बस्तर: क्या अपनी जिंदगी में कोई पीछे लौटना चाहता है ? अगर ज्यादा सुविधाएं मिलें तो कम में जीना चाहता है ? शायद हम सबका जवाब होगा नहीं. लेकिन ये हकीकत है. बस्तर नगर पंचायत के 15 वार्ड के लोग पिछले 4 साल से यही कह रहे हैं. दरअसल उनकी मांग नगर पंचायत को ग्राम पंचायत में बदलने की है. अबकी बार तो वे आर-पार के मूड में हैं.
प्रजातांत्रिक व्यवस्था में विकास की सबसे छोटी इकाई ग्राम पंचायतों को माना जाता है. नगर पंचायत उससे बड़ी इकाई होती है. बस्तर में ग्राम पंचायत को नगर पंचायत में अपग्रेड कर दिया गया. लेकिन इससे लोगों की सुविधा बढ़ी नहीं बल्कि घट गई. वे फिर से पुराने सिस्टम में जाने की मांग करने लगे. उनकी ये मांग 4 साल पुरानी है. वे कई बार नेशनल हाईवे पर चक्काजाम भी कर चुके हैं. अब सवाल ये उठता है कि ग्रामीण ऐसा चाहते क्यों हैं ? इस बात का जवाब खोजने ETV भारत की टीम वहां के लोगों के बीच पहुंची.
इजाजत नहीं लेने का आरोप लगाया
हमारी टीम से बातचीत के दौरान गांववालों ने अपना गुस्सा जाहिर किया. नगर पंचायत में रहने वाले बोधराम बघेल ने कहा कि यहां विकास तो दूर बल्कि आदिवासी रीति रिवाज और परंपराओं का भी पूरी तरह से हनन हो रहा है. ग्रामीणों का कहना है कि बस्तर में पांचवीं अनुसूची लागू है. इसके नियम के तहत ग्राम पंचायतों को नगर पंचायत बनाने की इजाजत नहीं है.
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2009 में बनाई गई थी नगर पंचायत
गांववालों का कहना है कि साल 2009 में जब बस्तर नगर पंचायत बनाई गई तब भी नियम का उल्लंघन किया गया. बिना ग्राम सभा से प्रस्ताव पारित किए इसे नगर पंचायत घोषित कर दिया गया. जबकि नियम ये कहता है कि पांचवी अनुसूची में ग्राम सभा से पारित होने के बाद ही शासन-प्रशासन कोई फैसला ले सकता है.
विकास नहीं होने पर फूटा गुस्सा
ग्रामीणों ने कहा कि नगर पंचायत बने 11 साल बीत चुके हैं, अब भी इस नगर पंचायत के 15 वार्ड के 22 पारा विकास से कोसों दूर हैं. ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रहे हैं. यही नहीं इस 11 साल में कोई भी उपलब्धि नगर पंचायत बनने के बाद हासिल नहीं की.
हमारी परंपराओं का हनन: आदिवासी
लोगों का आरोप है कि नगर पंचायत बनने के बाद आदिवासी परंपराओं का पूरी तरह से हनन हो रहा है. आदिवासी कई सारे तीज-त्यौहार मनाते हैं लेकिन नगर पंचायत बन जाने की वजह से सभी गांव के लोग अब जुट नहीं पाते हैं. अधिकारों का हनन भी कभी-कभी होने का आरोप लोग लगा रहे हैं.
'मनमाना टैक्स वसूला जा रहा'
गणेश राम कश्यप कहते हैं कि नगर पंचायत बनने के बाद उनसे मनमाने टैक्स वसूला जा रहा है. घर का टैक्स, कचरे का टैक्स सब तो लिया जा रहा है लेकिन इसके एवज में कोई विकास का काम नहीं हो रहा है. लोग कह रहे हैं कि इतना टैक्स वे कैसे चुका पाएंगे ? गांववाले बताते हैं कि नगर पंचायत की वजह से उनके बच्चों का भी भविष्य अधर में चला गया है. बिना टैक्स का भुगतान किेए नगर पंचायत के कर्मचारी जाति प्रमाण पत्र और निवास प्रमाण पत्र नहीं बनाते हैं. ऐसे में गांव के कई बच्चों ने आधी-अधूरी शिक्षा ग्रहण कर पढ़ाई छोड़ दी है.
