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हरेली तिहार: परंपराओं को सहेजने की कोशिश, जानिए क्या है गेड़ी का महत्व

छत्तीसगढ़ में आज हरेली त्योहार मनाया जा रहा है. हरेली तिहार के साथ ही छत्तीसगढ़ में त्योहारों का सिलसिला शुरू हो जाता है. इस दिन किसान अपने कृषि यंत्रों और पशुधन की पूजा करते हैं. गेड़ी नृत्य होता है. जो अब लुप्त होता जा रहा है. हरेली की और क्या-क्या विशेषता है जानिए इस रिपोर्ट के जरिए.

Know the importance of Gedi dance on Hareli Tihar
हरेली तिहार
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Published : Aug 8, 2021, 1:20 PM IST

Updated : Aug 8, 2021, 2:14 PM IST

गरियाबंद: छत्तीसगढ़ संस्कृति, तीज और त्योहारों का प्रदेश है. गरियाबंद जिले में हरेली पर्व (Hareli Tihar) धूमधाम से मनाया गया. हरेली खासतौर पर किसान और प्रकृति का त्योहार है. सावन की पहली अमावस्या पर पड़ने वाले हरेली तिहार के दिन किसान अपने पशुओं, कृषि उपकरणों की पूजा कर उनका आभार जताते हैं. इस दिन गेड़ी का खासा महत्व होता है. गेड़ी चढ़ना अच्छे स्वास्थ्य का प्रतीक माना जाता है. लेकिन धीरे-धीरे यह परंपरा अब कम होती जा रही है. इस हरेली पर ETV भारत आपको गेड़ी और इसके महत्व के बारे में बता रहा है.

हरेली तिहार और गेड़ी

हरेली के दिन गांवों में हर तरफ गेड़ी चढ़ते (Gedi dance on Hareli Tihar ) बच्चे और जवान नजर आते हैं. माना जाता है कि पुरातन समय में जब गलियां केवल मिट्टी की हुआ करती थी तो भरी बरसात में होने वाला त्यौहार हरेली में कीचड़ से भरी गलियों में बिना जमीन में पैर रखे बिना कीचड़ लगे गेड़ी दौड़ होती थी. परंपराओं के जानकार कृष्ण कुमार शर्मा बताते हैं कि छत्तीसगढ़ के कुछ त्योहार आदिकाल से मनाया जाता रहा है. गेड़ी दौड़ या गेड़ी नृत्य स्वास्थ्य का प्रतीक माना जाता है. इससे बच्चों का शारीरिक विकास होता है. हरेली के दिन किसान अपने उपकरणों की पूजा करते हैं.

गांव के बुजुर्ग जो कि गेड़ी बनाते हैं उनका कहना है कि गेड़ी की परंपरा अब धीरे-धीरे कम होती जा रही है. लेकिन इस परंपरा को बचाने के लिए वे अभी भी गेड़ी बना रहे हैं. लोकगीत के माध्यम से वे बताते हैं कि ' नंदा जाहि का रे, नंदा जाहि का, बांसुरी की धुन में गरवा चरैया नंदा जाहि का, गेड़ी के मचैया नंदा जाहि का, नंदा जाहि का रे, नंदा जाहि का, बांसुरी के खवैया नंदा जाहि का'.

Know the importance of Gedi dance on Hareli Tihar
गेड़ी पर चढ़ते बच्चे

गरियाबंद के किसान ताराचंद साहू बताते हैं कि हरेली के त्योहार के दिन वे अपने औजार नांगर-गैती-रांपा की पूजा करते हैं. उनका मानना है कि यह त्योहार प्रकृति को वापस लौटाने का है. इसदिन वे अपने बैलों की, अपने औजारों की पूजा कर आभार व्यक्त करते हैं. किसान इस दिन भगवान इंद्र की भी पूजा करते हैं. वे मानते हैं कि भगवान इंद्र के खुश होने से उन्हें अच्छी फसल मिलेगी और उनके घर-परिवार में सुख शांति आएगी.

