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Goncha Mahaparva: जगदलपुर में धूमधाम निभाई गई गोंचा महापर्व की अंतिम रस्म "बाहुड़ा गोंचा"

Goncha Mahaparva गुरुवार को गोंचा महापर्व की आखिरी रस्म बाहुड़ा गोंचा की रस्म अदा की गई. 9 दिन मौसी के घर रहने के बाद भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा वापस जगन्नाथ मंदिर पहुंचे. Goncha Mahaparva last ceremony

Bahuda Goncha was performed in jagdalpur
अंतिम रस्म बाहुड़ा गोंचा निभाया गया
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Published : Jun 29, 2023, 1:15 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST

अंतिम रस्म बाहुड़ा गोंचा निभाया गया

जगदलपुर: बस्तर के विश्व प्रसिद्ध दशहरा पर्व के बाद गोंचा महापर्व को दूसरे बड़े पर्व का दर्जा दिया गया है. करीब 600 सालों से इस परंपरा को मनाया जा रहा है. जगन्नाथ पुरी की तर्ज पर बस्तर में भी भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र के तीन विशालकाय रथ निकाले जाते हैं और शहर में इसकी परिक्रमा कराई जाती है. इस परम्परा को देखने हजारों की संख्या में लोगों का जनसैलाब उमड़ पड़ता है. लोग यहां आकर यहां की खूबसूरत वादियों के बीच आदिवासी समाज की संस्कृति और सभ्यता का गवाह बनते हैं.

गोंचा पर्व का आखिरी रस्म बाहुड़ा गोंचा हुआ पूरा: इस साल भी धूमधाम से रथयात्रा निकाली गई. बाहुड़ा गोंचा इस पर्व की आखिरी रस्म मानी जाती है. इसमें सीरासार भवन में बने जनकपुरी से भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रथ को सीरासार भवन से जगन्नाथ मंदिर तक परिक्रमा कराई गयई. इस दौरान सैकड़ों श्रद्धालु मौजूद रहे. गाजे-बाजे के साथ इस रस्म की अदायगी की गई. सैकड़ों की संख्या में आरण्यक ब्राह्मण समाज के युवा, बुजुर्ग, बच्चे और महिलाओं ने इस विशालकाय रथ को खींचकर मंदिर पहुंचाया.

गोंचा पर्व का इतिहास: अरण्य ब्राह्मण समाज के पूर्व अध्यक्ष बालकराम जोशी ने बताया कि "भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र 9 दिन तक अपनी मौसी के घर पहुंचकर भक्तों को दर्शन देते हैं. 9 दिन के बाद रथ पर सवार होकर परिक्रमा करते हुए वापस जगन्नाथ मंदिर पहुंचते हैं. जिसे बाहुड़ा गोंचा कहा जाता है. 614 साल पहले बस्तर के राजा अन्नमदेव सैकड़ों हाथी घोड़ों और लाव लश्कर के साथ जगन्नाथ पुरी घुटनों के बल पहुंचे थे. जहां से उन्हें रथपति की उपाधि मिली. 3 रथ चलाने की अनुमति मिलने के बाद निरंतर यह परंपरा बस्तर में चलाया जा रहा है."

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सांसद दीपक बैज ने भी की शिरकत: गोंचा महापर्व का अंतिम रस्म बाहुड़ा गोंचा रस्म धूमधाम से मनाया गया. गोंचा महापर्व के अंतिम दिन बस्तर सांसद दीपक बैज भी इस पर्व में शामिल हुए. उन्होंने भागवान जगन्नाथ के दर्शन किये और आशीर्वाद लिया. यह महापर्व 4 जून से 28 जून तक मनाया गया. जिसमें बस्तरवासियों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया.

अंतिम रस्म बाहुड़ा गोंचा निभाया गया

जगदलपुर: बस्तर के विश्व प्रसिद्ध दशहरा पर्व के बाद गोंचा महापर्व को दूसरे बड़े पर्व का दर्जा दिया गया है. करीब 600 सालों से इस परंपरा को मनाया जा रहा है. जगन्नाथ पुरी की तर्ज पर बस्तर में भी भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र के तीन विशालकाय रथ निकाले जाते हैं और शहर में इसकी परिक्रमा कराई जाती है. इस परम्परा को देखने हजारों की संख्या में लोगों का जनसैलाब उमड़ पड़ता है. लोग यहां आकर यहां की खूबसूरत वादियों के बीच आदिवासी समाज की संस्कृति और सभ्यता का गवाह बनते हैं.

गोंचा पर्व का आखिरी रस्म बाहुड़ा गोंचा हुआ पूरा: इस साल भी धूमधाम से रथयात्रा निकाली गई. बाहुड़ा गोंचा इस पर्व की आखिरी रस्म मानी जाती है. इसमें सीरासार भवन में बने जनकपुरी से भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रथ को सीरासार भवन से जगन्नाथ मंदिर तक परिक्रमा कराई गयई. इस दौरान सैकड़ों श्रद्धालु मौजूद रहे. गाजे-बाजे के साथ इस रस्म की अदायगी की गई. सैकड़ों की संख्या में आरण्यक ब्राह्मण समाज के युवा, बुजुर्ग, बच्चे और महिलाओं ने इस विशालकाय रथ को खींचकर मंदिर पहुंचाया.

गोंचा पर्व का इतिहास: अरण्य ब्राह्मण समाज के पूर्व अध्यक्ष बालकराम जोशी ने बताया कि "भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र 9 दिन तक अपनी मौसी के घर पहुंचकर भक्तों को दर्शन देते हैं. 9 दिन के बाद रथ पर सवार होकर परिक्रमा करते हुए वापस जगन्नाथ मंदिर पहुंचते हैं. जिसे बाहुड़ा गोंचा कहा जाता है. 614 साल पहले बस्तर के राजा अन्नमदेव सैकड़ों हाथी घोड़ों और लाव लश्कर के साथ जगन्नाथ पुरी घुटनों के बल पहुंचे थे. जहां से उन्हें रथपति की उपाधि मिली. 3 रथ चलाने की अनुमति मिलने के बाद निरंतर यह परंपरा बस्तर में चलाया जा रहा है."

Goncha Festival In Bastar: बस्तर में गोंचा पर्व के लिए चंदन जात्रा रस्म शुरू, बनाई जा रही दो मंजिला रथ
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सांसद दीपक बैज ने भी की शिरकत: गोंचा महापर्व का अंतिम रस्म बाहुड़ा गोंचा रस्म धूमधाम से मनाया गया. गोंचा महापर्व के अंतिम दिन बस्तर सांसद दीपक बैज भी इस पर्व में शामिल हुए. उन्होंने भागवान जगन्नाथ के दर्शन किये और आशीर्वाद लिया. यह महापर्व 4 जून से 28 जून तक मनाया गया. जिसमें बस्तरवासियों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया.

Last Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST
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