ETV Bharat / state

3 दिन के रेस्क्यू के बाद मैत्री बाग भेजा गया यूरेशियन ईगल उल्लू - भिलाई में ईगल उल्लू

भिलाई में मंगलवार को वन विभाग की टीम ने एक उल्लू का रेस्क्यू किया. वन विभाग और नोवा नेचर की टीम ने उल्लू का रेस्क्यू कर उसे मैत्री बाग भेज दिया है.

eurasian eagle owl rescue done in bhilai
यूरेशियन ईगल उल्लू
author img

By

Published : Apr 27, 2021, 8:57 PM IST

दुर्ग: वन विभाग और नोवा नेचर ने मंगलवार को संयुक्त रेस्क्यू ऑपरेशन चलाकर एक यूरेशियन ईगल उल्लू की जान बचाई. भिलाई के जवाहर नगर में ईगल उल्लू के होने की सूचना मिली. जिसके बाद तीन दिनों तक संयुक्त ऑपरेशन चलाया गया और ईगल उल्लू को सुरक्षित मैत्री बाग जू भिलाई में छोड़ा दिया गया है.

यूरेशियन ईगल उल्लू का रेस्क्यू

वन विभाग को भिलाई के जवाहर नगर निवासी अनिल सहाय के घर की छत पर ईगल उल्लू के होने की सूचना मिली. अनिल सहाय की बेटी आभा सहाय ने बताया कि कुछ शरारती तत्व उल्लू को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन वन विभाग की टीम मौके पर पहुंची तो वो लोग मौके से भाग निकले. जिसके बाद उल्लू उनकी छत पर आकर बैठ गया.

वन विभाग ने इसे यूरेशियन ईगल उल्लू बताया

वन विभाग के अमले ने वयस्क अवस्था के यूरेशियन ईगल उल्लू की पहचान की. इसका साइज तकरीब दो से ढाई फीट का है. गर्मी की वजह से उल्लू लोगों के घर की छत पर बैठा था. वन विभाग और नोवा नेचर ने संयुक्त रेस्क्यू ऑपरेशन चलाकर 3 दिन बाद ईगल उल्लू को को बचाया.

टीम को हुई परेशानी

वन विभाग को उल्लू का रेस्क्यू करने में काफी परेशानी हुई. क्योंकि टीम जब भी उल्लू के पास जाती वह उड़ जाता था और दूसरे घरों की छत पर जाकर बैठ जाता था. करीब 3 दिनों तक ये सिलसिला चलता रहा. आखिरकार ज्वाइंट टीम ने तीसरे दिन रेस्क्यू कर उल्लू को सफलता पूर्वक बचा लिया. इस रेस्क्यू ऑपरेशन में वन विभाग के सहायक परिक्षेत्र अधिकारी भिलाई 3 के विक्रम ठाकुर, वनरक्षक सुपेला एन रामा राव, नोवा नेचर अजय चौधरी की अहम भूमिका रही.

सूरजपुर में इलाज के दौरान नन्हें हाथी की मौत

क्या है यूरेशियन ईगल उल्लू ?

यूरेशियन ईगल उल्लू यूरेशिया के ज्यादातर हिस्सों में पाया जाता हैं. इसे चील उल्लू और बुहु भी कहा जाता है. कभी-कभी इसे केवल ईगल उल्लू भी कहा जाता है. इस पक्षी के कान के ऊपरी हिस्से विशिष्ट प्रकार के होते हैं. जो गहरे काले रंग के होते हैं. नारंगी आंखें, विचित्र पंख और ढके हुए कान वाले यूरेशियन ईगल उल्लू यूरोप, एशिया और उत्तरी अफ्रीका के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं. भारत के भी ज्यादातर हिस्सों में ये दिख जाते हैं. दिन में ये सुरक्षित जगह तलाश कर आराम करते हैं. इनका ज्यादातर समय जमीन पर गुजरता है. ये भी लोमड़ी की तरह अवसरवादी जीव हैं. जमीन पर इंतजार के बाद शिकार करता हैं. ये उल्लुओं की सबसे बड़ी प्रजातियों में से एक है.

