जांजगीर-चांपा: लॉकडाउन के बाद जिले में दूसरे राज्यों में फंसे मजदूरों की घर वापसी का सिलसिला शुरू हो गया है. हर रोज शहर में प्रवासी मजदूर सैकड़ों की संख्या में पहुंच रहे हैं, लेकिन अब प्रवासी मजदूरों के लिए घर आना भी किसी सजा से कम नहीं है. गांवों में बने क्वॉरेंटाइन सेंटरों में लोगों को रखने की जगह ही नहीं बची है, जिससे प्रवासी मजदूर दर-दर की ठोकर खा रहे हैं. मजदूर अपने गांवों में जा रहे हैं, तो वहां भी आने नहीं दिया रहा है, जिससे अब मजदूर गली-गली भटक रहे हैं.
प्रवासी मजदूरों ने बताया कि क्वॉरेंटाइन सेंटरों में जगह ही नहीं बची है. अपने गांव जाने पर गांववालों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है, जिससे मजदूर रात में दर-दर भटकने को मजबूर हैं. प्रशासन की बात करें, तो प्रशासन भी अब लोगों को होम क्वॉरेंटाइन का ही विकल्प बता रहा है, लेकिन प्रवासी मजदूरों को न क्वॉरेंटाइन सेंटर में जगह मिल रही है और न ही वह अपने घर जा पा रहे हैं, जिससे वह अब सड़कों पर रहने को मजबूर हैं.
दो हजार से अधिक प्रवासी मजदूरों का आना-जाना
जांजगीर चांपा में प्रवासी मजदूर असहाय दर्द लेकर अपने घरों के लिए निकल पड़ें हैं. रोज दो हजार से अधिक प्रवासी मजदूर जिले में वापस लौट रहे हैं. अकेले पामगढ़ ब्लॉक में एक हजार से अधिक प्रवासी मजदूर वापस लौट चुके हैं, वहीं अभी और मजदूर वापस आ रहे हैं. पहले से ही क्वॉरेंटाइन सेंटरों में जगह की कमी है. अब पामगढ़ ब्लॉक के लिए लोगों को क्वॉरेंटाइन करना प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है.
98 क्वॉरेंटाइन सेंटरों में नहीं बची जगह
जिला प्रशासन के मुताबिक जिले में 98 क्वॉरेंटाइन सेंटर हैं, जो पहले से ही फुल हैं. जगह नहीं होने के कारण लोगों को दूसरे ब्लॉक में क्वॉरेंटाइन किया जा रहा था. यही हाल दूसरे इलाकों में भी है. जहां अधिकांश ब्लॉकों के क्वॉरेंटाइन सेंटरों में जगह ही नहीं है. इस स्थिति में प्रवासी मजदूर जिले में लौटकर भटकने को मजबूर हैं, जिस तरीके से आप तस्वीर देख रहे हैं. उसमें यह साफ पता चल रहा है कि जैजैपुर ब्लॉक और पामगढ़ ब्लॉक के मजदूर दर-दर भटक रहे हैं. अब उनके लिए कोई आसरा नहीं बचा है.
कोरोना वायरस की वजह से प्रवासी मजदूरों को गांव में भी नहीं मिल रही जगह
क्वॉरेंटाइन सेंटर में जगह नहीं मिल रही है, तो दूसरी तरफ कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से उनके गांव में भी उन्हें जाने नहीं दिया जा रहा है. ऐसी स्थिति में मजदूरों को तकलीफ का सामना करना पड़ रहा है. इधर इस संबंध में प्रशासन ने भी अपने हाथ खड़े कर दिए हैं. वह भी अब बोल रहे हैं, कि क्वॉरेंटाइन के लिए कोई जगह नहीं है और स्थिति बहुत खराब है. पामगढ़ तहसीलदार ने कहा कि अब होम क्वॉरेंटाइन ही एक विकल्प रह गया है, जिससे मजदूर कहीं के नहीं रहे.