गेड़ी का खास महत्व

छत्तीसगढ़ में हरेली तिहार को गेड़ी तिहार के नाम से भी जाना जाता है. गेड़ी बांस से बना होता है. जिसका आनंद बच्चों के साथ-साथ बड़े भी लेते हैं. इस दिन किसान खेत के कामों से फुर्सत होकर खेलों का मजा लेते हैं. बड़े गेड़ी पर चढ़ कर एक दूसरे को गिराने की कोशिश करते हैं. जो पहले नीचे गिर जाता है वो हार जाता है. गेड़ी रेस भी बच्चों में बहुत लोकप्रिय है. गेड़ी के साथ ही बड़ों के लिए नारियल फेंक का भी खेल खेला जाता है.

'हरेली तिहार': आज पशुधन और कृषि उपकरणों की पूजा के साथ शुरू हुआ त्योहारों का सिलसिला

हरेली के दिन सबसे ज्यादा मौज-मस्ती बच्चे करते हैं. बच्चों को साल भर से उस दिन का इंतजार रहता है. जब घर के बड़े बुजुर्ग उन्हें बांस की बनी गेड़िया बनाकर देते हैं. कई फीट ऊंची गेड़ियों पर चढ़कर बच्चे अपनी लड़खड़ाते चाल में पूरे गांव का चक्कर लगाते हैं. मौज मस्ती करते हैं. बड़े बच्चों को देखकर छोटे बच्चे भी उनके साथ गेड़िया चलना सीखते हैं. इस तरह यह परंपरा अगली पीढ़ी तक पहुंचती है. गांव के बड़े बुजुर्ग बच्चों को इस दिन प्रकृति की हरियाली का महत्व बताते हैं. पेड़ पौधों को हमेशा अपने आसपास बनाए रखने की शिक्षा देते हैं.

कैसे मनाते हैं हरेली

हरेली इंसानों और प्रकृति के बीच के आपसी रिश्ते को दर्शाता है. यही वो समय होता है जब कृषि कार्य अपने चरम पर होता है. धान रोपाई जैसे महत्वपूर्ण कार्य को पूरा कर लेते हैं. हरेली सावन महीने की पहली अमावस्या को मनाया जाता है. इस दिन किसान अपने पशुओं को औषधि खिलाते हैं. जिससे वो स्वस्थ रहें और उनका खेती का कार्य अच्छे से हो सके. हरेली के पहले ही किसान बोआई, बियासी का काम पूरा कर पशुओं के साथ आराम करते हैं. छत्तीसगढ़ और यहां का गरियाबंद जिला अपने लोकपर्व के साथ लोक व्यंजनों के लिए भी जाना जाता है. छत्तीसगढ़ में हरेली के लिए भी कुछ खास व्यंजन पकाए जाते हैं. गुड़ के चीले, ठेठरी, खुरमी और गुलगुला भजिया जैसे व्यंजन बनते हैं.

गरियाबंद: छत्तीसगढ़ संस्कृति, तीज और त्योहारों का प्रदेश है. गरियाबंद जिले में हरेली पर्व (Hareli Tihar) धूमधाम से मनाया गया. हरेली खासतौर पर किसान और प्रकृति का त्योहार है. सावन की पहली अमावस्या पर पड़ने वाले हरेली तिहार के दिन किसान अपने पशुओं, कृषि उपकरणों की पूजा कर उनका आभार जताते हैं. इस दिन गेड़ी का खासा महत्व होता है. गेड़ी चढ़ना अच्छे स्वास्थ्य का प्रतीक माना जाता है. लेकिन धीरे-धीरे यह परंपरा अब कम होती जा रही है. इस हरेली पर ETV भारत आपको गेड़ी और इसके महत्व के बारे में बता रहा है.

हरेली तिहार और गेड़ी

हरेली के दिन गांवों में हर तरफ गेड़ी चढ़ते (Gedi dance on Hareli Tihar ) बच्चे और जवान नजर आते हैं. माना जाता है कि पुरातन समय में जब गलियां केवल मिट्टी की हुआ करती थी तो भरी बरसात में होने वाला त्यौहार हरेली में कीचड़ से भरी गलियों में बिना जमीन में पैर रखे बिना कीचड़ लगे गेड़ी दौड़ होती थी. परंपराओं के जानकार कृष्ण कुमार शर्मा बताते हैं कि छत्तीसगढ़ के कुछ त्योहार आदिकाल से मनाया जाता रहा है. गेड़ी दौड़ या गेड़ी नृत्य स्वास्थ्य का प्रतीक माना जाता है. इससे बच्चों का शारीरिक विकास होता है. हरेली के दिन किसान अपने उपकरणों की पूजा करते हैं.

