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यहां रावण दहन करके नहीं, दशानन के नग्न पुतले को काटकर दशहरा मनाते हैं लोग - रावण की प्रतीमा के वध का रिवाज

सोनामगर गांव में बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व दशहरा दशमी के दिन नहीं बल्कि एकादशी के दिन मनाया जाता है. इसके साथ ही यहां दशहरा रावण के पुतले को जलाकर नहीं बल्कि उसके नग्न पुतले को तलवार से काटकर मनाया जाता है.

दशानन के नग्न पुतले को काटकर दशहरा मनाते हैं लोग
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Published : Oct 10, 2019, 9:12 PM IST

धमतरी: असत्य पर सत्य की जीत का पर्व दशहरा अलग-अलग जगहों में अलग-अलग रिवाजों से मनाया जाता है. कहीं रावण दहन होता है तो कहीं रावण की पूजा की जाती है. जिले के सोनामगर गांव में विजयादशमी मनाने की परंपरा बेहद अलग है. यहां रावण दहन नहीं होता बल्कि दशानन का नग्न पुतला तलवार के काटने का रिवाज है.

दशानन के नग्न पुतले को काटकर दशहरा मनाते हैं लोग

पुजारी रावण की नग्न प्रतिमा को तलवार से काटता है, जिसके बाद लोग प्रतिमा के मिट्टी को अपने घर लेकर जाते हैं. साथ ही एक-दूसरे को तिलक लगाकर खुशियां मनाते हैं.

हर साल होती है लोगों की भीड़
सिहावा के सोनामगर गांव में मनाए जाने वाले इस अनोखे दशहरे का लोगों को हर साल इंतजार रहता है. सुबह से ही यहां लोगों का जमावड़ा लगना शुरू हो जाता है. कई पीढ़ियों से चली आ रही इस प्रथा को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं.

ऐसी है मान्यता
इस धार्मिक उत्सव के बारे में मान्यता है कि, 'सदियों पहले वासना से ग्रसित एक असुर का वध माता चण्डिका ने अपने खड़ग से किया था. तब से ये परंपरा चली आ रही है और इलाके के लोग आज भी आस्था की इस डोर को थामे हुए हैं.

पीढ़ी दर पीढ़ी से कुम्हार बना रहे हैं रावण की प्रतीमा
मूर्ति बनाने के लिए घर-घर से लाए मिट्टी को गढ़ने की शुरुआत सुबह से ही हो जाती है. गांव के कुम्हार पीढ़ी दर पीढ़ी मूर्ति बनाते आ रहे हैं. इसमें सभी धर्म और संप्रदाय के लोग सहयोग करते हैं.

पढे़ं : छत्तीसगढ़ निकाय चुनाव से जुड़ी हर खबर और अपडेट के लिए ETV भारत पर देखिए 'नगर सरकार'

महिलाएं नहीं होती शामिल
अरसे से चले आ रहे इस दशहरे की किसी भी पूजा और रावण वध के कार्यक्रम में महिलाएं शामिल नही होती हैं.

धमतरी: असत्य पर सत्य की जीत का पर्व दशहरा अलग-अलग जगहों में अलग-अलग रिवाजों से मनाया जाता है. कहीं रावण दहन होता है तो कहीं रावण की पूजा की जाती है. जिले के सोनामगर गांव में विजयादशमी मनाने की परंपरा बेहद अलग है. यहां रावण दहन नहीं होता बल्कि दशानन का नग्न पुतला तलवार के काटने का रिवाज है.

दशानन के नग्न पुतले को काटकर दशहरा मनाते हैं लोग

पुजारी रावण की नग्न प्रतिमा को तलवार से काटता है, जिसके बाद लोग प्रतिमा के मिट्टी को अपने घर लेकर जाते हैं. साथ ही एक-दूसरे को तिलक लगाकर खुशियां मनाते हैं.

हर साल होती है लोगों की भीड़
सिहावा के सोनामगर गांव में मनाए जाने वाले इस अनोखे दशहरे का लोगों को हर साल इंतजार रहता है. सुबह से ही यहां लोगों का जमावड़ा लगना शुरू हो जाता है. कई पीढ़ियों से चली आ रही इस प्रथा को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं.

ऐसी है मान्यता
इस धार्मिक उत्सव के बारे में मान्यता है कि, 'सदियों पहले वासना से ग्रसित एक असुर का वध माता चण्डिका ने अपने खड़ग से किया था. तब से ये परंपरा चली आ रही है और इलाके के लोग आज भी आस्था की इस डोर को थामे हुए हैं.

