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World Tourism Day: छत्तीसगढ़ का सबसे खूबसूरत प्लेस है गंगरेल डैम, लेकिन महंगी सुविधाओं ने फेरा पानी - गंगरेल बांध वुडन रिसॉर्ट

विश्व पर्यटन दिवस पर ETV भारत की खास पेशकश, जिसमें प्रदेश के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों की खुबसूरत झलक आप तक पहुंचाई जा रही है. जानिए धमतरी के गंगरेल बांध के बारे में.

गंगरेल डैम धमतरी
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Published : Sep 26, 2019, 11:28 PM IST

धमतरी: छत्तीसगढ़ राज्य की जीवन रेखा महानदी पर बने गंगरेल बांध की खूबसूरती सभी को लुभाती है. ये प्रदेश के उन पर्यटन स्थलों में से एक है, जहां बड़ी तादाद में लोग रोजाना मनोरम और सुंदर दृश्य को अपनी यादों में कैद करने के लिए पहुंचते हैं.

धमतरी जिले की पहचान गंगरेल बांध

कलकल पानी और हरी-भरी घाटियों में बसा ये वातावरण बरबस ही सैलानियों को अपनी ओर आने पर मजबूर कर देता है. खूबसूरत गार्डन, वुडन कॉटेज और वाटर स्पोटर्स एडवेंचर के क्या कहने. यहीं वजह है कि गंगरेल बांध पहुंचने वाले हर उम्र के सैलानियों की निगाहें मानों ठहर सी जाती है. यहां सालों भर त्योहार सा नजारा देखने को मिलता है. वहीं न्यू ईयर सेलिब्रेशन इन हसीन वादियों की खूबसूरती को और निखार देता है.

  • गंगरेल बांध का एक और नाम रविशंकर बांध है. इस बांध का निर्माण महानदी पर किया गया है. बांध की दूरी शहर से 15 किलोमीटर है. बांध में जल धारण क्षमता 15 हजार क्यूसेक है.
  • इस बांध से सालभर किसानों को सिंचाई के लिए पानी मिलता है. इसके अलावा भिलाई स्टील प्लांट और राजधानी रायपुर को भी यहां से पानी दिया जाता है.
  • बांध पर हाईड्रो पॉवर प्लांट भी स्थापित किया गया है.

'मध्यमवर्गीय परिवार के लिए महंगी हैं सुविधाएं'
इन खूबसूरत वादियों में सुविधाओं के साथ यहां आने वाले पर्यटकों की जेब भी ढीली हो रही है. वाटर स्पोटर्स की फीस सामान्य लोगों के बस के बाहर बताई जा रही है. इसके आलावा कॉटेज भी काफी महंगा है. वहीं बांध के मुख्य गेट पर ताला लटका है, जिसकी वजह से पर्यटक, बांध का लुत्फ नहीं उठा पा रहे हैं, ऐसे में सैलानियों में खासी मायूसी है.

स्थानीय लोगों का कहना है कि, 'गंगरेल में डूब क्षेत्र के ग्रामीणों को रोजगार उपलब्ध कराया जाए. यहां बाहर से आए लोगों को काम दिया जा रहा है, जो गलत है.'

इतिहास के पन्नों से जुड़ा है गंगरेल

  • बांध के निर्माण कार्य का शिलान्यास 5 मई 1972 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था.
  • करीब 6 साल तक लगातार काम चलने के बाद 1978 में बांध बनकर तैयार हुआ.
  • इसमें धमतरी के अलावा बालोद और कांकेर जिले का भी बड़ा हिस्सा शामिल है.
  • गंगरेल में ही पहाड़ों के बीच विराजित मां अंगारमोती का भव्य दरबार भी है, जो बीते 600 सालों के इतिहास को अपने अंदर समेटे हुए हैं.
  • जब 1972 में बांध बनने से पूरा गांव डूब गया, तो भक्तों ने नदी के किनारे माता का दरबार बना दिया. यही वजह है कि इस भक्ति स्थल का बांध से गहरा नाता है और लोगों की माता पर अपार श्रद्धा है.
  • इस बांध के लिए कई लोगों ने अपनी जमीन-जायजाद की कुर्बानी दी है. गंगरेल बांध के नाम पर 55 से ज्यादा गांव डूब में शामिल हो चुके हैं.

