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नदिया किनारे, किसके सहारे: इस उम्मीद के साथ बस्तर में बह रही है इंद्रावती - आंदोलन

बस्तर कलेक्टर अय्याज तंबोली ने इंद्रावती नदी के घटते जलस्तर को देखते हुए और लोगों की मांगो पर राज्य सरकार के निर्देश पर नदियों का सीमांकन करते हुए नदियों को बचाने के दिशा निर्देश संबंधित विभाग के अधिकारियों को दिए हैं.

डिजीइन फोटो
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Published : Jun 24, 2019, 6:10 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:56 AM IST

जगदलपुर: इंद्रावती नदी के घटते जलस्तर को लेकर जहां आंदोलन शुरू हुआ तो वहीं चित्रकोट जलप्रपात भी पानी की कमी की वजह से सुर्खियों में रहा. राज्य सरकार की किरकिरी होने के बाद स्थानीय प्रशासन ने वैकल्पिक व्यवस्था करते हुए इंद्रावती की सहायक नदी नारंगी के दो गेट खोल दिए, जिससे कि चित्रकोट जलप्रपात मे पानी तो बढ़ा लेकिन इसका स्थाई समाधान नहीं निकल पाया.

नदिया किनारे, किसके सहारे: इस उम्मीद के साथ बस्तर में बह रही है इंद्रावती

बस्तर में स्थित विश्व प्रसिध्द चित्रकोट जलप्रपात एक खूबसूरत पर्यटन स्थल होने के साथ धार्मिक महत्व भी रखता है, चित्रकोट ग्राम के स्थानीय पुजारी बताते हैं कि भगवान श्रीराम अपने 14 वर्ष के वनवास के दौरान इस चित्रकोट के जलप्रपात से होते हुए ही दक्षिण की दिशा में गए थे.

देवी की तरह पूजते हैं बस्तरवासी
वे बताते हैं कि श्रीराम के साथ लक्ष्मण और सीता देवी भी यहां पर स्थित प्राचीन शिवलिंग की पूजा अर्चना कर इंद्रावती नदी के पानी में अपने पैर रखे. पुजारी की मानें तो श्रीराम के पैर पड़ने की वजह से भी यह नदी बस्तरवासियों के लिए आस्था का प्रतीक है. इसके अलावा बस्तरवासी इंद्रावती को देवी के रूप में मानते हैं और इस नदी की आरती के साथ ही पूजा अर्चना भी करते हैं.

धीर-धीरे घट रहा है जलस्तर
बस्तर के सभी घरों में शुभ कार्यों व मांगलिक कार्यों के दौरान सर्वप्रथम इंद्रावती देवी का उच्चारण कर नदी के पानी की पूजा अर्चना में उपयोग किया जाता है और बस्तरवासी इसे गंगा नदी मानते हैं. पुजारी का कहना है कि वे सालों से इस नदी को देखते आ रहे हैं और धीरे-धीरे इस नदी का जलस्तर घटता जा रहा है. इंद्रावती नदी अपना मूल स्वरूप खोती जा रही है. उन्होंने कहा कि इसका मुख्य कारण ओडिशा सरकार द्वारा बांध बनाया जाना और छत्तीसगढ़ सरकार की इस नदी के प्रति उदासीनता है.

क्या कहते हैं इतिहासकार
इंद्रावती नदी के बारे में बस्तर के इतिहासकार डॉ सतीश बताते हैं कि नदी का मूलस्वरूप पिछले कुछ सालों में बदल गया है. जिसकी वजह ओडिशा सरकार की वादाखिलाफी और छत्तीसगढ़ सरकार की अनदेखी है. वे कहते हैं कि धीरे धीरे इस नदी का दोहन होने लगा.

'सिर्फ 20 फीसदी पानी ही हो पाता है इस्तेमाल'
छत्तीसगढ़ की सीमा की तरफ कई एनीकेट बनाये गये लेकिन देखरेख और मेटंनेंस के अभाव मे यहां रेत जमा होने लगी और धीरे धीरे जल का जो बहाव है वह कम होने लगा. डॉ सतीष के अनुसार वर्तमान में भी इंद्रावती का जो पानी है उसका 20 फीसदी ही इस्तेमाल हो पाता है.

बढ़ रहा है जलसंकट
बाकि पानी जलप्रपात के लिए छोड़ दिया जाता है लेकिन भविष्य में बस्तर के खनिज दोहन के लिए विभिन्न प्लांट और कारखाने लगाए जाएंगे और बस्तर में आबादी भी तेजी से बढ़ेगी. ऐसे समय बस्तर में और भी विकराल रूप से जल संकट का खतरा बढ़ सकता है.


