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कांकेर : स्वास्थ्य सुविधाओं का बुराहाल, एक डॉक्टर के भरोसे चल रहा अस्पताल

कांकेर के ग्राम आमाबेड़ा का सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बदहाली की मार झेल रहा है. इलाज के लिए लोगों को दर-दर भटकना पड़ रहा है.

एक डॉक्टर के भरोसे चल रहा अस्पताल
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Published : Sep 12, 2019, 4:08 PM IST

Updated : Sep 12, 2019, 5:46 PM IST

कांकेर : छत्तीसगढ़ सरकार बेहतर स्वास्थ्य, उपचार के साथ अस्पताल में सुविधाओं की बड़ी-बड़ी बातें करती है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. अंतागढ़ ब्लॉक के ग्राम आमाबेड़ा का सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र प्रशासन की बेरुखी की मार झेल रहा है.

कांकेर : स्वास्थ्य सुविधाओं का बुराहाल

अस्पताल डॉक्टर की कमी से जुझ रहा है. ग्रामीणों ने बताया कि इलाज कराने लोग हॉस्पिटल पहुंचते हैं, तो डॉक्टर ही गायब रहते हैं. यहां पर नर्स की व्यवस्था नहीं है. प्राथमिक उपचार के लिए भी लोगों को दर-दर भटकना पड़ता है. अस्पताल में फार्मेसिस्ट भी नहीं हैं.

पढ़ें :VIDEO: तेंदुए के शावकों की कर रहे थे तस्करी, दो गिरफ्तार

दम तोड़ रही 108 और 102 योजना

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 3 डॉक्टर के साथ 5 नर्स की जरूरत है. वहीं अस्पताल 2 नर्स के भरोसे से चल रहा है. स्वास्थ्य विभाग की लाइफ लाइन कही जाने वाली 108 और 102 योजना भी दम तोड़ रही है. गाड़ियों की हालत कबाड़ से कम नहीं है. ETV भारत से मौके पर मौजूद डॉक्टर ने भी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी की बात कही.

कांकेर : छत्तीसगढ़ सरकार बेहतर स्वास्थ्य, उपचार के साथ अस्पताल में सुविधाओं की बड़ी-बड़ी बातें करती है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. अंतागढ़ ब्लॉक के ग्राम आमाबेड़ा का सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र प्रशासन की बेरुखी की मार झेल रहा है.

कांकेर : स्वास्थ्य सुविधाओं का बुराहाल

अस्पताल डॉक्टर की कमी से जुझ रहा है. ग्रामीणों ने बताया कि इलाज कराने लोग हॉस्पिटल पहुंचते हैं, तो डॉक्टर ही गायब रहते हैं. यहां पर नर्स की व्यवस्था नहीं है. प्राथमिक उपचार के लिए भी लोगों को दर-दर भटकना पड़ता है. अस्पताल में फार्मेसिस्ट भी नहीं हैं.

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दम तोड़ रही 108 और 102 योजना

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 3 डॉक्टर के साथ 5 नर्स की जरूरत है. वहीं अस्पताल 2 नर्स के भरोसे से चल रहा है. स्वास्थ्य विभाग की लाइफ लाइन कही जाने वाली 108 और 102 योजना भी दम तोड़ रही है. गाड़ियों की हालत कबाड़ से कम नहीं है. ETV भारत से मौके पर मौजूद डॉक्टर ने भी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी की बात कही.

Intro:

एंकर.... जहाँ छत्तीसगढ़ सरकार बेहतर स्वास्थ्य बेहतर उपचार के साथ अस्पताल में बेहतर सुविधाओ की बात करती है...लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है जी हां आज हम बात कर रहे है अंतागढ़ ब्लॉक मुख्यालय से महज कुछ ही दूर ग्राम आमाबेड़ा के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की जहाँ संवेदन शील क्षेत्र होने के बाद जीवन दायनी अस्पताल लापरवाही और प्रशाशन की बेरुखी की मार झेल रहा हैBody:....जहाँ मरीज अपना इलाज कराने पहुचते तो है पर डॉ नदारद ..नर्स नदारद ...फार्मलिस्ट तो इस हॉस्पिटल में है ही नही ....स्वीपर कल्पनाओ में गोते लगा रहा है मरीज की आँखे टकटकी लगाए डाक्टर का इंतजार कर रही थी...जहाँ छुट्टी का दिन का हवाला वहाँ मौजूद एक कर्मचारी दिए जा रहे थे....लेकिन सवाल ये खड़ा होता है कि ओ,पी,डी, तो बंद ही सही। मगर आई,पी,डी, तो चौबीस घंटे खुला रहता चाहिए इसमें प्राथमिक उपचार होना होता है और वही आई,पी,डी,ही बंद हो तो आखिर प्राथमिक उपचार देगा तो देगा कौन...नर्स भी मौजूद नही....बड़ी मसक्कत के बाद नर्स पहुची. फिर एक डाक्टर को बुलाया गया जहाँ मौजूद डॉ ने हमारी टीम को जानकारी दी कि महज एक डाक्टर से ये अस्पताल संचालित है... एक डॉ उस हॉस्पिटल में और भी पदस्थ है जो कि छुट्टी में गए थे.. साथ ही नर्स की कमी का हवाला दिया गया...निश्चित रूप से कर्मचारी की मार झेल रहा हॉस्पिटल और सजा मिल रही ग्रामीण क्षेत्र के मरीजो को....सवाल ये खड़ा होता है कि बड़े बड़े मंच पर दावे तो बड़े बड़े किये जाते है...मगर जमीन कुछ और तस्वीर दिखाती है....आखिर 21वी शदी में भी लोग प्राथमिक इलाज को तरस रहे है....जहाँ 85 गांव में एक हॉस्पिटल जो अपनी ही खून के आँसू रोता नजर आता है....कुछ प्रशाशन बेपरवाह तो कुछ बचा कुछा वहाँ के डाक्टर और स्टाफ लापरवाही ...आखिर इतने मरीजो का इलाज एक डॉ से कैसे संभव है??? जिस सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 3 डॉ के साथ 5 नर्स की जरूरत बया करता है वही 2 नर्स वो भी अपनी जवाबदारी से बेपरवाह.....अगर मरीज को ततकाल उपचार की जरूरत हो तो दुआओ से बड़ी कोई उनके पास कोई दवा है ही नहीं। ....बगैर फार्मेसीस्ट के दवाइयों का वितरण आखिर कैसे। दवाई की जानकारी हो भी तो किसको।यह सवाल निश्चित ही कान खड़े कर देती है... और इस नक्सल क्षेत्र में सरकार की योजना को टटोले तो सरकार की माने तो स्वास्थ्य विभाग की लाईफ लाइन कहा जाने वाला 108..102 योजना की बात की जाए तो वो भी दम तोड़ती नजर आ रही है । गाड़ियों की स्थति कोई कबाड़ से कम नही है। चली तो ठीक नही तो भगवान मालिक...चली तो राम राम...नही चली तो मरीज को जय श्री राम...समझ से परे है। इतनी बड़ी योजना जो सरकार के लिए अपने आप में गर्व महसूस करवाती है। वहीं इस योजना को अपने ही छवी खराब करने के लिए एक कंपनी को ठेके में दे देती है जो खुद अपने आप को फायदा पहुंचाने के चक्कर में इस योजना को सुचारू रूप से नहीं चला कर सिर्फ खाना पूर्ति कर रही है।जिसकी भोगना आम जानता को भोगना पड़ता है वहीं सत्ता पे काबिज होने के लिए दावों के पुल बांधे जाते है...मगर सत्ता पाते ही ..वादे जमीन पर पटखनी खाते नजर आते है....सवाल खड़ा ये होता है बेपरवाह अधिकारियों पर कार्यवाही करेगा तो करेगा कोंन....और व्यवस्थाओं में सुधार लाएं भी तो कैसे??

Conclusion:Bite1.. संत राम कोर्राम...भवन लाल जैन...ग्रामीण

Bite2.....गौतम बघेल(डॉ)

Bite 3- सतरूपा साहू(प्रभारी तशीलदार)
Last Updated : Sep 12, 2019, 5:46 PM IST
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