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'चार कंधों' पर स्वास्थ्य सुविधा, 15 किमी तक घायल को उठाकर ले गए अस्पताल

कुल्हाड़ीघाट पंचायत के आश्रित गांव कुरवापानी का पटेलराम मांझी भालू के हमले में घायल हो गया था. घायल को नजदीकी अस्पताल पहुंचाने में 15 घंटे का समय लग गया. युवक को खाट पर लिटा कर रस्सियों से बांधकर चार लोग कंधे पर उठाकर अस्पताल लेकर गए.

घायल
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Published : May 29, 2019, 6:25 PM IST

गरियाबंद: सूबे में सरकार बीजेपी की रही हो या फिर कांग्रेस की, सभी ने विकास की गंगा बहाने के खूब दावे किए. लेकिन हकीकत ये है कि एक बड़ा इलाका विकास से कोसों दूर है. गांवों में लोग अगर बीमार पड़ जाएं तो कैसे जंग लड़नी पड़नी है, इसका ताजा उदाहरण कुल्हाड़ीघाट पंचायत के आश्रित गांव कुरवापानी में देखने को मिला.

बुनियादी सुविधाओं का आभाव

जिले में घायल को नजदीकी अस्पताल पहुंचाने में 15 घंटे का समय लग गया. युवक को खाट पर लिटा कर रस्सियों से बांधकर चार लोग कंधे पर उठाकर अस्पताल लेकर गए. जंगल के बीच बनी पंगडंडियों से लोगों ने घायल को कंधे पर उठाकर 15 घंटे का सफर तय किया. इनका कुसूर इतना है कि न तो इनके गांव में स्वास्थ्य सुविधा है और न ही सड़क.

18 किलोमीटर तक कोई रास्ता नहीं
कुल्हाड़ीघाट पंचायत के आश्रित गांव कुरवापानी का पटेलराम मांझी भालू के हमले में घायल हो गया था. परिजन उसे लेकर 30 किलोमीटर मैनपुर अस्पताल लेकर जाते लेकिन उसमें उन्हें 15 घंटे का वक्त लग गया. पंचायत मुख्यालय कुल्हाड़ीघाट से कुरवापानी के बीच 18 किलोमीटर तक कोई रास्ता न होने के कारण इतना समय लग गया.

घायल को रस्सियों से बांधकर लाया गया अस्पताल
परिजनों के मुताबिक पटेलराम को खाट पर लिटाकर उसमे रस्सियों से घायल को बांधा गया और चार लोग कंधा दे कर घने जंगलों के बीच की पगडंडियों से और पहाड़ की खड़ी ढलान उसे उसे उतारकर नीचे जीडार तक लेकर आए. पटेलराम को चेहरे और टांग पर कम खरोंच आई थी इसलिए अस्पताल में देरी से पहुंचने के बाद भी वह सकुशल है. वन विभाग की मदद से फिलहाल पटेलराम का इलाज जारी है.

बुनियादी सुविधाओं का आभाव
ये विकास का दावा करने वालों के लिए कड़वी सच्चाई है कि कुरवापानी जैसे गरियाबंद जिले में दर्जनों गांव हैं, जो आज भी विकास की बाट जोह रहे हैं, बुनियादी सुविधाओं को तरस रहे हैं. अधिकारी भी इस बात से इतेफाक रखते हैं.

छत्तीसगढ़ जैसे ग्रामीण परिवेश वाले राज्य के लिए चंद शहरों की चमचमाती तस्वीरें सही मायने में विकास का आधार नहीं हो सकती हैं. प्रदेश के विकास की असली परिभाषा तभी पूर्ण होगी जब यहां के सभी गांवो की तस्वीरें शहरों जैसी भले न हों लेकिन कम से कम बुनियादी सुविधाएं तो मिलें.

गरियाबंद: सूबे में सरकार बीजेपी की रही हो या फिर कांग्रेस की, सभी ने विकास की गंगा बहाने के खूब दावे किए. लेकिन हकीकत ये है कि एक बड़ा इलाका विकास से कोसों दूर है. गांवों में लोग अगर बीमार पड़ जाएं तो कैसे जंग लड़नी पड़नी है, इसका ताजा उदाहरण कुल्हाड़ीघाट पंचायत के आश्रित गांव कुरवापानी में देखने को मिला.

बुनियादी सुविधाओं का आभाव

जिले में घायल को नजदीकी अस्पताल पहुंचाने में 15 घंटे का समय लग गया. युवक को खाट पर लिटा कर रस्सियों से बांधकर चार लोग कंधे पर उठाकर अस्पताल लेकर गए. जंगल के बीच बनी पंगडंडियों से लोगों ने घायल को कंधे पर उठाकर 15 घंटे का सफर तय किया. इनका कुसूर इतना है कि न तो इनके गांव में स्वास्थ्य सुविधा है और न ही सड़क.

18 किलोमीटर तक कोई रास्ता नहीं
कुल्हाड़ीघाट पंचायत के आश्रित गांव कुरवापानी का पटेलराम मांझी भालू के हमले में घायल हो गया था. परिजन उसे लेकर 30 किलोमीटर मैनपुर अस्पताल लेकर जाते लेकिन उसमें उन्हें 15 घंटे का वक्त लग गया. पंचायत मुख्यालय कुल्हाड़ीघाट से कुरवापानी के बीच 18 किलोमीटर तक कोई रास्ता न होने के कारण इतना समय लग गया.