इधर चित्रकोट जलप्रपात का नजारा देखने पंहुच रहे पर्यटको के चेहरे पर भी पानी कम होने की मायूसी दिखी.

कलेक्टर ने दिए निर्देश
इधर इंद्रावती बचाओ मंच के लोगों द्वारा लगातार चलाए गए इस अभियान को मिले भारी जनसमर्थन से जिला प्रशासन ने इसे गंभीरता से लिया है. बस्तर कलेक्टर अय्याज तंबोली ने इंद्रावती नदी के घटते जलस्तर को देखते हुए और मंच के लोगो की मांगो पर राज्य सरकार के निर्देश पर सर्वप्रथम नदियों का सीमांकन करते हुए नदियों में जो अतिक्रमण हुआ है उसे खाली कराने के साथ नदियों के तटों को सुरक्षित रखते हुए ज्यादा से ज्यादा वृक्षारोपण करने के दिशा निर्देश संबंधित विभाग के अधिकारियों को दिए.

इंद्रावती विकास प्राधिकरण बनाया जाएगा
आंदोलन का ही असर था कि सरकार को इंद्रावती नदी को बचाने के लिए एक प्राधिकरण का गठन करना पड़ा. छत्तीसगढ़ में नई सरकार के गठन के बाद पहली बार जगदलपुर में बस्तर प्राधिकरण की बैठक हुई और बैठक के दौरान सबसे महत्वपूर्ण फैसला इंद्रावती विकास प्राधिकरण के गठन का था.

सार्थक परिणाम की उम्मीद
इंद्रावती बचाओ आंदोलन से जुड़े वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि मुख्यमंत्री का इंद्रावती को लेकर प्राधिकरण के गठन करने का फैसला स्वागत योग्य है, उम्मीद है कि इससे कोई सार्थक परिणाम जरूर निकलेगा. हम भी इसी उम्मीद में बैठे हैं कि जो इस बरस हुआ है वो नजारा हम अगले बरस न देखें. 'नदिया किनारे, किसके सहारे' में इंद्रावती के साथ हम भी अपने सवालों का इंतजार कर रहे हैं.

जगदलपुर: इंद्रावती नदी के घटते जलस्तर को लेकर जहां आंदोलन शुरू हुआ तो वहीं चित्रकोट जलप्रपात भी पानी की कमी की वजह से सुर्खियों में रहा. राज्य सरकार की किरकिरी होने के बाद स्थानीय प्रशासन ने वैकल्पिक व्यवस्था करते हुए इंद्रावती की सहायक नदी नारंगी के दो गेट खोल दिए, जिससे कि चित्रकोट जलप्रपात मे पानी तो बढ़ा लेकिन इसका स्थाई समाधान नहीं निकल पाया.

नदिया किनारे, किसके सहारे: इस उम्मीद के साथ बस्तर में बह रही है इंद्रावती

बस्तर में स्थित विश्व प्रसिध्द चित्रकोट जलप्रपात एक खूबसूरत पर्यटन स्थल होने के साथ धार्मिक महत्व भी रखता है, चित्रकोट ग्राम के स्थानीय पुजारी बताते हैं कि भगवान श्रीराम अपने 14 वर्ष के वनवास के दौरान इस चित्रकोट के जलप्रपात से होते हुए ही दक्षिण की दिशा में गए थे.

देवी की तरह पूजते हैं बस्तरवासी
वे बताते हैं कि श्रीराम के साथ लक्ष्मण और सीता देवी भी यहां पर स्थित प्राचीन शिवलिंग की पूजा अर्चना कर इंद्रावती नदी के पानी में अपने पैर रखे. पुजारी की मानें तो श्रीराम के पैर पड़ने की वजह से भी यह नदी बस्तरवासियों के लिए आस्था का प्रतीक है. इसके अलावा बस्तरवासी इंद्रावती को देवी के रूप में मानते हैं और इस नदी की आरती के साथ ही पूजा अर्चना भी करते हैं.

