धमतरी : जिला मुख्यालय से करीब 22 किलोमीटर दूर स्थित सेमरा गांव में एक दस्तूर आज भी कायम है. इस गांव में सभी त्योहारों को एक सप्ताह पहले ही मनाने का रिवाज जारी है. इस परंपरा के अतीत में दास्तां छिपी है, जिसमें ग्रामीण सदियों से अपने ग्राम देवता को खुश करने के लिए हर त्योहार को एक सप्ताह पहले ही मना लेते हैं, जो अब इस गांव की पहचान बन चुकी है.
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ग्रामीण बताते हैं कि 'सैकड़ों साल पहले गांव के बाहर एक बुजुर्ग आकर रहने लगे थे, जिनका नाम सिरदार था. उनकी चमत्कारिक शक्तियों और बातों से गांव के लोगों की परेशानियां दूर होती थीं. इससे उनके प्रति लोगों की आस्था और विश्वास गहराने लगा. लोग उन्हें पूर्वज मानकर पूजने लगे, तब से गांव में हर शुभ काम में उनकी पूजा की जाती है'.
अंधविश्वास या आस्था
भले ही आज के जमाने के लोग इस पर यकीन न करें, लेकिन कहा जाता है कि ऐसा नहीं करने पर उन पर आफत आ सकती है. सदियों से चली आ रही इस परंपरा को युवा वर्ग भी अंधविश्वास के बजाय आस्था से जोड़कर देखते हैं. इसे संजोए रखने की बात भी करते हैं. युवा बताते हैं कि इसी बहाने अपने रिश्तेदारों से मिलने और मेहमानवाजी का मौका उन्हें मिल जाता है, जो यहां त्योहार में आते हैं.
परंपरा से हटकर मना रहे त्योहार
इस मान्यता की शुरुआत कब हुई, इसकी जानकारी किसी के पास नहीं है. ग्रामीणों को कहना है कि 'किसी समय गांव के प्रमुखों ने परंपरा से हटकर नियत तिथि के अनुसार गांव में त्योहार मनाया था, तो कई विपत्तियां आई थीं. गांव में आग लगने की घटनाएं और संकट आने लगे थे इसलिए अब उन्हें नाराज करने की बात कहते हुए चार त्योहार सप्ताहभर पहले मना लेते हैं.
वैसे तिथि से पहले त्योहार मनाए की वजह से ही यह गांव काफी मशहूर हो गया है, जिसे देखने लोग दूर-दराज से बड़ी संख्या में आते हैं.