बड़े पर्यटन केन्द्र के रूप में उभर रहा है गंगरेल
पिछले कुछ सालों से गंगरेल बांध प्रदेश के बड़े पर्यटन केन्द्र के रूप में उभर रहा है और यहां प्रदेश के अलावा अन्य प्रदेशों के भी पर्यटक बड़ी संख्या में आने लगे हैं. पर्यटन मंत्रालय की स्वदेश दर्शन योजना के तहत ट्रायबल टूरिस्ट सर्किल परियोजना से जुड़ने की वजह से यहां सुविधाएं विकसित करने की कोशिश की जा रही है.

धमतरी कलेक्टर का कहना है कि गंगरेल को बेहतर पर्यटन स्थल बनाने के लिए योजनाएं और बनाई जा रही है. यहां महिला स्व-सहायता समूहों को भी काम करने के लिए तैयार किया जा रहा है ताकि स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिल सके.

पढ़ें- World Tourism Day: ये है छत्तीसगढ़ का शिमला, कुदरत का सुंदर उपहार

वैसे तो गंगरेल बांध में सारी सुविधाएं बेहतर ही हैं, लेकिन प्रशासन को आम जनता को इन महंगी सुविधाओं की दरों में थोड़ी रियायत देने की जरूरत है, ताकि कोई भी वर्ग इस खुबसूरत पर्यटन क्षेत्र का आनंद लेने से अछुता न रहे.

धमतरी: छत्तीसगढ़ राज्य की जीवन रेखा महानदी पर बने गंगरेल बांध की खूबसूरती सभी को लुभाती है. ये प्रदेश के उन पर्यटन स्थलों में से एक है, जहां बड़ी तादाद में लोग रोजाना मनोरम और सुंदर दृश्य को अपनी यादों में कैद करने के लिए पहुंचते हैं.

धमतरी जिले की पहचान गंगरेल बांध

कलकल पानी और हरी-भरी घाटियों में बसा ये वातावरण बरबस ही सैलानियों को अपनी ओर आने पर मजबूर कर देता है. खूबसूरत गार्डन, वुडन कॉटेज और वाटर स्पोटर्स एडवेंचर के क्या कहने. यहीं वजह है कि गंगरेल बांध पहुंचने वाले हर उम्र के सैलानियों की निगाहें मानों ठहर सी जाती है. यहां सालों भर त्योहार सा नजारा देखने को मिलता है. वहीं न्यू ईयर सेलिब्रेशन इन हसीन वादियों की खूबसूरती को और निखार देता है.

  • गंगरेल बांध का एक और नाम रविशंकर बांध है. इस बांध का निर्माण महानदी पर किया गया है. बांध की दूरी शहर से 15 किलोमीटर है. बांध में जल धारण क्षमता 15 हजार क्यूसेक है.
  • इस बांध से सालभर किसानों को सिंचाई के लिए पानी मिलता है. इसके अलावा भिलाई स्टील प्लांट और राजधानी रायपुर को भी यहां से पानी दिया जाता है.
  • बांध पर हाईड्रो पॉवर प्लांट भी स्थापित किया गया है.

'मध्यमवर्गीय परिवार के लिए महंगी हैं सुविधाएं'
इन खूबसूरत वादियों में सुविधाओं के साथ यहां आने वाले पर्यटकों की जेब भी ढीली हो रही है. वाटर स्पोटर्स की फीस सामान्य लोगों के बस के बाहर बताई जा रही है. इसके आलावा कॉटेज भी काफी महंगा है. वहीं बांध के मुख्य गेट पर ताला लटका है, जिसकी वजह से पर्यटक, बांध का लुत्फ नहीं उठा पा रहे हैं, ऐसे में सैलानियों में खासी मायूसी है.