चट्टानों वाली जगह पर करते हैं शिकार

ईगल उल्लू ज्यादातर चट्टानी, खुले निवास, पेड़, खेतों, मैदान, गर्म क्षेत्रों और घास के मैदानों की तरह चट्टानी क्षेत्रों में रहते हैं. लेकिन ज्यादातर ये पक्षी पर्वतीय क्षेत्र, अन्य चट्टान के क्षेत्रों और झाड़दार क्षेत्र या फिर झीलों के किनारे शिकार करने के लिए इन जगहों पर पाए जाते हैं. मुख्य रूप से इनका आहार छोटे स्तनधारी जैसे कि चूहा और खरगोश होते हैं. आहार श्रृंखला में ये बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

दुर्ग: वन विभाग और नोवा नेचर ने मंगलवार को संयुक्त रेस्क्यू ऑपरेशन चलाकर एक यूरेशियन ईगल उल्लू की जान बचाई. भिलाई के जवाहर नगर में ईगल उल्लू के होने की सूचना मिली. जिसके बाद तीन दिनों तक संयुक्त ऑपरेशन चलाया गया और ईगल उल्लू को सुरक्षित मैत्री बाग जू भिलाई में छोड़ा दिया गया है.

यूरेशियन ईगल उल्लू का रेस्क्यू

वन विभाग को भिलाई के जवाहर नगर निवासी अनिल सहाय के घर की छत पर ईगल उल्लू के होने की सूचना मिली. अनिल सहाय की बेटी आभा सहाय ने बताया कि कुछ शरारती तत्व उल्लू को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन वन विभाग की टीम मौके पर पहुंची तो वो लोग मौके से भाग निकले. जिसके बाद उल्लू उनकी छत पर आकर बैठ गया.

वन विभाग ने इसे यूरेशियन ईगल उल्लू बताया

वन विभाग के अमले ने वयस्क अवस्था के यूरेशियन ईगल उल्लू की पहचान की. इसका साइज तकरीब दो से ढाई फीट का है. गर्मी की वजह से उल्लू लोगों के घर की छत पर बैठा था. वन विभाग और नोवा नेचर ने संयुक्त रेस्क्यू ऑपरेशन चलाकर 3 दिन बाद ईगल उल्लू को को बचाया.

टीम को हुई परेशानी

वन विभाग को उल्लू का रेस्क्यू करने में काफी परेशानी हुई. क्योंकि टीम जब भी उल्लू के पास जाती वह उड़ जाता था और दूसरे घरों की छत पर जाकर बैठ जाता था. करीब 3 दिनों तक ये सिलसिला चलता रहा. आखिरकार ज्वाइंट टीम ने तीसरे दिन रेस्क्यू कर उल्लू को सफलता पूर्वक बचा लिया. इस रेस्क्यू ऑपरेशन में वन विभाग के सहायक परिक्षेत्र अधिकारी भिलाई 3 के विक्रम ठाकुर, वनरक्षक सुपेला एन रामा राव, नोवा नेचर अजय चौधरी की अहम भूमिका रही.

सूरजपुर में इलाज के दौरान नन्हें हाथी की मौत

क्या है यूरेशियन ईगल उल्लू ?

यूरेशियन ईगल उल्लू यूरेशिया के ज्यादातर हिस्सों में पाया जाता हैं. इसे चील उल्लू और बुहु भी कहा जाता है. कभी-कभी इसे केवल ईगल उल्लू भी कहा जाता है. इस पक्षी के कान के ऊपरी हिस्से विशिष्ट प्रकार के होते हैं. जो गहरे काले रंग के होते हैं. नारंगी आंखें, विचित्र पंख और ढके हुए कान वाले यूरेशियन ईगल उल्लू यूरोप, एशिया और उत्तरी अफ्रीका के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं. भारत के भी ज्यादातर हिस्सों में ये दिख जाते हैं. दिन में ये सुरक्षित जगह तलाश कर आराम करते हैं. इनका ज्यादातर समय जमीन पर गुजरता है. ये भी लोमड़ी की तरह अवसरवादी जीव हैं. जमीन पर इंतजार के बाद शिकार करता हैं. ये उल्लुओं की सबसे बड़ी प्रजातियों में से एक है.

चट्टानों वाली जगह पर करते हैं शिकार

ईगल उल्लू ज्यादातर चट्टानी, खुले निवास, पेड़, खेतों, मैदान, गर्म क्षेत्रों और घास के मैदानों की तरह चट्टानी क्षेत्रों में रहते हैं. लेकिन ज्यादातर ये पक्षी पर्वतीय क्षेत्र, अन्य चट्टान के क्षेत्रों और झाड़दार क्षेत्र या फिर झीलों के किनारे शिकार करने के लिए इन जगहों पर पाए जाते हैं. मुख्य रूप से इनका आहार छोटे स्तनधारी जैसे कि चूहा और खरगोश होते हैं. आहार श्रृंखला में ये बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.