इन महिलाओं को अपने परिवार का पेट पालने के लिए पूरे दिन जद्दोजहद करनी पड़ रही है. आम दिन की तरह महिला दिवस के दिन भी उन्हें कड़ी मेहनत और धूप में घंटों पसीना बहाना पड़ा और इस दिन भी उन्हें राहत नहीं मिल पाई.
लकड़ी का बोझा लेकर बेचने जाती हैं
आखिर चंद महिलाओं की कहानियां बता कर हम समाज के बहुत बड़े गरीब वर्ग की महिलाओं की स्थितियों का आकलन कैसे कर सकते हैं. गरियाबंद जैसे आदिवासी इलाकों में आज भी सिर पर लगभग 100 किलो का लकड़ी का बोझ जंगल से लाकर महिलाएं इसे बेचती नजर आती है.
लकड़ी जलाकर कोयला बेचती हैं
कई महिलाएं लकड़ियों को आधा जलाकर कोयला बनती हैं और फिर इसे सिर पर लेकर गांव घूमकर बेचती हैं. कई महिलाएं तो दूसरों के घर में काम करती हैं ताकि, घर का खर्च चल सके. सरकार की ओर से महिलाओं की स्थिति सुधारने के कई प्रयास तो किए गए, लेकिन जमीन में वो नाकाफी नजर आते हैं.
नहीं पता महिला दिवस क्या होता है
हर जिले में कहीं ना कहीं छोटे कार्यक्रम आयोजित कर बड़ी-बड़ी बातें की गईं, लेकिन महिलाओं के लिए उनकी स्थिति सुधारने के लिए कोई बड़े प्रयास नहीं किए गए. महिला दिवस को तो छोड़िए इन्हें तो यह भी पता नहीं कि देश-दुनिया में क्या चल रहा है. ये साफ तौर पर कहती हैं कि, हमें नहीं पता कि महिला दिवस क्या होता है.
किसानी की बनाती हैं औजार
जिले की कई महिलाएं लोहे के टुकड़े करके उन्हें पिघला कर किसानी के औजारों का रूप देती हैं. इसके लिए उन्हें करीब 12 घंटे तक कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, जिसके बाद वो औजारों को मूर्त रूप दे पाती हैं. ये महिलाएं औजार बनाने के बाद उसे बाजार में बेचती हैं, जिसमें से उन्हें महज थोड़ी सी ही आमदनी हो पाती है.
दिनभर हथौड़े चलाकर करती हैं काम
लोहे से मनचाहा औजार बनाने के लिए उन्हें गर्म भट्ठे में तपाया जाता है. उसके बाद उस पर हथौड़े से कई वार किए जाते हैं. पुरुष भट्टे के पास बैठते हैं, बच्चे पंखे की चकरी चला कर भक्तों को गर्म रखते हैं और सबसे कठिन काम इनके परिवार की महिलाएं ही करती हैं.
पांच किलों का होता है हथौड़ा
महिलाओं को गर्म लोहे पर पांच किलो वजनी हथौड़े से एक-दो नहीं बल्कि सौकड़ों वार करने पड़ते हैं. दिन भर लगातार बार-बार लेकिन इस कठिन परिश्रम के बावजूद जब कुछ देर के लिए दोपहर को काम रुकता है तो पुरुष आराम करते हैं, लेकिन महिलाएं अपने परिवार के लिए खाना बनाती हैं, बच्चों के लिए कई और व्यवस्थाएं करती हैं परिवार चलाने के लिए दूर से पानी की व्यवस्था करती हैं. परिवार को खाना खिलाने के बाद फिर आग जलाकर काम पर लग जाती है
खानाबदोश की जिंदगी जीने को हैं मजबूर
महिलाओं से जब पूछा गया कि, क्यों खानाबदोश की तरह जिंदगी जी रहे हैं. जिसपर उन्होंने बताया कि, उनके पास जमाीन का कोई टुकड़ा नहीं है और इसके साथ ही उनके इलाके में पानी की भी व्यवस्था नहीं है. रोजगार तो दूर उन्हें खाने पीने तक के लाले पड़ जाते हैं. यही वजह है कि उन्हें अपना इलाका छोड़कर खानाबदोश की जिंदगी जीने को मजबूर होना पड़ता है.
सरकार से हैं ये आस
महिलाओं ने बताया कि, गरीबी और सरकारी मदद नहीं मिलने की वजह से वो खुले आसमान के नीचे तपती धूप सहन करने को मजबूर हैं. जब हमने उनसे पूछा कि आप इतने कठिन जीवन के बीच क्या चाहते हैं तो वे कहती हैं कि, 'हमारी तो जिंदगी निकल गई अगर कोई हमारे बच्चों के लिए कुछ कर सके तो बड़ी बात होगी. कोई इन्हें शिक्षा दें दें, घर चलाने के लिए दो बीघा जमीन मिल जाए तो बड़ी महरबानी होगी.