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जगदलपुर: बस्तर के राजकुमार ने निभाई मावली परघाव की रस्म

विश्व प्रसिध्द बस्तर दशहरा की अनोखी रस्मों में से एक मावली परघाव की रस्म धूम-धाम से निभाई गई. बस्तर राजपरिवार के राजकुमार ने माता का भव्य स्वागत किया. इस रस्म को देखने भारी संख्या में लोग पहुंचे.

मावली परघाव रस्म को देखने उमड़ा भक्तों का सैलाब
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Published : Oct 8, 2019, 8:07 AM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:56 AM IST

जगदलपुर: विश्व प्रसिध्द बस्तर दशहरा पर्व की महत्वपूर्ण रस्म मावली परघाव को देर रात पूरा किया गया. दो देवियों के मिलन की इस रस्म को जगदलपुर दंतेश्वरी मंदिर के प्रांगण में अदा किया गया. परंपरा के मुताबिक इस रस्म में दंतेवाडा से मावली देवी के छत्र और डोली को जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर लाया जाता है. जिसका स्वागत बस्तर के राजकुमार और बस्तरवासी करते हैं. हर साल की तरह इस साल भी यह रस्म धूम-धाम से निभाई गई. नवमी तिथि को मनाए जाने वाली इस रस्म को देखने लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा.

बस्तर के राजकुमार ने निभाई मावली परघाव की रस्म

600 साल पुरानी है ये परंपरा
बस्तर के राजकुमार ने आतिशबाजी और फूलों से माता की डोली और छत्र का भव्य स्वागत किया. मान्यता के अनुसार 600 साल से इस रस्म को धूम-धाम से निभाया जाता है. बस्तर के महाराजा रूद्र प्रताप सिंह ने माई के डोली का भव्य स्वागत किया था. उनके बाद ये परंपरा आज भी बखूबी निभाई जाती है.

9वीं शताब्दी में बस्तर आई थीं देवी
मान्याता के अनुसार मावली देवी कनार्टक राज्य के मलवल्य गांव की देवी हैं, जो छिंदक नागवंशी राजाओं के शासनकाल में बस्तर आई थीं. छिंदक नागवंशी राजाओं ने 9वीं से 14वीं शताब्दी तक बस्तर में राज किया. इसके बाद चालुक्य राजा अन्नम देव जब बस्तर में अपना नया राज्य स्थापित किया, तब उन्होंने मावली देवी को भी अपनी कुलदेवी के रूप में मान्यता दी. मावली देवी का सम्मान और स्वागत करने के लिए मावली परघाव रस्म शुरू की गई.

देवी की विदाई के साथ बस्तर दशहरे का होगा समापन
इतिहासकारों के मुताबिक नवमी के दिन दंतेवाडा से आई मावली देवी की डोली का स्वागत करने राजा, राजगुरू और पुजारी नंगे पांव राजमहल से मंदिर प्रांगण तक आते हैं. उनकी अगवानी और पूजा अर्चना के बाद देवी की डोली कंधों पर उठाकर राजमहल स्थित देवी दंतेश्वरी के मंदिर में लाकर रखा जाता है. इनकी विदाई के साथ ही बस्तर दशहरे का समापन होता है.

जगदलपुर: विश्व प्रसिध्द बस्तर दशहरा पर्व की महत्वपूर्ण रस्म मावली परघाव को देर रात पूरा किया गया. दो देवियों के मिलन की इस रस्म को जगदलपुर दंतेश्वरी मंदिर के प्रांगण में अदा किया गया. परंपरा के मुताबिक इस रस्म में दंतेवाडा से मावली देवी के छत्र और डोली को जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर लाया जाता है. जिसका स्वागत बस्तर के राजकुमार और बस्तरवासी करते हैं. हर साल की तरह इस साल भी यह रस्म धूम-धाम से निभाई गई. नवमी तिथि को मनाए जाने वाली इस रस्म को देखने लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा.

बस्तर के राजकुमार ने निभाई मावली परघाव की रस्म

600 साल पुरानी है ये परंपरा
बस्तर के राजकुमार ने आतिशबाजी और फूलों से माता की डोली और छत्र का भव्य स्वागत किया. मान्यता के अनुसार 600 साल से इस रस्म को धूम-धाम से निभाया जाता है. बस्तर के महाराजा रूद्र प्रताप सिंह ने माई के डोली का भव्य स्वागत किया था. उनके बाद ये परंपरा आज भी बखूबी निभाई जाती है.

