कांकेर: नक्सलगढ़ "बम-बम भोले" की जयकार से गूंजायमान हो रहा है. शुक्रवार को चैत्र माह का अंतिम दिन था. इस दिन कांकेर में बंग समुदाय के लोग भगवान भोले की भक्ति में डूब जाते हैं. चैत्र माह के अंतिम दिन को ये समुदाय खास तरीके से मनाते हैं. इस दिन व्रत रख कर इस समुदाय के लोग नंगे पैर घूमते हैं.
ये है प्रथा: बंग समुदाय के लोग चैत्र माह शुरू होते ही अपने सांसारिक जीवन को त्याग कर संन्यासी जीवन धारण कर लेते हैं. चैत्र माह में ये लोग नंगे पैर घूमते हैं. तन पर केवल गेरुआ वस्त्र पहन पूरे दिन में ये लोग एक ही बार अन्न ग्रहण करते हैं. संन्यास लिए सभी भक्त, इस पूरे चैत्र माह में घर-घर जाकर शिव-पार्वती के रूप में सजधजकर विशेष धुन पर नाचते हैं. फिर भिक्षा मांगते हैं. इस तरह शिवभक्त पूरे चैत्र माह में एक भिक्षुक का जीवन जीते हैं. माह भर शिवभक्त संन्यास लिए सभी सुख-सुविधाओं से दूर किसी शिवमंदिर में ही रहते हैं.
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बैसाख से शुरू होता है नया साल: पुजारी कमलेश कहते हैं कि, चैत्र महीना बंग समुदाय के कैलेंडर का आखिरी महीना होता है. बैसाख का पहला दिन पहला बैशाख यानी कि बंगाली न्यू ईयर के तौर पर मनाया जाता है. ये दिन बंग समुदाय के लिए बेहद खास होता है. पूरे चैत्र माह इस समुदाय के लोग शाकाहार भोजन ही करते हैं.
खजूर के कांटों पर करते हैं नृत्य: चैत्र माह के अंतिम दिन भक्त नृत्य के दौरान, पेड़ से खजूर को तोड़कर नीचे खड़े भक्तों की ओर फेंकते हैं. इस खजूर को प्रसाद की तरह ग्रहण किया जाता है. इस दौरान ये भक्त खजूर के कांटों पर नाचते हैं. खजूर के पेड़ पर चढ़ने से पहले भक्त विशेष पूजा करते हैं. पेड़ पर चढ़ने वाला भक्त, पहले खजूर के पेड़ को गले लगाता है. कहते हैं कि, ऐसा करने पर आध्यात्मिक प्रेम स्थापित होता है. जिसके बाद भक्त को खजूर के पेड़ पर चढ़ने की अनुमति दी दाती है. ये पूरा माह कठिन तपस्या का माह माना जाता है.
कांकेर में ऐसे करते हैं विशेष पूजा: भगवान शिव-पार्वती के प्रति भक्तों के इस भक्ति, श्रद्धा और समर्पण के पर्व को "नील पूजा पर्व" कहा जाता हैं. इस नील पूजा पर्व के दौरान संन्यास लिए भक्त एक विशेष पूजा विधि को भी सम्पन्न कराते हैं. इस दौरान संन्यासी कांटों से भरे खजूर के पेड़ पर नंगे पैर चढ़ते है. पेड़ के शीर्ष पर पहुंचकर कांटों पर नाचते हैं. ये दृश्य काफी मनोरम होता है. पूरे दृश्य में भक्तों के मन में भोलेनाथ के प्रति आस्था झलकती है.