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जांजगीर-चांपा: कोरोना काल में धीमी पड़ी सुपोषण अभियान की रफ्तार, 1 साल में 4 हजार बच्चे हुए सुपोषित

कोरोना काल में मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान की गति धीमी पड़ गई है. कुपोषण को हराने के लिए शुरू किया गया अभियान आंगनबाड़ी केंद्रों के बंद होने से प्रभावित हुआ है. इस मसले पर ETV भारत ने मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान के क्रियान्वयन का जायजा लेने के लिए लोगों और प्रशासनिक अधिकारी से बातचीत की है. दोनों के अपने अलग-अलग दावे हैं.

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मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान की गति धीमी पड़ी
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Published : Oct 21, 2020, 8:25 PM IST

जांजगीर-चांपा: कोरोना वायरस संक्रमण ने सुपोषण की रफ्तार को रोक दिया है. हांलाकि जिले में आंकड़ें सकारात्मक हैं. लेकिन कुपोषण के आंकड़ों के सामने यह लय धीमी दिखाई पड़ रही है. राज्य सरकार ने छत्तीसगढ़ को कुपोषण मुक्त बनाने के लिए मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान की शुरुआत की थी. इस अभियान के तहत कुपोषण की दर में काफी कमी भी आई है. लेकिन कोरोना महामारी की वजह से मार्च के बाद से बंद किए गए आंगनबाड़ी केंद्रों के कारण सुपोषण की रफ्तार रुक गई है.

मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान की गति धीमी पड़ी

जांजगीर-चांपा जिले में लॉकडाउन की वजह से 22 सौ से अधिक आंगनबाड़ी केंद्र बंद हैं. राज्य सरकार ने फिर से आंगनबाड़ी केंद्रों को खोलने के निर्देश दिए हैं. महिलाओं को गर्म भोजन और बच्चों को सुपोषित आहार परोसने की तैयारी की जा चुकी है. प्रशासन का दावा है कि बच्चों के पालकों में कोरोना का भय दूर करने प्रचार-प्रसार भी किया जा रहा है. 22 मार्च के बाद प्रदेश भर में किए गए लॉकडाउन में राज्य सरकार ने आंगनबाड़ी केंद्रों को भी बंद करने के निर्देश जारी किए थे. जिसके बाद महिला एवं बाल विकास विभाग ने बच्चों और गर्भवती महिलाओं को सुखा राशन घर-घर तक पहुंचाने का दावा किया. लेकिन लॉकडाउन की वजह से सूखा राशन वितरण की सही मॉनिटरिंग नहीं हो पाने की वजह से सुपोषण की दर धीमी है.

पढ़ें: SPECIAL: छत्तीसगढ़ में होम आइसोलेशन में रहकर 66 हजार से ज्यादा मरीजों ने जीती कोरोना से जंग

क्या कहते हैं आंकड़ें

जिला प्रशासन के जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक साल 2019 में 24 हजार कुपोषित बच्चे पाए गए थे. साल 2019 में वजन त्योहार मनाया गया था. इस दौरान 0 से 5 वर्ष के बच्चों का तौल कराया गया. 24 हजार 396 बच्चों की पहचान कुपोषित के रूप में हुई. कुपोषण से सुपोषण की ओर बढ़ने के लिए मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान को तेजी से लागू किया गया. लेकिन सुपोषण के जो आंकड़ें सामने आए हैं. वो अभियान के क्रियान्वयन पर सवाल खड़े करते हैं. 24 हजार 396 बच्चों में से मात्र 4 हजार 396 बच्चे ही सुपोषित हो सके हैं. लॉकडाउन को इसका मुख्य कारण माना जा रहा है.

पढ़ें: बालोद: ओनाकोना के जंगलों से 5 लाख का गांजा जब्त

क्या कह रही आम जनता

ETV भारत ने मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान के क्रियान्वयन का जायजा लेने के लिए लोगों से बातचीत की है. लोगों ने दावा किया है कि उन्हें सही मात्रा में राशन नहीं मिल रहा है. उनका कहना है कि बच्चों को आंगनबाड़ी में पोषण आहार नहीं मिल रहा है. उन्हें खिचड़ी और सादा चावल दिया जाता रहा है. लोगों का यह भी मानना है कि लॉकडाउन के कारण बच्चों के पोषण पर रुकावट आई है. बच्चों को पोषण आहार नहीं मिल रहा है. इसलिए बच्चों का विकास रुक गया है. आंगनबाड़ी में मिलने वाला राशन से कुछ राहत थी. लेकिन जैसे ही केंद्र बंद हुए हैं. हालात और बिगड़ने लगे हैं.

पढ़ें: विधानसभा का विशेष: राज्यपाल अनुसुइया उइके से मुलाकात करने राजभवन पहुंचे कृषि मंत्री रविंद्र चौबे

प्रशासन का दावा दिया जा रहा राशन

महिला बाल विकास अधिकारी प्रीति चखियार ने बताया कि सरकार के निर्देशों पर दोबारा केंद्रों को खोला गया है. बच्चे और गर्भवती महिलाएं आंगनबाड़ी में गर्म भोजन कर सकतीं हैं. उन्होंने दावा किया है कि सुखा राशन और रेड़ी-टू-इट राशन भी दिया जा रहा है. अधिकारी का कहना है कि परिजन कोरोना के डर से बच्चों को आंगनबाड़ी केंद्र भेजने से कतरा रहे हैं. विभाग से जुडे़ अधिकारी और कर्मचारी लगातार इन कार्यों में लगे हुए हैं.

