जगदलपुर : प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण बस्तर (Bastar full of natural beauty) में वनोपज ही यहां के ग्रामीणों के लिए आय का मुख्य स्त्रोत (main source of income) है. बस्तर की जलवायु (Climate of Bastar) वनोपज खासकर काजू के लिए काफी अनुकूल है. हर वर्ष बस्तर जिले के बकावंड ब्लॉक में 30 हजार हैक्टेयर में काजू की खेती की जाती है. इसका उत्पादन भी यहां बड़े पैमाने पर होता है. इन सबके बावजूद यहां के लोगों के सामने रोजगार की बड़ी समस्या है और इसका सबसे बड़ा कारण वन विभाग है.
वन विभाग की की उदासीनता के कारण यहां प्रोसेसिंग प्लांट की कमी (Processing plant shortage) है, जिसका फायदा पड़ोसी राज्य ओडिशा के व्यापारी उठा ले जाते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि बस्तर में बड़े पैमाने पर उत्पादन के बावजूद यहां का काजू ओड़िशा को बेच दिया जाता है. वहां से प्रोसेसिंग के बाद वही काजू ओडिशा के व्यापारी महंगी कीमतों पर बेचते हैं और बस्तर के व्यापारी उसे महंगी कीमतों पर खरीदने को मजबूर होते हैं. हालांकि विभागीय अधिकारी हमेशा से यह दावा करते आ रहे हैं कि बस्तर का काजू, दूसरे राज्यों के साथ-साथ विदेशों में भी धूम मचा रहा है. और इससे स्थानीय लोगों को रोजगार भी उपलब्ध हो रहा है, लेकिन हकीकत तो यह है कि बस्तर में पुराना प्रोसेसिंग प्लांट और सही मार्केटिंग के अभाव के कारण दूसरे राज्यों का काजू बस्तर में बिक रहा है.
हर साल लगाए जाते हैं 30 हजार हेक्टेयर जमीन पर काजू के पौधे
बस्तर में हर साल करीब 30 हजार हेक्टेयर जमीन पर काजू के पौधे लगाए जाते हैं. यहां काजू का सालाना उत्पादन ढाई से तीन हजार क्विंटल के पार हो गया है. बावजूद इसके प्रदेश के काजू उत्पादकों को इसका कोई खास लाभ नहीं मिल पा रहा है. वजह है कि पूरे इलाके में केवल 2 ही प्रोसेसिंग प्लांट हैं और वह भी बकावंड वन क्षेत्र में. लिहाजा बिचौलिए पूरे बस्तर में सक्रिय हैं और यहां का काजू सस्ते दामों पर खरीदकर उसे 3 गुना अधिक भाव में ओड़िशा के जैपुर में बेच रहे हैं.
गौरतलब है कि बस्तर की आबो-हवा काजू के लिए काफी अनुकूल है. यहां काजू के बेहतर उत्पादन को देखते हुए जिला उद्योग केंद्र ने काजू प्रोसेसिंग प्लांट स्थापित करने की बात कही थी, जिसके बाद वन विभाग और जिला उद्योग केंद्र ने बकावंड ब्लॉक के तुरेनार और राजनगर में प्रोसेसिंग प्लांट लगाए. लेकिन इस प्लांट में आज भी पुरानी पद्धति से हाथ से ही काजू फोड़ा जा रहा है. नई प्रोसेसिंग प्लांट नहीं होने से धीमी गति से यहां काजू का उत्पादन किया जा रहा है. हालांकि विभाग के अधिकारियों का दावा है कि काजू उत्पादन के लिए आसपास के करीब 300 से अधिक स्थानीय लोगों को रोजगार दिया गया है. लेकिन जिस मात्रा में बस्तर में काजू की पैदावार होती है, उस हिसाब से यह प्रोसेसिंग प्लांट काफी पुराना है और इसका काम भी बेहद धीमी गति से होता है.
जैविक होने की वजह से बेहद पौष्टिक और अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरा है बस्तर का काजू
जानकारों के मुताबिक बस्तर का काजू जैविक होने की वजह से बेहद पौष्टिक और अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरा है. इसकी ब्रांडिंग नहीं होने और यहां काजू के संग्रहण का सकल कारोबार संगठित तौर पर नहीं उभरने से बस्तर के काजू को सही पहचान नहीं मिल पा रही है. अच्छी खासी पैदावार के बावजूद विभाग इसकी मार्केटिंग और बिक्री के लिए ही गंभीर है. विभाग के पास जो प्रोसेसिंग प्लांट है वह भी काफी पुराना है. लिहाजा उत्पादन के मुताबिक विभाग के पास बेहद संसाधनों की कमी है. आलम यह है कि दूसरे राज्यों से काजू बस्तर में बड़ी मात्रा में बिक्री के लिए पहुंचता है. ऐसे में वन विभाग और सरकार को चाहिए कि मैसूर के तर्ज पर बस्तर में भी ऑटोमेटिक और नये तरह का प्रोसेसिंग प्लांट स्थापित किया जाए, ताकि बड़ी मात्रा में काजू का उत्पादन होने के साथ ही केवल बस्तर ही नहीं बल्कि पूरे देश में बस्तर के काजू की ब्रांडिंग हो.
वन विभाग का दावा-पिछले सालों के मुकाबले काजू उत्पादन क्षमता बढ़ी
इधर, वन विभाग के अधिकारी का कहना है कि पिछले सालों के मुकाबले बस्तर में काजू के उत्पादन की क्षमता बढ़ी है. ब्रांडिंग के लिए भी विभाग पूरी कोशिश कर रही है. उनका कहना है कि फिलहाल बस्तर के काजू को संजीवनी मार्ट जिला लघु वनोपज संघ और विभाग द्वारा बनाए गए विभिन्न स्टालों से बिक्री की जा रही है और ऑनलाइन भी बेचा जा रहा है. हालांकि उनका भी मानना है कि मार्केटिंग की कमी जरूर है और प्रोसेसिंग प्लांट भी बढ़ाए जाने की आवश्यकता है. जल्द ही इस ओर विभाग काम करेगा और आने वाले दिनों में नये और आधुनिक प्रोसेसिंग प्लांट स्थापित करने के साथ ही ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार मिले इसके लिए विभाग अपनी पूरी कोशिश करेगा.
गौरतलब है कि बस्तर में पिछले कई सालों से बकावंड क्षेत्र में काजू की खेती की जा रही है. हर साल विभाग इसके लिए लाखों रुपये खर्च भी कर रहा है. साथ ही बस्तर के बेलमेटल की तरह बस्तर के काजू को भी देश-दुनिया में पहचान मिले, इसके लिए अपने तरीके से मार्केटिंग करने में भी लगा हुआ है. लेकिन सही मार्केटिंग और सही उत्पादन नहीं किए जाने की वजह से आज भी बस्तर में काजू दूसरे राज्यों से बड़ी मात्रा में बिकने के लिए पहुंच रहा है.