कांकेर: बस्तर संभाग के कांकेर जिला का ग्रामीण इलाका आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है. यहां स्वास्थ्य संबंधी समस्या होने पर मरीजों को अस्पताल पहुंचाने के लिए काफी जद्दोजहद करना पड़ता है. ग्राम पंचायत श्रीपुर का आश्रित गांव पोरियाहुर में बीते दिन विष्णु गावड़े नाम के शख्स की तबियत खराब हो गई. लेकिन अस्पताल पहुंचने की राह आसान नहीं थी. मरीज को चारपाई के सहारे 8 किलोमीटर तक पैदल लेकर जाने के बाद एम्बुलेंस मिल पाया. जिसके बाद मरीज को पखांजुर अस्पताल पहुंचाया जा सका.
एंबुलेंस तक पहुंचना भी एक चुनौती: इस क्षेत्र में मरीज को एंबुलेंस तक पहुंचा पाना भी एक बड़ी चुनौती है. विष्णु गावड़े के परिजनों ने बताया कि बीते रात तकरीबन 3 बजे विष्णु की तबियत बिगड़ गई. विष्णु को उल्टी और दस्त के साथ पेट में काफी दर्द होने लगा. ग्रामीणों ने 108 एंबुलेस को कॉल किया. एंबुलेस सुबह 8.30 बजे तक बारकोट नदी तक पहुंच गई. मरीज को एंबुलेंस तक पहुंचाने के लिए ग्रामीणों को 8 किलो मीटर तक चारपाई पर लिटाकर पैदल लाना पड़ा. 8 किलोमीटर तक चारपाई पर पैदल चलना भी आसान नहीं था, लिहाजा ग्रामीणों को पहुंचने में समय लग गया. जिससे काफी देर तक मरीज के इंतजार के बाद एंबुलेंस चला गया. काफी मिन्नत कर एम्बुलेंस को दोबारा बुलाया गया और मरीज को पखांजुर अस्पताल पहुंचाया गया.
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चारपाई खाट ही एकमात्र सहारा: कांकेर के ग्रामीण अंचलों में रह रहे आदिवासियों का एक मात्र सहारा चारपाई ही है. इसी के सहारे लोग मरीजों को अस्पताल तक पहुंचाने का काम करते हैं. खासकर गर्भवती महिलाओं को अस्पताल तक पहुंचाने के लिए लोग इस खाट का इस्तेमाल करते हैं. कई बार तो ऐसा होता है कि मरीज अस्पताल पहुंचने से पहले इलाज के अभाव में दम तोड़ देता है.
देसी जुगाड़ के सहारे इनकी जिन्दगी: इस क्षेत्र के आदिवासी देसी जुगाड़ कर खाट को कांवड़नुमा तैयार किए हैं. जिसे बीमार लोगों को एक जगह से दूसरे जगह ले जाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.अगर इन ग्रामीणों के पास देसी जुगाड़ न हो तो ये स्वास्थ्य केन्द्र तक भी न पहुंच पाएं.
सरकार के दावे नदारद: अक्सर सरकार दावा करती है कि बस्तर संभाग के ग्रामीण इलाकों में विकास हो रहा है. लेकिन ये दावे तब हवा हवाई हो जाते हैं जब चारपाई के सहारे जिंदगी हवा में लटकी नजर आती है.