पीढ़ी दर पीढ़ी से कुम्हार बना रहे हैं रावण की प्रतीमा
मूर्ति बनाने के लिए घर-घर से लाए मिट्टी को गढ़ने की शुरुआत सुबह से ही हो जाती है. गांव के कुम्हार पीढ़ी दर पीढ़ी मूर्ति बनाते आ रहे हैं. इसमें सभी धर्म और संप्रदाय के लोग सहयोग करते हैं.

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महिलाएं नहीं होती शामिल
अरसे से चले आ रहे इस दशहरे की किसी भी पूजा और रावण वध के कार्यक्रम में महिलाएं शामिल नही होती हैं.

Intro:विजयादशमी मानने अनोखा रिवाज,नग्न रावण का खड्ग से वध

असत्य पर सत्य की जीत का पर्व दशहरा अलग अलग जगहों में अलग अलग तरीके से मनाया जाता है.कही रावण दहन नही होता तो कही गोलियां दागकर सलामी देते है.छत्तीसगढ़ के धमतरी के सोनामगर गांव में विजयादशमी मनाने की पुरानी परंपरा बिलकुल अलग ही नही बल्कि बेहद खास भी है यहा रावण को जलाया नही जाता बल्कि मिट्टी के नग्न रावण बनाकर उन्हें तलवार से काट देते है.


धमतरी जिला मुख्यालय से करीब 70 किमी दूर सिहावा के सोनामगर गांव में दशहरा देखने सुबह से ही लोगो को जमावड़ा लगना शुरू हो जाता है क्योकि लोग गांव की उस अनोखी परम्परा का गवाह बनना चाहते है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रही है.इस वनवासी गाॅव के अनोखे दस्तूर को देखने हर साल लोगो का हुजूम उमड़ पड़ता है.बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व यहां विजयादशमी के दिन नही बल्कि एकादशी को धूमधाम से मनाया जाता है.इस गांव मे बुराई के प्रतीक रुप मे रावण का पुतला नही बल्कि सहस्त्रबाहु रावन की नग्न मुर्ति होती है जिसे पुजारी के व्दारा वध किए जाने के बाद लोग नोच नोचकर मुर्ति की पवित्र मिटटी को अपने घर ले जाते है और एक दूसरे को तिलक लगाकर जीत की खुशियां मनाते है.


बता दे कि पुरातन काल से ही इलाके की पहचान बन चुके इस दशहरे को देखने लोग दूर दूर से आते है पहले गांव के बाहर शीतला माता को साधने के बाद चाॅदमारी होती है फिर पूजा अराधना का दौर सांझ ढलने के बाद ही होता है खास बात ये है कि मुर्ति बनाने के लिए घर घर से लाए मिटटी को गढने की शुरुआत अलसुबह से ही हो जाती है वही गांव के कुम्हार पीढ़ी दर पीढ़ी बनाते आ रहे है इसमे सभी धर्म सम्प्रदाय के लोग हाथ से हाथ मिलाकर सहयोग करते है.

एकादशी की शाम नग्नमुर्ति को मन्दिर का पुजारी द्वारा मंत्रोचार के बाद तलवार से क्षप्त विक्षप्त कर देता है बाद इसके मुर्ति को नोचने लोगो को हुजूम उमड़ पड़ता है और पवित्र मिटटी के लिऐ पाने होड़ मच जाती है विधि विधान से किए जाने वाले इस धार्मिक उत्सव के बारे मे मान्यता है कि सदियों पहले वासना से ग्रसित एक असुर का वध माता चण्डिका ने अपने खडग से किया था.तब से ये परम्परा चली आ रही है और इलाके के लोग आज भी आस्था की इस डोर को थामे चल रहे है.कुछ अलग तरह से मनाए जाने वाले दशहरे के इस कार्यक्रम मे महिलाए शामिल नही होती और दिगर जगहो से अलग यहां बजाए सोनपत्ती के रावन वध के मिटटी को ही माथे पर तिलक लगाकर जीत की खुशी मनाई जाती है.

बहरहाल सप्तऋषियो की कर्मभूमि मे मौजूद सिहावा का यह सोनामगर गाॅव दशहरे के इतिहास को अपने तरीके से संजोऐ सदियो से चला आ रहा है और ये धार्मिक विरासत पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ रही है जिसे देखने और समझने लोगो को हर साल इंतजार रहता है.

बाईट.....तुका राम बैस पुजारी
बाईट....मनोज चक्रधारी मूर्तिकार
बाईट.....तुका राम साहू
बाईट.....संतोष मिश्रा टी आई
जय लाल प्रजापति सिहावा धमतरीBody:8319178303Conclusion:
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