बहरहाल प्रशासन और जनता के अपने-अपने दावे हैं. लेकिन आंकड़ों को झुठलाया नहीं जा सकता है. छत्तीसगढ़ में कुपोषण एक गंभीर समस्या है. कोरोना महामारी के बाद स्थिति काफी भयावह हो गई है. ऐसे में अब देखने वाली बात होगी कि इन आंगनबाड़ी केंद्रों को दोबारा खोले जाने के बाद क्या सुपोषण की रफ्तार तेज होगी. उम्मीद करते हैं कि छत्तीसगढ़ जल्द कुपोषण के अभिशाप से मुक्त हो सके.

जांजगीर-चांपा: कोरोना वायरस संक्रमण ने सुपोषण की रफ्तार को रोक दिया है. हांलाकि जिले में आंकड़ें सकारात्मक हैं. लेकिन कुपोषण के आंकड़ों के सामने यह लय धीमी दिखाई पड़ रही है. राज्य सरकार ने छत्तीसगढ़ को कुपोषण मुक्त बनाने के लिए मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान की शुरुआत की थी. इस अभियान के तहत कुपोषण की दर में काफी कमी भी आई है. लेकिन कोरोना महामारी की वजह से मार्च के बाद से बंद किए गए आंगनबाड़ी केंद्रों के कारण सुपोषण की रफ्तार रुक गई है.

मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान की गति धीमी पड़ी

जांजगीर-चांपा जिले में लॉकडाउन की वजह से 22 सौ से अधिक आंगनबाड़ी केंद्र बंद हैं. राज्य सरकार ने फिर से आंगनबाड़ी केंद्रों को खोलने के निर्देश दिए हैं. महिलाओं को गर्म भोजन और बच्चों को सुपोषित आहार परोसने की तैयारी की जा चुकी है. प्रशासन का दावा है कि बच्चों के पालकों में कोरोना का भय दूर करने प्रचार-प्रसार भी किया जा रहा है. 22 मार्च के बाद प्रदेश भर में किए गए लॉकडाउन में राज्य सरकार ने आंगनबाड़ी केंद्रों को भी बंद करने के निर्देश जारी किए थे. जिसके बाद महिला एवं बाल विकास विभाग ने बच्चों और गर्भवती महिलाओं को सुखा राशन घर-घर तक पहुंचाने का दावा किया. लेकिन लॉकडाउन की वजह से सूखा राशन वितरण की सही मॉनिटरिंग नहीं हो पाने की वजह से सुपोषण की दर धीमी है.

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क्या कहते हैं आंकड़ें

जिला प्रशासन के जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक साल 2019 में 24 हजार कुपोषित बच्चे पाए गए थे. साल 2019 में वजन त्योहार मनाया गया था. इस दौरान 0 से 5 वर्ष के बच्चों का तौल कराया गया. 24 हजार 396 बच्चों की पहचान कुपोषित के रूप में हुई. कुपोषण से सुपोषण की ओर बढ़ने के लिए मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान को तेजी से लागू किया गया. लेकिन सुपोषण के जो आंकड़ें सामने आए हैं. वो अभियान के क्रियान्वयन पर सवाल खड़े करते हैं. 24 हजार 396 बच्चों में से मात्र 4 हजार 396 बच्चे ही सुपोषित हो सके हैं. लॉकडाउन को इसका मुख्य कारण माना जा रहा है.

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क्या कह रही आम जनता

ETV भारत ने मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान के क्रियान्वयन का जायजा लेने के लिए लोगों से बातचीत की है. लोगों ने दावा किया है कि उन्हें सही मात्रा में राशन नहीं मिल रहा है. उनका कहना है कि बच्चों को आंगनबाड़ी में पोषण आहार नहीं मिल रहा है. उन्हें खिचड़ी और सादा चावल दिया जाता रहा है. लोगों का यह भी मानना है कि लॉकडाउन के कारण बच्चों के पोषण पर रुकावट आई है. बच्चों को पोषण आहार नहीं मिल रहा है. इसलिए बच्चों का विकास रुक गया है. आंगनबाड़ी में मिलने वाला राशन से कुछ राहत थी. लेकिन जैसे ही केंद्र बंद हुए हैं. हालात और बिगड़ने लगे हैं.

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प्रशासन का दावा दिया जा रहा राशन

महिला बाल विकास अधिकारी प्रीति चखियार ने बताया कि सरकार के निर्देशों पर दोबारा केंद्रों को खोला गया है. बच्चे और गर्भवती महिलाएं आंगनबाड़ी में गर्म भोजन कर सकतीं हैं. उन्होंने दावा किया है कि सुखा राशन और रेड़ी-टू-इट राशन भी दिया जा रहा है. अधिकारी का कहना है कि परिजन कोरोना के डर से बच्चों को आंगनबाड़ी केंद्र भेजने से कतरा रहे हैं. विभाग से जुडे़ अधिकारी और कर्मचारी लगातार इन कार्यों में लगे हुए हैं.

बहरहाल प्रशासन और जनता के अपने-अपने दावे हैं. लेकिन आंकड़ों को झुठलाया नहीं जा सकता है. छत्तीसगढ़ में कुपोषण एक गंभीर समस्या है. कोरोना महामारी के बाद स्थिति काफी भयावह हो गई है. ऐसे में अब देखने वाली बात होगी कि इन आंगनबाड़ी केंद्रों को दोबारा खोले जाने के बाद क्या सुपोषण की रफ्तार तेज होगी. उम्मीद करते हैं कि छत्तीसगढ़ जल्द कुपोषण के अभिशाप से मुक्त हो सके.

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