गरियाबंद: छत्तीसगढ़ का 'प्रयाग', जहां एक-दूसरे को गले लगाती हैं तीन नदियां महानदी, पैरी और सोंढूर. इस धाम के कण-कण में भगवान विष्णु विराजमान हैं. यहां दूर-दूर से श्रद्धालु अनगिनत मनोकामनाएं लेकर पहुंचते हैं. राजवीलोचन के दर्शन से उनके कष्ट दूर हो जाते हैं. हर साल यहां माघ पूर्णिमा से लेकर महाशिवरात्रि तक विशाल मेला लगता है.
चारों दिशाओं में हैं मंदिर
मंदिर के पुजारी की मानें तो इस मंदिर का ऐतिहासिक महत्व है. मंदिरों की कलाकृति बताती हैं कि कला कितनी उत्कृष्ट थी. धर्म नगरी में बने राजीव लोचन मंदिर के चारों तरफ मंदिर हैं. पूर्व दिशा में रामचंद्र जी का मंदिर है, जो 8वीं सदी में बनाया गया था. कुलेश्वर महादेव मंदिर त्रिवेणी के बीच में स्थित है, पंचेश्वर और भूतेश्वर महादेव की मंदिर मौजूद हैं, जिसे 9वीं सदी में बनाया गया था. वहीं मध्य में राजीव लोचन और उत्तर में सोमेश्वर महादेव का मंदिर मौजूद है.
छत्तीसगढ़ की त्रिवेणी नदियां
छत्तीसगढ़ की त्रिवेणी कही जाने वाली नदियों के संगम की वजह से राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग भी कहा जाता है. यहां भारत से ही नहीं बल्कि विदेश से भी श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं. यहां अस्थियों का भी विसर्जन होता है. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अस्थियों का विसर्जन देश की कई नदियों के साथ-साथ राजिम में भी किया गया था.
कलाकार बिखेरते हैं कला की छटा
वहीं छत्तीसगढ़ का 'प्रयाग' कहे जाने वाले राजिम में महाशिवरात्रि पर भक्तों का मेला लगता है. 15 दिन तक चलने वाले पुन्नी मेले में आस्था के अलग-अलग और अलौकिक रंग देखने को मिलते हैं. सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. स्थानीय कलाकारों के रंग इस दौरान सभी को देखने को मिलते हैं.
भगवान करतें हैं मनोकामनाएं पूर्ण
तीर्थराज प्रयाग में गंगा-यमुना और सरस्वती नदी का संगम है. हर साल माघ में प्रयाग में आस्था का जनसैलाब उमड़ा है. अर्धकुंभ और कुंभ के दौरान हर हर गंगे के निनाद से वातावरण गूंज उठता है. ठीक वैसे ही राजिम का ये मेला हर आने वाले का मन मोह लेता है. महानदी-पैरी, सोंढूर का संगम और भगवान राजीवलोचन आप पर कृपा बनाए रखें.