखा जाता था, उनके बैरकों का उपयोग अब शौच व प्रसाधन के लिए होने लगा है.

रियासती कचहरी

खिसक रही है भवन के सामने हिस्से की ईंट

साल 1932 में बनी यह कचहरी भवन खंडहर हो चुकी है. भवन के सामने के हिस्से की ईंट खिसक रही है. कई जगह दीवार व छतें कमजोर हो चुकी हैं. भवन की दीवारों में पौधे भी उग आए हैं. इन पेड़-पौधों की जड़ें भवन की दीवारों को कमजोर कर रही हैं. नब्बे के दशक का बना बार रूम भी इसी कचहरी परिसर में है, जो अब खंडहर में तब्दील हो चुकी है. भवन की दीवारों में आई दरारें खुद अपने स्वर्णिम इतिहास पर सिसक रही हैं.

1932 में राजा कोमलदेव ने बनवाई थी कचहरी

मांझापारा स्थित कचहरी कार्यालय साल 1932 में राजा कोमलदेव ने बनवाया था. पहले यहां राज दरबार लगता था. न्यायिक फैसले यहीं होते थे. बाद में यहां पर कई शासकीय कार्यालय संचालित होना शुरू हो गए. इसी कचहरी भवन में जिला बनने के बाद साल 1998 में कलेक्ट्रेट लगना शुरू हुआ. नया भवन बनने तक कलेक्ट्रेट यहीं लगता था.

नए भवन बनते गए, उपेक्षित होती गई कचहरी

नगरपालिका कार्यालय भी पहले यहीं लगता था. कार्यालयों के नए भवन बनते गए तथा धीरे-धीरे यह भवन उपेक्षा का शिकार होने लगा. कचहरी के प्रवेश द्वार पर ही भवन में कई जगह दीवारें पूरी तरह से दरक गईं हैं. भवन से ईंट उखड़कर निकलनी शुरू हो गई हैं. फिर भी मरम्मत की ओर शासन-प्रशासन कोई ध्यान नहीं दे रहा है.

अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा

रियासतकालीन कई धरोहरों को खुद में सहेजे इस शहर में कई ऐसी इमारतें हैं, जिनका निर्माण आजादी के पहले हुआ. शहर के मध्य में साल 1932 में बनाई गई यह रियासती कचहरी अब अपनी जर्जर अवस्था में है. जिला प्रशासन और लोक निर्माण विभाग की देखरेख के बाद भी इसके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. बात मुख्य इस भवन के द्वार की हो या अंदर के कमरों की छत की, सभी जीर्ण-शीर्ण हो चुकी हैं. छतों से गिरते प्लास्टर से रोज किसी बड़े हादसे की आशंका बनी रहती है.

यहां अब भी होता है तहसील कार्यालय का संचालन

वरिष्ठ अधिवक्ता नवीश चतुर्वेदी ने बताया कि शहर के मध्य स्थित इस पुरानी कचहरी में समय के साथ हमेशा भीड़ रही. यहां अब भी तहसील कार्यालय का संचालन होता है. यहां पर आज भी कोर्ट बार रूम है. कांकेर की इस ऐतिहासिक इमारत को सहेजने की जरूरत है, लेकिन धीरे-धीरे भवन धराशायी होने की कगार पर है. जर्जर होती इस कचहरी के रख-रखाव का अधिकांश हिस्सा लोक निर्माण विभाग के जिम्मे है. इमारत के कुछ हिस्सों में जिला प्रशासन का नियंत्रण है.

Last Updated : Sep 10, 2021, 9:15 AM IST
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