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यहां विजयादशमी को नहीं होता रावण दहन, निभाई जाती है ये महत्वपूर्ण रस्म

पूरे देश में एक ओर जहां विजयादशमी पर रावण का दहन किया जाता है. वहीं बस्तर में इस मौके पर रावण दहन नहीं होता बल्कि एक प्रमुख रस्म निभाई जाती है.

भीतर रैनी की पूजा
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Published : Oct 8, 2019, 10:48 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:56 AM IST

जगदलपुर: प्रदेश में बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व विजयादशमी धूमधाम से मनाया जा रहा है. इस मौके पर कई शहरों में रावण का दहन होता है. लेकिन जगदलपुर में रावण का दहन नहीं किया जाता है. यहां विजयादशमी के मौके पर अहम रस्म भीतर रैनी पूरी की जाती है. प्राचीन मान्यताओं के मुताबिक बस्तर रावण की नगरी हुआ करती थी. इसलिए बस्तर दशहरा में शांति ,अंहिसा और सद्भाव के प्रतीक रूप में रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाता.

ऐसी है भीतर रैनी और बाहर रैनी रस्म
विजयादशमी के अवसर पर बस्तर में देर रात भीतर रैनी की रस्म हुई. प्रचलित मान्यता के मुताबिक बस्तर में राजा से असंतुष्ट लोग रथ चुराकर एक जगह छिपा देते थे. जिसके बाद राजा कुम्हाडाकोट पहुंचकर ग्रामीणों को मनाते थे, भोज कराते थे. उसके बाद शाही अंदाज में रथ को वापस दंतेश्वरी मंदिर लाया जाता था. इसलिए इस रस्म को बाहर रैनी रस्म कहते हैं. जो विजयादशमी के दूसरे दिन निभाया जाता है

इस तरह होती है रथ परिक्रमा संपन्न

जानकारों के मुताबिक बस्तर के राजा पुरूषोत्तम देव ने जगन्नाथ पुरी से रथपति की उपाधि धारण की थी. जिसके बाद बस्तर दशहरे में रथ परिक्रमा की परंपरा शुरू की गई . जो आज भी जारी है. इसी परंपरा के तहत विजयादशमी के एक दिन पहले भीतर रैनी रस्म और विजयादशमी के एक दिन बाद बाहर रैनी रस्म पूरी की जाती है. जिसके बाद बस्तर दशहरे में रथ परिक्रमा की समाप्ति की जाती है

जगदलपुर: प्रदेश में बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व विजयादशमी धूमधाम से मनाया जा रहा है. इस मौके पर कई शहरों में रावण का दहन होता है. लेकिन जगदलपुर में रावण का दहन नहीं किया जाता है. यहां विजयादशमी के मौके पर अहम रस्म भीतर रैनी पूरी की जाती है. प्राचीन मान्यताओं के मुताबिक बस्तर रावण की नगरी हुआ करती थी. इसलिए बस्तर दशहरा में शांति ,अंहिसा और सद्भाव के प्रतीक रूप में रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाता.

ऐसी है भीतर रैनी और बाहर रैनी रस्म
विजयादशमी के अवसर पर बस्तर में देर रात भीतर रैनी की रस्म हुई. प्रचलित मान्यता के मुताबिक बस्तर में राजा से असंतुष्ट लोग रथ चुराकर एक जगह छिपा देते थे. जिसके बाद राजा कुम्हाडाकोट पहुंचकर ग्रामीणों को मनाते थे, भोज कराते थे. उसके बाद शाही अंदाज में रथ को वापस दंतेश्वरी मंदिर लाया जाता था. इसलिए इस रस्म को बाहर रैनी रस्म कहते हैं. जो विजयादशमी के दूसरे दिन निभाया जाता है

इस तरह होती है रथ परिक्रमा संपन्न

जानकारों के मुताबिक बस्तर के राजा पुरूषोत्तम देव ने जगन्नाथ पुरी से रथपति की उपाधि धारण की थी. जिसके बाद बस्तर दशहरे में रथ परिक्रमा की परंपरा शुरू की गई . जो आज भी जारी है. इसी परंपरा के तहत विजयादशमी के एक दिन पहले भीतर रैनी रस्म और विजयादशमी के एक दिन बाद बाहर रैनी रस्म पूरी की जाती है. जिसके बाद बस्तर दशहरे में रथ परिक्रमा की समाप्ति की जाती है

Intro:जगदलपुर। दशहरा मे विजयदशमी के दिन जंहा एक ओर पूरे देश मे रावण का पुतला दहन किया जाता है, वही बस्तर मे विजयदशमी के दिन दशहरा की प्रमुख रस्म भीतर रैनी मनाई जाती है, इस वर्ष भी देर रात इस महत्वपूर्ण रस्म की धूमधाम से अदायी की गयी,  मान्यताओ के अनुसार आदिकाल मे बस्तर रावण की नगरी हुआ करती थी, और यही वजह है कि शांति ,अंहिसा और सदभाव के प्रतीक बस्तर दशहरा पर्व मे रावण का पुतला दहन  नही किया जाता।


Body:विजयदशमी के दिन मनाये जाने वाले बस्तर दशहरा पर्व मे भीतर रैनी रस्म मे 8 चक्के के विशालकाय नये रथ को शहर मे परिक्रमा कराने के बाद  आधी रात को इसे चुराकर माडिया जाति के लोग शहर से लगे कुम्हडाकोट ले जाते है, इस संबध मे बताया जाता है कि राजशाही युग मे राजा से असंतुष्ट लोगो ने रथ चुराकर एक जगह छिपा दिया था, जिसके पश्चात राजा  द्वारा कुम्ह्डाकोट पंहुच ग्रामीणों को मनाकर एंव उनके साथ भोज कर रथ को शाही अंदाज मे वापस जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर लाया जाता था,  और इस रस्म को बाहर रैनी रस्म कहा जाता है जो विजयदशमी के दूसरे दिन निभाया जाता है।


Conclusion:जानकार बताते है कि बस्तर के राजा पुर्शोत्तामदेव द्वारा  जगन्नाथ पूरी से रथपति की उपाधि ग्रहण करने के पश्चात बस्तर में दशहरे के अवसर पर रथ परिक्रमा की प्रथा आरम्भ की गई। जो की आज तक अनवरत चली आ रही है। इस रस्म के दौरान बस्तर संभाग के साथ-साथ प्रदेश और विदेशों से भी बड़ी संख्या में पर्यटक जगदलपुर पहुंचते हैं । और विशालकाय रथ परिक्रमा के इस रस्म को देखते हैं। आज भीतर रैनी रस्म और कल बाहर रैनी रस्म के साथ ही बस्तर दशहरा की रथ परिक्रमा समाप्त की जाती है।

बाईट1- बनमाली पाणिग्रही, जानकार "बुजुर्ग"

बाईट2- जावेद खान, स्थानीय

बाईट3- दीपिका पांडे,पर्यटक
 
Last Updated : Jul 25, 2023, 7:56 AM IST
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