गरियाबंद : किसानों का मुद्दा हर पार्टी के चुनावी एजेंडे में सबसे पहले शामिल किया जाता है. किसानों की स्थिति सुधारने की बात हो या फसलों का सही मूल्य अदा करने की बात हो. चुनाव प्रचार का पहला मुद्दा किसानों को ही बनाया जाता है, लेकिन चुनाव जीतने के बाद ये पार्टियां किसानों को कितना खुश कर पाती हैं, ये किसी से छिपा नहीं है. छत्तीसगढ़ में भी भूपेश सरकार ने किसानों से कई वादे किए थे, लेकिन सरकार के एक फैसले से ये किसान रूठे नजर आ रहे हैं.
धान कटाई शुरू हो गई है. फसल काटकर खलिहान में लाई जा रही है, दो-तीन दिनों में मिंजाई आदि का काम करते हुए फसल बेचने लायक स्थिति में पहुंच जाएगी, लेकिन खरीदी शुरू नहीं होने के चलते फसल काटने वाले, मिंजाई करने वाले मजदूर समेत किसानों को घर खर्च के लिए रुपयों की जरूरत पड़ेगी, ऐसे में धान खरीदी की तारीख आगे बढ़ाए जाने के चलते लंबे समय तक किसानों के हाथ खाली रहेंगे और मजदूर भी पैसों के लिए परेशान होते रहेंगे.
फसल बेचने को मजबूर किसान
धान खरीदी की तारीख आगे बढ़ाए जाने के कारण किसान अपनी फसल मजबूरी में बिचौलियों और निजी दुकानदारों को कम दाम पर भी बेच रहे हैं, उनका कहना है कि, 'जहां सरकार प्रति क्विंटल धान के 2500 देती है तो वहीं बिचौलिए 1400 रुपये से ज्यादा देने को तैयार नहीं हैं. ऐसे में रुपयों की जरूरत की वजह से नुकसान उठाकर किसान फसल बेच रहे हैं.
किसानों की बढ़ रही समस्या
धान खरीदी की तारीख बढ़ाए जाने से किसानों को अब फसलों को सुरक्षित रखने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है. मौसम में होने वाले उतार-चढ़ाव की वजह से किसानों के सामने अब कट चुकी फसलों को मौसम से बचाए रखने की समस्या खड़ी हो गई है. किसानों की हितैषी सरकार कही जाने वाले भूपेश सरकार ने अब तक किसानों को कई तोहफे दिए थे, लेकिन सरकार के इस फैसले के बाद किसानों ने सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है और इसे वापस लेने की मांग कर रहे हैं.