कांकेर: देश एक ओर जहां डिजिटल क्रांति की ओर अग्रसर है. वहीं कांकेर जिला मुख्यालय से मात्र 25 किलोमीटर दूरी पर सुंदर पहाड़ों के बीच स्थित गांव अबूझमाड़ सा जीवन जीने को मजबूर है. इन गांव की कई पीढ़ियां सड़क की आस में अपना जीवन गुजार चुकी है. अब नौजवान सड़क, पानी का सपना संजोय सरकार की पहल का इंतजार कर रहे हैं. जिला मुख्यालय से 25 किमी दूर पहाड़ियों पर बसा गांव कलमुच्चे है. जो कांकेर विकासखंड के तुलतुली ग्राम पंचायत का आश्रित गांव है. मरका गांव उसेली ग्राम पंचायत का आश्रित गांव है. जो अंतागढ़ विकासखंड के अंतर्गत आता है. कलमुच्चे और मरका की दूरी एक किलोमीटर है.
गांव में आज तक पहुंच मार्ग नहीं है. न ही पानी का साधन है. ग्रामीण बताते हैं कि राशन दुकान ग्राम पंचायत तुलतुली में है. राशन लेने के लिए तकरीबन 10 किमी पहाड़ी रास्ता उतरकर राशन दुकान जाना पड़ता है. राशन लेकर फिर सामान लाद कर पहाड़ी का सफर तय करना पड़ता है. ग्रामीणों ने ETV भारत को बताया कि सप्ताह के मंगलवार को पूरे गांव के घरों के दो से तीन सदस्य पैदल राशन लेने नीचे तुलतुली जाते है. राशन लेकर वापस आते समय वजन के चलते बहुत दिक्कत का सामना करना पड़ता है.
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कई पीढ़ी गुजर गई नहीं देखा सड़क
कलमुच्चे और मरका के ग्रामीणों ने कई पीढियां गुजार दी. लेकिन आज तक सड़क नहीं देख पाए है. इन गांवों के लिए पहुंच मार्ग नहीं है. कलमुच्चे अगर किसी को जाना हो तो उसे कांकेर -आमाबेड़ा मार्ग में पड़ने वाला गांव गुमझिर जाना होगा. वहां से कच्ची पथरीले सड़क के रास्ते कलमुच्चे जाया जा सकता है. जिसका जिला मुख्यालय से तकरीबन 30 किमी दूरी तय करना पड़ेगा. दूसरा रास्ता घने जंगल और पहाड़ियों के रास्ते होते 10 किलोमीटर तय कर तुलतुली जाने के बाद एक पक्की सड़क नसीब होगी. जिसकी जिला मुख्यालय से दूरी तकरीब 25 किलोमीटर है. इन्ही कच्चे सड़क का ग्रामीण आवागमन के किए इस्तेमाल करते है. ऐसा नहीं है कि ग्रामीणों ने किसी से सड़क की गुहार न लगाई हो. ग्रामीण बताते हैं कि अपने गांव में सड़क निर्माण के किए राजधानी जाकर उन्होंने कई बार पूर्व मुख्यमंत्री को भी आवेदन दिया. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.
कोई बीमार पड़ जाए तो कांधे में ढो कर ले जाते है ग्रामीण
ग्रामीण बताते हैं कि गांव में अगर कोई बीमार पड़ जाए या कोई गर्भवती महिला का डिलीवरी केस आ जाए तो ग्रामीण उन्हों ढोकर 10 से 20 किलोमीटर का सफर तय करते हैं. फिर वहां से इमरजेंसी वाहन को फोन कर बुलाया जाता है. इसके बाद अस्पताल ले जाया जाता है. बरसात के दिनों में तो सबसे ज्यादा समस्या होती है. ज्यादा बरसात होने की स्थिति में सारे रास्ते बंद हो जाते हैं.
झरिया के पानी से प्यास बुझाते है ग्रामीण
कलमुच्चे और मरका के ग्रामीण आज भी झरिया का पानी पी कर प्यास बुझाते है. ग्रामीण झरिया के पानी का इस्तेमाल ना सिर्फ निस्तारी के लिए करते हैं बल्कि इसी से उनकी प्यास भी बुझती है. ग्रामीण बताते है कलमुच्चे गांव में 3 हैंड पम्प है लेकिन सभी सूख गए है. एक हैंड पम्प चालू है. लेकिन लाल पानी आता है. दो हैंड पम्पों में सोलर पैनल भी लगा है. ग्रामीणों ने बताया कि मुश्किल से दोनों गांव का झरिया का पानी उनका प्यास बुझाता है. ग्रामीण कहते है गांव में शौचालय निर्माण किया गया है लेकिन उसका इस्तेमाल करने के लिए पानी ही नहीं है.
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पानी की कमी से नहीं बन पा रहे घर
गांव में इंदिरा आवास, प्रधानमंत्री आवास के तहत ग्रामीणों का घर बनाना है. लेकिन उसे बनाने के लिए भी पानी की जरूरत है. पानी की कमी के चलते घरों का निर्माण नहीं हो पा रहा है.
झरिया को आराध्य मानते है गांव के ग्रामीण
ग्रामीणों ने बताया कि गांव की कई पीढ़ियां इसी झरिया से अपनी प्यास बुझाता है. ये उनका आराध्य देव स्थल है. गांव में शादी या फिर किसी भी तरह के सामाजिक काम में इसी झरिया का पानी उपयोग होता है. पानी लेने से पहले वे इसकी पूजा करते हैं.
बिजली के खंभे सफेद हाथी साबित हुए
ग्रामीणों ने बताया कि 2 से 3 साल पहले बिजली के खंभे लगाए गए. लाइट सप्लाई दी गई. लेकिन ये सब शो पीस है. हफ्ते में 6 दिन लाइट नहीं रहती है. सरकार का वादा है कि दिन-प्रतिदिन विकास की नई इबारत लिखी जा रही है. लेकिन इन गांव की कहानियां कुछ और ही बया कर रही है. जहां आज भी पीढ़ी दर पीढ़ी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरसना पड़ रहा है. देखना होगा कि सरकार इन ग्रामीणों की किस्मत कब बदलती है.