जशपुर: छत्तीसगढ़ के अंतिमछोर में बसे जशपुर जिले के फरसाबहार तहसील और इससे लगे इलाकों को नागलोक के नाम से जाना जाता है. प्रदेश को ओडिशा से जोड़ने वाली स्टेट हाईवे के किनारे स्थित तपकरा और इसके आसपास के गांव में किंग कोबरा, करैत जैसे विषैल सर्प पाए जाते हैं. इस इलाके में सर्पदंश से अब तक हजारों लोगों की मौत हो चुकी है लेकिन अब साल दर साल यहां मौतों का आंकड़ा कम होता जा रहा है. उसका बड़ा कारण यह है कि यहां वन विभाग सहित प्रशासन और युवाओं की साझा पहल से जनजागरुकता अभियान भी चलाया जा रहा है. इसके साथ ही अस्पतालों में एंटी स्नेक वेनम भी पर्याप्त मात्रा में मौजूद है, जिसकी वजह से सर्पदंश से मृत्य दर में कमी आई है.
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26 प्रजातियों के सांप मिलने का दावा: सर्प के जानकार और रेस्क्यू करने वाले केसर हुसैन का कहना है कि "जशपुर क्षेत्र में बहुतायत मात्रा में सांप पाए जाते हैं. लगभग छत्तीसगढ़ में जितने भी प्रजाति के सांप पाए जाते हैं. उनमें से जशपुर में 80 फीसदी सांपों की प्रजाति जशपुर में मौजूद है. उन्होंने सांपों के रेस्क्यू के दौरान 26 प्रजातियों के पाए जाने का दावा किया है. उन्होंने बताया कि जशपुर में सांपों को लेकर कोई सर्वे नहीं किया गया है. अगर सर्वे हो तो और भी प्रजातियों के सांप मिल सकते हैं. जशपुर में कॉपरहेड ट्रीनकेड, वाईटलिट पिट वाइपर, बम्बू पिट वाइपर, इसके साथ ही एशिया में सबसे जहरीले सांप में कॉमन करैत सबसे अधिक पाए जाते है. साथ ही कोबरा भी पाया जाता है. इलाके में सर्पदंश के मामले सामने आने का मुख्य कारण जमीन पर सोना है. जिसके कारण ये घटनाएं होती है.
भुरभुरी मिट्टी और आर्द्र जलवायु की वजह से यहां पाए जाते हैं ज्यादा सांप: सांपों के जानकार कैसर हुसैन ने बताया कि "क्षेत्र की भुरभुरी मिट्टी और आर्द्र जलवायु सांपों के प्रजनन और भोजन के लिए आदर्श भौगोलिक स्थिति है. यही वजह है कि यह नागलोक के रूप में ख्याति प्राप्त कर रहा है".
कई दुर्लभ प्रजाति सांप भी यहां पाए जाते हैं: इस क्षेत्र में किंग कोबरा, करैत जैसे विषधर सांपों की संख्या ज्यादा है. वहीं, विचित्र प्रजाति का सांप ग्रीन पीट वाइपर और सरीसृृप प्रजाति के जीव-ग्रीन कैमेलियन, सतपुड़ा लेपर्ड लिजर्ड भी यहां पाए जाते हैं. ग्रीन पिट वाइपर का वैज्ञानिक नाम ट्रिमर सेरसस सलजार है. जो छत्तीसगढ़ के अलावा सिर्फ अरुणाचल प्रदेश में ही पाया जाता है. इसका विष कोबरा की अपेक्षा धीमा असर करता है. इस सांप का उल्लेख हॉलीवुड के हैरी पॉटर श्रृंखला की फिल्मों में किया गया है.
17 वर्षों में 862 लोगों की मौत: नागलोक के रूप में पहचान बना चुके जशपुर जिले में सर्पदंश से 17 सालों में 862 लोगों की मौत हुई है. पिछले वर्ष ही सर्पदंश से 58 लोगों की जान चली गई थी. सर्पदंश से अधिकांश मौतें पीड़ित को समय पर मेडिकल सहायता न मिलने की वजह से होती है. जागरुकता की कमी से लोग सर्पदंश पीड़ित को अस्पताल ले जाने के बजाय झाड़-फूंक और जड़ी बूटी से इलाज भी कराते हैं. इससे जहर शरीर में फैल जाता है.
नागलोक की कहानी क्षेत्र में है प्रचलित: इसके साथ ही इस क्षेत्र में एक किवदंती भी चली आ रही है. जिसके मुताबिक क्षेत्र में एक गुफा है, जहां नागलोक का प्रवेश द्वार होने की बात कही जाती है. जहां से नागलोक का रास्ता है.फरसाबहार तहसील में एक स्थान है कोतेबीरा धाम. लोगों की आस्था है कि यहां की गुफा ही नागलोक का द्वार है. यहां स्थित गुफा के संबंध में मान्यता है कि यह नागलोक का प्रवेश द्वार है. जन स्तुति है कि प्राचीन समय में यहां देवदूत रहा करते थे. लालचवश कुछ लोगों ने देवदूतों से उनके सोने-चांदी के बर्तन छीनने का प्रयास किया. तब वे सर्प रूप धारण कर पाताल लोक चले गए. इस शिवधाम में महाशिवरात्रि के अवसर पर हर साल श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है.