दुर्ग: आपने रामायण धारावाहिक में जटायु का जिक्र तो सुना ही होगा और देखा भी होगा. इसके अलावा रामायण पढ़ी होगी जिसमें जटायु, रावण से युद्ध करता है. उस युद्ध में रावण जटायु के पंख काट देता है. जिससे वह जमीन पर गिर जाता है. दुर्ग में अब इसी जटायु से जुड़े एक गिद्ध की प्रजाति का पता चला है. इसकी पहचान इजीप्शियन वल्चर के तौर पर हुई है. जिसके बाद वन विभाग और जिला प्रशासन में इस बात को लेकर खुशी है. दुर्ग प्रशासन ने इस दुर्लभ प्रजाति के गिद्ध को बचाने के लिए कमर कस ली है.
धमधा में बनेगा वल्चर रेस्टोरेंट,लुप्त गिद्धों का होगा संरक्षण
दुर्ग के धमधा ब्लॉक में गिद्धों की लुप्त प्रजाति ‘इजीप्शियन वल्चर’ को देखा गया है. जिसके बाद जिले में इनके संरक्षण की उम्मीदें बढ़ गई हैं. कलेक्टर सर्वश्वर भुरे ने इस प्रजाति के संरक्षण के लिए वन विभाग और रेवेन्यू विभाग द्वारा वल्चर रेस्टारेंट के लिए जमीन चिन्हांकित करने के निर्देश दिए हैं. दुर्ग डीएफओ धम्मशील गणवीर ने बताया कि धमधा ब्लॉक में गिद्धों की इजीप्शियन प्रजाति अर्थात इजीप्शियन वल्चर को देखा गया है.ये वहां मौजूद बड़े पेड़ों में घोंसला बनाकर रह रहे हैं.
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इजीप्शियन वल्चर की प्रजाति के संरक्षण और संवर्धन के लिए यह एक अच्छा संकेत है. कलेक्टर ने वन और राजस्व विभाग को निर्देशित किया है कि ऐसे क्षेत्रों में जहां ‘इजीप्शियन वल्चर’ की बसाहट सबसे अधिक पाई गई है, वहां इनके कंजर्वेशन के लिए संरक्षित क्षेत्र बनाया जाए. कलेक्टर ने राजस्व विभाग की मदद से इसके लिए जगह चिन्हांकित करने का निर्णय लिया है. इसके बाद वन और राजस्व विभाग की संयुक्त टीम ने धमधा ब्लॉक जाकर जगह चिन्हांकन के लिए सर्वे का कार्य किया है.
इजीप्शियन वल्चर के संरक्षण की मुहिम हुई तेज
डीएफओ धम्मशील गणवीर ने बताया कि इजीप्शियन वल्चर की प्रजाति दुर्ग ही नहीं छत्तीसगढ़ में दिखाई देना एक बड़ी बात है. यह एक दुर्लभ प्रजाति है. इसके संरक्षण की जरूरत है. इसके लिए एक खास क्षेत्र ‘वल्चर रेस्टारेंट’ बनाया जाएगा. गिद्ध मृतभक्षी होते हैं. इनके भोजन के लिए मरने वाले जानवरों को यहां लाया जाएगा. यहां ऐसे पौधे लगाये जाएंगे जो गिद्धों की बसाहट के अनुकूल होंगे.गिद्ध पीपल, बरगद जैसे ऊंचे पेड़ों में बसाहट बनाते हैं. संरक्षित वाले क्षेत्र में भी इसी तरह के पौधे लगाए जाएंगे. ‘वल्चर रेस्टारेंट’ में उस हर सुविधा का विकास होगा, जो गिद्धों की बसाहट के लिए उपयोगी है.
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डाइक्लोफिनाक दवा के चलते गिद्धों की संख्या में आई थी भारी गिरावट
डीएफओ धम्मशील गणवीर ने बताया कि भारत में गिद्धों की 9 प्रजातियां पाई जाती हैं. इनमें इजीप्शियन वल्चर भी एक प्रजाति है. यह छोटे आकार के गिद्ध होते हैं. उन्होंने बताया कि भारत में पहले बड़ी संख्या में गिद्ध पाये जाते थे. बीते एक दशक से इनमें तेजी से गिरावट आई. इसका कारण था डाइक्लोफिनाक औषधि जो मवेशियों को दी जाती थी. मवेशियों के मरने के बाद जब गिद्ध इनके गुर्दे खाते थे तो यह औषधि भी उनके पेट में चली जाती थी और इससे उनकी मौतें होने लगीं. इसी को देखते हुए देश भर में इस औषधि पर प्रतिबंध लगा दिया गया. अब इनके संरक्षण के लिए कार्य किया जा रहा है.
क्या कहते हैं पक्षी विशेषज्ञ
पक्षी विशेषज्ञ अनुभव शर्मा ने बताया कि, भारत में पाये जाने वाले इजीप्शियन वल्चर दो प्रकार के होते हैं. एक तो स्थाई रूप से रहने वाले और दूसरे माइग्रेटरी. भारतीय साहित्य में इनके बारे में दिलचस्प वर्णन है. इजीप्शियन वल्चर को संस्कृत साहित्य में शकुंत कहा गया है. अभिज्ञान शाकुंतलम में ऋषि कण्व को शकुंतला ऐसे ही शकुंत पक्षी के वन में प्राप्त हुई थी. जिसकी वजह से उन्होंने उसका नामकरण शकुंतला रख दिया. इसी शकुंतला के बेटे भरत से हमारे देश का नाम भारत पड़ा. माइग्रेटरी शकुंत पक्षी हिमालय से उड़ान भर कर रामेश्वर तक पहुंचते हैं. इनके बारे में कहा गया है कि ये शिव भक्त होते हैं और गंगा जल हिमालय से लेकर रामेश्वरम में भगवान शिव को चढ़ाते हैं.इजीप्शियन वल्चर के गर्दन में सफेद बाल होते हैं. इनका आकार थोड़ा छोटा होता है. ब्रीडिंग के वक्त इनकी गर्दन थोड़ी सी नारंगी हो जाती है