घायल को रस्सियों से बांधकर लाया गया अस्पताल
परिजनों के मुताबिक पटेलराम को खाट पर लिटाकर उसमे रस्सियों से घायल को बांधा गया और चार लोग कंधा दे कर घने जंगलों के बीच की पगडंडियों से और पहाड़ की खड़ी ढलान उसे उसे उतारकर नीचे जीडार तक लेकर आए. पटेलराम को चेहरे और टांग पर कम खरोंच आई थी इसलिए अस्पताल में देरी से पहुंचने के बाद भी वह सकुशल है. वन विभाग की मदद से फिलहाल पटेलराम का इलाज जारी है.

बुनियादी सुविधाओं का आभाव
ये विकास का दावा करने वालों के लिए कड़वी सच्चाई है कि कुरवापानी जैसे गरियाबंद जिले में दर्जनों गांव हैं, जो आज भी विकास की बाट जोह रहे हैं, बुनियादी सुविधाओं को तरस रहे हैं. अधिकारी भी इस बात से इतेफाक रखते हैं.

छत्तीसगढ़ जैसे ग्रामीण परिवेश वाले राज्य के लिए चंद शहरों की चमचमाती तस्वीरें सही मायने में विकास का आधार नहीं हो सकती हैं. प्रदेश के विकास की असली परिभाषा तभी पूर्ण होगी जब यहां के सभी गांवो की तस्वीरें शहरों जैसी भले न हों लेकिन कम से कम बुनियादी सुविधाएं तो मिलें.

Intro:पैकेज लायक स्टोरी--
स्लग---विकास की पोल

एंकर---सरकार भाजपा की रही हो या फिर वर्तमान की कांग्रेस सरकार हो, सभी ने विकास के दावे तो खूब किये मगर आज भी प्रदेश का एक बडा ईलाका विकास से कोसो दूर है, वहॉ के लोग आज भी सडक, बिजली पानी और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे है, विकास के दावो की पोल खोलने वाली ऐसी ही एक तस्वीर गरियाबंद में सामने आयी है। एक घायल को नजदीकी अस्पताल पहुंचाने में 15 घंटे का समय लग गया उसे उल्टी खाट पर लेटा कर रस्सियों से बांधकर चार लोग कांधा देकर घने जंगल के बीच बनी पगडंडियों से 15 किलोमीटर का पैदल सफर कर अस्पताल के आधे रास्ते तक पहुंचे क्योंकि उनके गांव तक ना कोई सड़क है ना वहां कोई स्वास्थ्य सुविधा देखिए पूरा मामला


Body:वीओ 1----अस्पताल के बिस्तर पर लेटा ये सख्स कुल्हाडीघाट पंचायत के आश्रित गांव कुरवापानी का पटेलराम मांझी है, पटेलराम कल भालू के हमले में घायल हो गया था, परिजनों को उसे अस्पताल पहुंचाने में 15 घंटे का वक्त लग गया, जबकि मैनपुर अस्पताल की दूरी महज 30 किलोमीटर है,.....मगर पंचायत मुख्यालय कुल्हाडीघाट से कुरवापानी के बीच 18 किलोमीटर तक कोई रास्ता ना होने के कारण इतना समय लग गया, परिजनों के मुताबिक पटेलराम को खाट पर लेटाकर उसमे रस्सियों से घायल को बांधा गया और चार लोग कांधा दे कर घने जंगलों के बीच की पगडंडियों से और पहाड़ की खड़ी ढलान उसे उसे उतारकर नीचे जीडार तक लेकर आए

बाइट 1--- कुमारी मालिनी कमार-पीडित की साली

वीओ 2----पटेलराम को हालांकि चेहरे और टांग पर कम खरोच आय़ी थी इसलिए अस्पताल में देरी से पहुंचने के बाद भी वह सकुशल है, और वन विभाग की मदद से फिलहाल पटेलराम का ईलाज जारी है,...... मगर ये विकास की कडवी सच्चाई है कि कुरवापानी जैसे गरियाबंद जिले में दर्जनों गांव है जो आज भी विकास की बाट जोह रहे है, बुनियादी सुविधाओं को तरस रहे है अधिकारी भी इस बात से इतेफाक रखते है और ईलाके के लोग बुनियादी सुविधाओं की मांग करते थक चुके है।
बाइट 2---आरके रायस्थ, उप संचालक, उदंती अभयारण्य................
बाइट 3--- योगेश बघेल ...ग्रामीण.............
बाइट 4--- निखिल साहू....ग्रामीण..... सफेद शर्ट.........
फाईनल वीओ----छत्तीसगढ़ जैसे ग्रामीण परिवेश वाले राज्य के लिए चंद शहरों की चमचमाती तस्वीरें सही मायने में विकास का आधार नही हो सकती है, प्रदेश के विकास की असली परिभाषा तभी पूर्ण होगी जब यहां के सभी गांवो की तस्वीरें शहरों जैसी ना सही तो कम से कम सड़क पानी बिजली जैसी मूलभूत जरूरतें तो हर गांव हर पारा टोला मोहल्लों तक को उपलब्ध होनी ही चाहिए ताकि फिर कभी किसी घायल या बीमार को खाट पर अस्पताल लाने की जरूरत ना पड़े........


फरहाज मेमन ईटीवी भारत गरियाबंदConclusion:
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