गांव के बुजुर्ग जो कि गेड़ी बनाते हैं उनका कहना है कि गेड़ी की परंपरा अब धीरे-धीरे कम होती जा रही है. लेकिन इस परंपरा को बचाने के लिए वे अभी भी गेड़ी बना रहे हैं. लोकगीत के माध्यम से वे बताते हैं कि ' नंदा जाहि का रे, नंदा जाहि का, बांसुरी की धुन में गरवा चरैया नंदा जाहि का, गेड़ी के मचैया नंदा जाहि का, नंदा जाहि का रे, नंदा जाहि का, बांसुरी के खवैया नंदा जाहि का'.

Know the importance of Gedi dance on Hareli Tihar
गेड़ी पर चढ़ते बच्चे

गरियाबंद के किसान ताराचंद साहू बताते हैं कि हरेली के त्योहार के दिन वे अपने औजार नांगर-गैती-रांपा की पूजा करते हैं. उनका मानना है कि यह त्योहार प्रकृति को वापस लौटाने का है. इसदिन वे अपने बैलों की, अपने औजारों की पूजा कर आभार व्यक्त करते हैं. किसान इस दिन भगवान इंद्र की भी पूजा करते हैं. वे मानते हैं कि भगवान इंद्र के खुश होने से उन्हें अच्छी फसल मिलेगी और उनके घर-परिवार में सुख शांति आएगी.

गेड़ी का खास महत्व

छत्तीसगढ़ में हरेली तिहार को गेड़ी तिहार के नाम से भी जाना जाता है. गेड़ी बांस से बना होता है. जिसका आनंद बच्चों के साथ-साथ बड़े भी लेते हैं. इस दिन किसान खेत के कामों से फुर्सत होकर खेलों का मजा लेते हैं. बड़े गेड़ी पर चढ़ कर एक दूसरे को गिराने की कोशिश करते हैं. जो पहले नीचे गिर जाता है वो हार जाता है. गेड़ी रेस भी बच्चों में बहुत लोकप्रिय है. गेड़ी के साथ ही बड़ों के लिए नारियल फेंक का भी खेल खेला जाता है.

'हरेली तिहार': आज पशुधन और कृषि उपकरणों की पूजा के साथ शुरू हुआ त्योहारों का सिलसिला

हरेली के दिन सबसे ज्यादा मौज-मस्ती बच्चे करते हैं. बच्चों को साल भर से उस दिन का इंतजार रहता है. जब घर के बड़े बुजुर्ग उन्हें बांस की बनी गेड़िया बनाकर देते हैं. कई फीट ऊंची गेड़ियों पर चढ़कर बच्चे अपनी लड़खड़ाते चाल में पूरे गांव का चक्कर लगाते हैं. मौज मस्ती करते हैं. बड़े बच्चों को देखकर छोटे बच्चे भी उनके साथ गेड़िया चलना सीखते हैं. इस तरह यह परंपरा अगली पीढ़ी तक पहुंचती है. गांव के बड़े बुजुर्ग बच्चों को इस दिन प्रकृति की हरियाली का महत्व बताते हैं. पेड़ पौधों को हमेशा अपने आसपास बनाए रखने की शिक्षा देते हैं.

कैसे मनाते हैं हरेली

हरेली इंसानों और प्रकृति के बीच के आपसी रिश्ते को दर्शाता है. यही वो समय होता है जब कृषि कार्य अपने चरम पर होता है. धान रोपाई जैसे महत्वपूर्ण कार्य को पूरा कर लेते हैं. हरेली सावन महीने की पहली अमावस्या को मनाया जाता है. इस दिन किसान अपने पशुओं को औषधि खिलाते हैं. जिससे वो स्वस्थ रहें और उनका खेती का कार्य अच्छे से हो सके. हरेली के पहले ही किसान बोआई, बियासी का काम पूरा कर पशुओं के साथ आराम करते हैं. छत्तीसगढ़ और यहां का गरियाबंद जिला अपने लोकपर्व के साथ लोक व्यंजनों के लिए भी जाना जाता है. छत्तीसगढ़ में हरेली के लिए भी कुछ खास व्यंजन पकाए जाते हैं. गुड़ के चीले, ठेठरी, खुरमी और गुलगुला भजिया जैसे व्यंजन बनते हैं.

Last Updated : Aug 8, 2021, 2:14 PM IST
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