धीर-धीरे घट रहा है जलस्तर
बस्तर के सभी घरों में शुभ कार्यों व मांगलिक कार्यों के दौरान सर्वप्रथम इंद्रावती देवी का उच्चारण कर नदी के पानी की पूजा अर्चना में उपयोग किया जाता है और बस्तरवासी इसे गंगा नदी मानते हैं. पुजारी का कहना है कि वे सालों से इस नदी को देखते आ रहे हैं और धीरे-धीरे इस नदी का जलस्तर घटता जा रहा है. इंद्रावती नदी अपना मूल स्वरूप खोती जा रही है. उन्होंने कहा कि इसका मुख्य कारण ओडिशा सरकार द्वारा बांध बनाया जाना और छत्तीसगढ़ सरकार की इस नदी के प्रति उदासीनता है.

क्या कहते हैं इतिहासकार
इंद्रावती नदी के बारे में बस्तर के इतिहासकार डॉ सतीश बताते हैं कि नदी का मूलस्वरूप पिछले कुछ सालों में बदल गया है. जिसकी वजह ओडिशा सरकार की वादाखिलाफी और छत्तीसगढ़ सरकार की अनदेखी है. वे कहते हैं कि धीरे धीरे इस नदी का दोहन होने लगा.

'सिर्फ 20 फीसदी पानी ही हो पाता है इस्तेमाल'
छत्तीसगढ़ की सीमा की तरफ कई एनीकेट बनाये गये लेकिन देखरेख और मेटंनेंस के अभाव मे यहां रेत जमा होने लगी और धीरे धीरे जल का जो बहाव है वह कम होने लगा. डॉ सतीष के अनुसार वर्तमान में भी इंद्रावती का जो पानी है उसका 20 फीसदी ही इस्तेमाल हो पाता है.

बढ़ रहा है जलसंकट
बाकि पानी जलप्रपात के लिए छोड़ दिया जाता है लेकिन भविष्य में बस्तर के खनिज दोहन के लिए विभिन्न प्लांट और कारखाने लगाए जाएंगे और बस्तर में आबादी भी तेजी से बढ़ेगी. ऐसे समय बस्तर में और भी विकराल रूप से जल संकट का खतरा बढ़ सकता है.


इधर चित्रकोट जलप्रपात का नजारा देखने पंहुच रहे पर्यटको के चेहरे पर भी पानी कम होने की मायूसी दिखी.

कलेक्टर ने दिए निर्देश
इधर इंद्रावती बचाओ मंच के लोगों द्वारा लगातार चलाए गए इस अभियान को मिले भारी जनसमर्थन से जिला प्रशासन ने इसे गंभीरता से लिया है. बस्तर कलेक्टर अय्याज तंबोली ने इंद्रावती नदी के घटते जलस्तर को देखते हुए और मंच के लोगो की मांगो पर राज्य सरकार के निर्देश पर सर्वप्रथम नदियों का सीमांकन करते हुए नदियों में जो अतिक्रमण हुआ है उसे खाली कराने के साथ नदियों के तटों को सुरक्षित रखते हुए ज्यादा से ज्यादा वृक्षारोपण करने के दिशा निर्देश संबंधित विभाग के अधिकारियों को दिए.

इंद्रावती विकास प्राधिकरण बनाया जाएगा
आंदोलन का ही असर था कि सरकार को इंद्रावती नदी को बचाने के लिए एक प्राधिकरण का गठन करना पड़ा. छत्तीसगढ़ में नई सरकार के गठन के बाद पहली बार जगदलपुर में बस्तर प्राधिकरण की बैठक हुई और बैठक के दौरान सबसे महत्वपूर्ण फैसला इंद्रावती विकास प्राधिकरण के गठन का था.

सार्थक परिणाम की उम्मीद
इंद्रावती बचाओ आंदोलन से जुड़े वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि मुख्यमंत्री का इंद्रावती को लेकर प्राधिकरण के गठन करने का फैसला स्वागत योग्य है, उम्मीद है कि इससे कोई सार्थक परिणाम जरूर निकलेगा. हम भी इसी उम्मीद में बैठे हैं कि जो इस बरस हुआ है वो नजारा हम अगले बरस न देखें. 'नदिया किनारे, किसके सहारे' में इंद्रावती के साथ हम भी अपने सवालों का इंतजार कर रहे हैं.

Intro:सर ख़बर मोजो से भेजी गई है। इंद्रावती नदी स्पेशल के नाम से इस स्पेशल खबर पर यह फ़ाइल शॉट्स उपयोग करे । Body:जोरा नाला के शॉट
प्राधिकरण के बैठक के शॉट
रेत का उत्खनन करते शॉट

3 शॉट भेजी गयी है। Conclusion:
Last Updated : Jul 25, 2023, 7:56 AM IST
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