जगदलपुर: पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अरविंद नेताम (Former Union Minister Arvind Netam ) ने सिरगेल गोलीकांड को लेकर राज्य सरकार की न्यायिक जांच पर सवाल उठाया है. अरविंद नेताम ने इस मामले की हो रही न्यायिक जांच को लेकर एतराज जताते हुए हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज से इस मामले की जांच कराने की मांग भूपेश सरकार से की है. साथ ही इस घटना की निंदा करते हुए ग्रामीणों पर हो रहे अत्याचार को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है.
पुलिस का बयान समझ से परे: अरविंद नेताम
पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने गुरुवार को पत्रकारों से इस मुद्दे पर चर्चा की है. उन्होंने कहा कि बस्तर पुलिस ने यह माना है कि क्रॉस फायरिंग में तीन लोगों की मौत हुई है. पुलिस का कहना है कि भीड़ की आड़ लेकर पहले नक्सलियों ने फायरिंग की है, लेकिन इस पर हमें शंका है. उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि कुछ महीने पहले भी नारायणपुर जिले के आमदई में भी हजारों की संख्या में आदिवासियों ने पुलिस कैंप के विरोध में प्रदर्शन किया था. उस वक्त भी वहां कोई भी आदिवासी हथियार लेकर नहीं पहुंचा था. अरविंद नेताम ने कहा कि ग्रामीणों को नक्सली बताकर उनके उपर पहले फायरिंग का आरोप लगाना, पुलिस का यह बयान समझ से परे है.
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अमित शाह के दौरे पर उठाए सवाल
पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने कहा कि बीते दिनों केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह बस्तर में तैनात सुरक्षाबलों का मोनबल बढ़ाने बीजापुर के बासागुड़ा कैंप पहुंचे थे. इस दौरान उन्होंने पुलिस को सख्त कदम उठाने की छूट देते हुए कहा था कि बस्तर में असलहा की कमी नहीं होगी. उसकी कमी हम पूरी करेंगे. उसके बाद से ही पुलिस ने ड्रोन और निहत्थे लोगों पर हमला करना शुरू किया.
पेसा कानून का उल्लंघन और मामले में हो रही लीपापोती
अरविंद नेताम ने कहा कि घटना के दो दिन बाद जब आदिवासी समाज के प्रतिनिधि मौके सिलगेर जा रहे थे, तो उन्हें पुलिस ने रोक लिया. इस दौरान उन्होंने पुलिस के उच्च अधिकारियों से मौके पर जाने के लिए निवेदन भी किया. लेकिन उन्हें वहां जाने की इजाजत नहीं मिली. उन्होंने कहा कि जाहिर है पुलिस इस घटनाक्रम के लीपापोती करने में लगी हुई थी.
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उन्होंने कहा कि देश में पेसा कानून लागू है. पुलिस कैंप स्थापित करने के लिए फर्जी ग्राम सभा का सहारा लिया गया है. पुलिस को विश्वास अर्जित करने के लिए अलग से एक विशेष अभियान चलाना चाहिए. इस घटना के बाद यह साफ हो गया है कि पुलिस और प्रशासन के बीच तालमेल की कमी है. बस्तर के अधिकारी आश्वासन पूरा नहीं करते हैं, क्योंकि बस्तर के अधिकारी ऐसे मामलों को गंभीरता से नहीं लेते हैं.