खरीदी और बेची जा रही है आदिवासियों की जमीन
गांववाले पेयजल के लिए तालाब का पानी पीने को मजबूर हैं. 15 वार्डो में पेयजल की सुविधा नहीं है, न ही पक्की सड़क है. इसके अलावा नगर पंचायत की वजह से आदिवासियों की जमीन की खरीद-फरोख्त भी धड़ल्ले से हो रही है. गणेश राम कश्यप कहते हैं कि बाहरी लोग नजूल की जमीन पर बेजा कब्जा कर रहे हैं. ऐसे लोगों को नगर पंचायत से एनओसी आसानी से मिल जाती है. अगर ग्राम पंचायत होती तो कोई भी बाहरी गांव की जमीन नहीं ले पाता. नगर पंचायत में अपने किसी काम के लिए महीनों चक्कर लगाने पड़ते हैं. कोई काम आसानी से नहीं होता. ऐसे में उन्हें हताश होकर बिना काम कराए ही वापस लौटना पड़ता है.
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'नियमों का गलत इस्तेमाल किया'
नगरीय निकाय अधिनियम 1956-1961 के प्रावधान का इस्तेमाल करके सामान्य क्षेत्र के कानून के तहत पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में लागू कर दी गई. पांचवीं अनुसूची के तहत बिना ग्राम सभा के अनुमोदन के ग्राम पंचायत को नगर पंचायत नहीं बनाया जा सकता है. लोगों का आरोप है कि तत्कालीन भाजपा शासन काल में इस नियम का उल्लंघन करते हुए बस्तर नगर पंचायत बनाई गई थी.
नगर पंचायत बनाने के बाद भी 11 साल से यहां कोई विकास कार्य नहीं हो रहे हैं. वहीं वार्ड के पार्षद रामचंद बघेल का कहना है कि उनके द्वारा भी कई बार गांव में विकास कार्य के लिए कहे जाने के बावजूद कोई काम नहीं किया गया. ग्रामीणों का यह भी कहना है कि पिछले 4 सालों से वे सभी प्रशासनिक अधिकारियों, पूर्व और वर्तमान मुख्यमंत्रियों तक से मिल चुके हैं. राज्यपाल और नगरीय प्रशासन मंत्री को भी आवेदन सौंप चुके हैं. यही नहीं बस्तर तहसील कार्यालय का घेराव करने के साथ जिला कलेक्ट्रेट का भी घेराव कर चुके हैं. बावजूद इसके उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है.
आंदोलन की चेतावनी
ग्रामीण बताते हैं कि बस्तर के स्थानीय विधायक लखेश्वर बघेल ने आश्वासन दिया है कि 3 महीने में ग्राम पंचायत बना दी जाएगी. ग्रामीण बंशीधर कश्यप कहते हैं कि अगर इन 3 महीनों में नगर पंचायत को ग्राम पंचायत नहीं बनाया जाता है तो वे एक बार फिर उग्र आंदोलन के लिए बाध्य होंगे. जब तक मांग पूरी नहीं होगी, आंदोलन करेंगे.
बीच का रास्ता निकालने की कोशिश: सिंहदेव
पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री टीएस सिंहेदव ने इस मामले में बीच का रास्ता निकालने की बात कही है. उन्होंने कहा कि सरकार को अपने स्तर पर चिंतन करना है. हम लोग आपस में बात कर रहे हैं. ग्राम पंचायत में वो विकास नहीं होते, जो शहर में किए जा सकते हैं. दूसरी तरफ केवल आदिवासी समाज के लिए सरपंच बनने का जो अधिकार शेड्यूल्ड एरिया में है, उसमें परिवर्तन आ सकता है. इसलिए बीच का कोई रास्ता निकालकर निर्णय लेना होगा.