9वीं शताब्दी में बस्तर आई थीं देवी
मान्याता के अनुसार मावली देवी कनार्टक राज्य के मलवल्य गांव की देवी हैं, जो छिंदक नागवंशी राजाओं के शासनकाल में बस्तर आई थीं. छिंदक नागवंशी राजाओं ने 9वीं से 14वीं शताब्दी तक बस्तर में राज किया. इसके बाद चालुक्य राजा अन्नम देव जब बस्तर में अपना नया राज्य स्थापित किया, तब उन्होंने मावली देवी को भी अपनी कुलदेवी के रूप में मान्यता दी. मावली देवी का सम्मान और स्वागत करने के लिए मावली परघाव रस्म शुरू की गई.

देवी की विदाई के साथ बस्तर दशहरे का होगा समापन
इतिहासकारों के मुताबिक नवमी के दिन दंतेवाडा से आई मावली देवी की डोली का स्वागत करने राजा, राजगुरू और पुजारी नंगे पांव राजमहल से मंदिर प्रांगण तक आते हैं. उनकी अगवानी और पूजा अर्चना के बाद देवी की डोली कंधों पर उठाकर राजमहल स्थित देवी दंतेश्वरी के मंदिर में लाकर रखा जाता है. इनकी विदाई के साथ ही बस्तर दशहरे का समापन होता है.

Intro:जगदलपुर। विश्व प्रसिध्द बस्तर दशहरा पर्व कि महत्वपूर्ण मावली परघाव की रस्म देर रात अदा की गई। दो देवियों के मिलन के इस रस्म को जगदलपुर दंतेश्वरी मंदिर के प्रांगन में अदा की गयी. परम्परानुसार इस रस्म में शक्तिपीठ दन्तेवाडा से मावली देवी कि क्षत्र और डोली को जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर लाया जाता है। जिसका स्वागत बस्तर के राजकुमार और बस्तरवासियो के द्वारा किया जाता है। हर साल के भाँती इस वर्ष भी यह रस्म धूम धाम से मनाई गयी. नवरात्रि के नवमी मे मनाये जाने वाले इस रस्म को देखने बड़ी संख्या में लोगो का जन सैलाब उमड पडा।Body:दन्तेवाडा से पहुची माता की डोली और क्षत्र का बस्तर के राजकुमार ने भारी आतिशबाजी और फूलो से भव्य स्वागत किया । दंतेश्वरी मंदिर के प्रांगन में मनाये जाने वाले इस रस्म को देखने हजारो कि संख्या में लोग पहुचे । मान्यता के अनुसार 600 वर्ष से बस्तर रियासत काल से इस रस्म को धूम धाम से मनाया जाता है। बस्तर के महाराजा रूद्र प्रताप सिंह द्वारा माई के डोली का भव्य स्वागत किया जाता था. वो परम्परा आज भी बखूभी निभाई जाती है।Conclusion:पंरपरानुसार देवी मावली कनार्टक राज्य के मलवल्य गांव की देवी है,जो छिंदक नागवंशीय राजाओ द्वारा उनके बस्तर के शासनकाल मे आई थी, छिंदक नागवंशी राजाओ ने नौंवी से चौदंहवी शताब्दी तक बस्तर मे शासन किया, इसके बाद चालुक्य राजा अन्नम देव ने जब बस्तर मे अपना नया राज्य स्थापित किया तब उन्होने देवी मावली को भी अपनी कुलदेवी के रूप मे मान्यता दी, मावली देवी का यथोचित सम्मान तथा स्वागत करने के लिए मावली परघाव रस्म शुरू की गई।इतिहासकारो के मुताबिक नंवमी के दिन दंतेवाडा से आई मावली देवी की डोली का स्वागत करने राजा , राजगुरू और पुजारी नंगे पांव राजमहल से मंदिर के प्रांगण तक आते है, उनकी अगवानी और पूजा अर्चना के बाद देवी की डोली के कंधो पर उठाकर राजमहल स्थित देवी दंतेश्वरी के मंदिर मे लाकर रखा जाता है, बस्तर दशहरे के समापन पर इनकी ससम्मान विदाई होती है ।

बाईट1- कमलचंद भंजदेव, राजकुमार बस्तर राजपरिवार
Last Updated : Jul 25, 2023, 7:56 AM IST
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