कांकेर: सरकारी स्कूल का नाम सुनते ही लोगों के जेहन में सबसे पहले यही ख्याल आता है कि यहां अच्छी पढ़ाई नहीं होती. बच्चे का करियर खराब हो जाएगा. बड़ा आदमी नहीं बन पाएगा. यहां पढ़ने वाले बच्चे साहब नहीं बन पाएंगे. फर्राटेदार अंग्रेजी नहीं बोल सकेंगे. डॉक्टर, इंजीनियर, आईएएस नहीं बन पाएंगे. इंफ्रास्ट्रक्चर के अभाव में जर्जर सरकारी भवन में बौद्धिक विकास रुक जाएगा.
लेकिन घबराइए मत, इन सारे मिथकों को दूर किया है प्रदेश के धूर नक्सल प्रभावित क्षेत्र के एक ऐसा सरकारी स्कूल ने जहां के बच्चों का भविष्य संवर रहा है. उनका चहुंमुखी विकास हो रहा है. बच्चे सफलता के झंडे गाड़ रहे हैं. कीर्तिमान रच रहे हैं. इस सरकारी स्कूल में साल 2012 से अब तक 10वीं बोर्ड परीक्षा में कोई भी छात्र फेल नहीं हुआ है.
चारामा ब्लॉक के गिरहोला स्कूल सरकारी स्कूल ने सही साबित किया
आपको सुनकर ताज्जुब होगा, लेकिन चौंकिए मत, यह सौ प्रतिशत सच है. ऐसा कर दिखाया है कांकेर के चारामा ब्लॉक के गिरहोला स्थित सरकारी स्कूल ने. इस विद्यालय ने तमाम मिथक को सही साबित कर दिखाया है.
10वीं में शत-प्रतिशत नतीजे
बीते 2 सालों में यह स्कूल पूरे प्रदेश में चर्चा का केंद्र बना हुआ है. इस स्कूल में साल 2012 से अब तक 10वीं कक्षा में कोई भी छात्र फेल नहीं हुआ और हर साल नतीजे शत-प्रतिशत रहते हैं. इस स्कूल की सफलता की ख्याति ऐसी फैली कि तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह भी स्कूल की तारीफ करने से खुद को नहीं रोक सके थे.
बता दें कि साल 2012 से जितने भी बच्चों ने 10वीं बोर्ड की परीक्षा दी, सभी पास हुए. साल 2016-17 में स्कूल के 36 बच्चों ने 10वीं की बोर्ड परीक्षा दी और सभी 36 बच्चे प्रथम श्रेणी में पास हुए. यही नहीं 2 बच्चों ने मेरिट सूची में भी स्थान बनाया था. इस वर्ष स्कूल में 12वीं की कक्षाएं शुरू की गई और इसमें भी स्कूल के छात्र ने मेरिट में स्थान बनाकर स्कूल का सम्मान बढ़ाया.
स्कूल प्राचार्य से ईटीवी भारत की खास बातचीत
स्कूल के प्राचार्य नासिर खान ने ETV भारत से खास बातचीत में बताया कि साल 2012 से अब तक यहां के नतीजे शत-प्रतिशत रहे हैं. पढ़ाई के दौरान बच्चे बोर ना हो, इसके लिए पढ़ाई के नए-नए तरीके अपनाए जाते हैं. गेस्ट फैकल्टी की तर्ज पर हफ्ते में एक दिन आस-पास के स्कूलों से शिक्षकों बुलाया जाता है. कंप्यूटर शिक्षा के साथ बच्चों को डिजिटल युग से जोड़े रखने के लिए इंटरनेट के जरिए उनके सारे सवालों के हल बताए जाते हैं.
संघर्ष जितना कठिन होगा, सफलता उतनी ही शानदार होगी
तय समय से रोजाना डेढ़ घंटे पहले बोर्ड कक्षा के बच्चे स्कूल पहुंच जाते हैं. हर दिन एक विषय की एक्सट्रा क्लास लगाई जाती है. यहां तक कि दिवाली-दशहरा की जिन छुट्टियों का बच्चे बेसब्री से इंतज़ार करते हैं, उनमें भी स्कूल में शिक्षक और बच्चे पढ़ाई के लिए संघर्ष करते हैं. आज इस स्कूल ने जो शानदार मुकाम बनाया है, वो इसी कठिन संघर्ष का परिणाम है.
काश, प्रदेश और देश के सभी सरकारी स्कूल गिरहोला के सरकारी स्कूल की तरह हो जाएं, तो सरकारी स्कूलों की शिक्षा पर लगा यह मिथक दूर हो जाएगा और बच्चों का भविष्य संवर जाएगा. लोग अपने बच्चों के सरकारी स्कूल में भेजने से नहीं हिचकेंगे.