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हॉस्टल में नहीं मिल रहा छात्राओं को दाखिला, परिजनों ने लगाई जिम्मेदारों से गुहार

जिले के नगरी ब्लॉक सिंहपुर में आदिवासी छात्राओं को आदिम जाति विकास विभाग के अनुसचित जाति छात्रावास में दाखिला नहीं मिल रहा है, जिससे गरीब असहाय छात्राएं खासा परेशान हैं.

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Published : Jul 10, 2019, 1:29 PM IST

हॉस्टल में नही मिल रहा दाख़िला

धमतरी: प्रदेश सरकार समाज के पिछड़े तबके को आगे बढ़ाने के लिए तमाम योजनाएं चला रही है, लेकिन उसी सरकार के कुछ नियम इन सुविधाओं को हकदारों तक पहुंचाने में रोड़ा बन गए हैं. इससे वो तमाम सुविधाएं गरीब और असहाय छात्र-छात्राओं को नहीं मिल पा रही है. इसकी वजह से छात्र-छात्राएं और उनके परिजन सरकारी भवनों का चक्कर काटते नजर आ रहे हैं.

वीडियो

मामला धमतरी जिले के नगरी ब्लॉक के सिंहपुर में बने आदिम जाति विकास विभाग के अनुसचित जाति छात्रावास का है. यहां गरीब असहाय बच्चों को छात्रावास में दाखिला नहीं मिल रहा है, जिससे इलाके के नन्हें-मुन्हें बच्चों को छात्रावास के दहजील से मायूसी लेकर वापस लौटना पड़ जा रहा है. जबकि हॉस्टल में अभी भी बड़ी संख्या में सीटें खाली हैं.

छात्राओं को होती है परेशानी
गरीब तबके की छात्राओं को अगर स्कूल में एडमीशन मिल जाता है तो इनको रोजाना स्कूल आने के लिए जंगल पार कर 20 किलोमीटर की दूरी तय नहीं करना पड़ेगा और मासूम बच्चों को बड़ी समस्या से निजात मिलेगी. जिससे छात्र-छात्राएं अपना बेहतर भविष्य गढ़ सकेंगे.

पढ़ें: इस गांव में है समस्याओं का अंबार, पानी नहीं 'जहर' पी रहे हैं यहां के ग्रामीण

जिम्मेदारों से परिजनों की गुहार
छात्रों के परिजन ने जिम्मेदारों से फरियाद की, लेकिन उन्हें वहां भी अगर कुछ मिला तो वो आश्वासन. फिलहाल मामले से संबधित अधिकार जिला कलेक्टर के पास है. अब देखना ये होगा कि जिला प्रशासन नियम की लकीर का फकीर बना रहता है या जरूरतमंदों की मदद करता है.

धमतरी: प्रदेश सरकार समाज के पिछड़े तबके को आगे बढ़ाने के लिए तमाम योजनाएं चला रही है, लेकिन उसी सरकार के कुछ नियम इन सुविधाओं को हकदारों तक पहुंचाने में रोड़ा बन गए हैं. इससे वो तमाम सुविधाएं गरीब और असहाय छात्र-छात्राओं को नहीं मिल पा रही है. इसकी वजह से छात्र-छात्राएं और उनके परिजन सरकारी भवनों का चक्कर काटते नजर आ रहे हैं.

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मामला धमतरी जिले के नगरी ब्लॉक के सिंहपुर में बने आदिम जाति विकास विभाग के अनुसचित जाति छात्रावास का है. यहां गरीब असहाय बच्चों को छात्रावास में दाखिला नहीं मिल रहा है, जिससे इलाके के नन्हें-मुन्हें बच्चों को छात्रावास के दहजील से मायूसी लेकर वापस लौटना पड़ जा रहा है. जबकि हॉस्टल में अभी भी बड़ी संख्या में सीटें खाली हैं.

छात्राओं को होती है परेशानी
गरीब तबके की छात्राओं को अगर स्कूल में एडमीशन मिल जाता है तो इनको रोजाना स्कूल आने के लिए जंगल पार कर 20 किलोमीटर की दूरी तय नहीं करना पड़ेगा और मासूम बच्चों को बड़ी समस्या से निजात मिलेगी. जिससे छात्र-छात्राएं अपना बेहतर भविष्य गढ़ सकेंगे.

पढ़ें: इस गांव में है समस्याओं का अंबार, पानी नहीं 'जहर' पी रहे हैं यहां के ग्रामीण

जिम्मेदारों से परिजनों की गुहार
छात्रों के परिजन ने जिम्मेदारों से फरियाद की, लेकिन उन्हें वहां भी अगर कुछ मिला तो वो आश्वासन. फिलहाल मामले से संबधित अधिकार जिला कलेक्टर के पास है. अब देखना ये होगा कि जिला प्रशासन नियम की लकीर का फकीर बना रहता है या जरूरतमंदों की मदद करता है.

Intro:सरकार समाज के पिछड़े तबकों को आगे बढ़ाने के लिए तमाम योजनाएं चला रही है लेकिन उसी सरकार के कुछ नियम इन सुविधाओं के हकदारों तक पहुंचने में बड़ा रोड़ा बन गई है.मामला धमतरी की आदिम जाति विकास विभाग के उस हॉस्टल से जुड़ा है जो अनुसचित जाति के लिए बनाया गया है.यह हॉस्टल नगरी ब्लाक के सिंहपुर में बना है और उसी क्षेत्र के लगभग दर्जनभर छात्राएं यहां एडमिशन लेना चाहती हैं लेकिन उन्हें यहां प्रवेश सिर्फ इसलिए नहीं मिल पा रहा है क्योंकि इन यह बच्चे अनुसूचित जाति से आते है यानी कि आदिवासी है जबकि इस हॉस्टल में अभी भी बड़ी संख्या में सीटें खाली है.


Body:बेहद गरीब परिवारों की इन बच्चियों को अगर प्रवेश मिल जाता है तो इसके जरिए स्कूल के लिए रोजाना 20 किलोमीटर की दूरी तय नहीं करना पड़ेगा और मासूम बच्चों को बड़ी समस्या से निजात मिलेगी.जाहिर है ये बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए अकाफी अहमियत रखता है ये बच्चे लगातार अपने परिजनों के साथ शासकीय के चक्कर काट रहे हैं लेकिन हाथ में आश्वासन के अलावा कुछ नहीं है.अगर सीट खाली है तो जरूरतमंदों को उसका लाभ मिलना चाहिए लेकिन एक नियम के कारण मसला अटका दिया है लेकिन अधिकारी है कि नियमानुसार वाली रटा रटाया लाइन से बाहर नहीं आना चाहते.


Conclusion:इस मामले में जिला कलेक्टर के पास अधिकार है कि वह इ नियम को शिथिल कर जरूरतमंद बच्चों को प्रवेश दिला सकते है. देखना होगा कि जिला प्रशासन नियम की लकीर का फकीर बना रहता है या जरूरी संवेदनशीलता दिखाता है.

बाईट....आरती साहू,छात्रा
बाईट....अनुरुद्ध नेताम,पालक
बाईट...रामदयाल पालेश्वर,प्रभारी आदिमजाति विकास विभाग

रामेश्वर मरकाम,ईटीवी भारत,धमतरी
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