स्थानीय लोगों का कहना है कि, 'गंगरेल में डूब क्षेत्र के ग्रामीणों को रोजगार उपलब्ध कराया जाए. यहां बाहर से आए लोगों को काम दिया जा रहा है, जो गलत है.'

इतिहास के पन्नों से जुड़ा है गंगरेल

  • बांध के निर्माण कार्य का शिलान्यास 5 मई 1972 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था.
  • करीब 6 साल तक लगातार काम चलने के बाद 1978 में बांध बनकर तैयार हुआ.
  • इसमें धमतरी के अलावा बालोद और कांकेर जिले का भी बड़ा हिस्सा शामिल है.
  • गंगरेल में ही पहाड़ों के बीच विराजित मां अंगारमोती का भव्य दरबार भी है, जो बीते 600 सालों के इतिहास को अपने अंदर समेटे हुए हैं.
  • जब 1972 में बांध बनने से पूरा गांव डूब गया, तो भक्तों ने नदी के किनारे माता का दरबार बना दिया. यही वजह है कि इस भक्ति स्थल का बांध से गहरा नाता है और लोगों की माता पर अपार श्रद्धा है.
  • इस बांध के लिए कई लोगों ने अपनी जमीन-जायजाद की कुर्बानी दी है. गंगरेल बांध के नाम पर 55 से ज्यादा गांव डूब में शामिल हो चुके हैं.

बड़े पर्यटन केन्द्र के रूप में उभर रहा है गंगरेल
पिछले कुछ सालों से गंगरेल बांध प्रदेश के बड़े पर्यटन केन्द्र के रूप में उभर रहा है और यहां प्रदेश के अलावा अन्य प्रदेशों के भी पर्यटक बड़ी संख्या में आने लगे हैं. पर्यटन मंत्रालय की स्वदेश दर्शन योजना के तहत ट्रायबल टूरिस्ट सर्किल परियोजना से जुड़ने की वजह से यहां सुविधाएं विकसित करने की कोशिश की जा रही है.

धमतरी कलेक्टर का कहना है कि गंगरेल को बेहतर पर्यटन स्थल बनाने के लिए योजनाएं और बनाई जा रही है. यहां महिला स्व-सहायता समूहों को भी काम करने के लिए तैयार किया जा रहा है ताकि स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिल सके.

पढ़ें- World Tourism Day: ये है छत्तीसगढ़ का शिमला, कुदरत का सुंदर उपहार

वैसे तो गंगरेल बांध में सारी सुविधाएं बेहतर ही हैं, लेकिन प्रशासन को आम जनता को इन महंगी सुविधाओं की दरों में थोड़ी रियायत देने की जरूरत है, ताकि कोई भी वर्ग इस खुबसूरत पर्यटन क्षेत्र का आनंद लेने से अछुता न रहे.

Intro:छत्तीसगढ़ राज्य के बड़े बांधों में से महानदी पर बने गंगरेल बांध की खूबसूरती सभी को लुभाती है.ये प्रदेश के उन पर्यटन स्थलों में से एक है जहां बड़ी तादाद में लोग रोजाना बांध सहित आसपास की सुंदरता निहारने पहुंचते है जो मानते है कि छुटिटयां बिताने ये एक बेहतरीन जगह है और भागमभाग जिन्दगी मे सूकुन का अहसास कराते है. Body:चारो ओर दिखता पानी का समन्दर और हरी भरी घाटियो की माला सैलानियो को दूर दराज से आने मजबूर कर देती है फिर खूबसुरत गार्डन,वुडन काटेज और वाटर स्पोटर्स एडवेंचर के क्या कहने.यही वजह है कि गंगरेल बाॅंध पहुचने वाले हर उम्र के सैलालियो की निगाहे मानो बंध सी जाती है.दिगर मौके हो या न्यू ईयर सेलीब्रेशन इस सैरगाह मे मानो मेले जैसा नजारा होता है.

वैसे गंगरेल बांध का एक और नाम रविशंकर बांध है.इस बांध का निर्माण महानदी पर किया गया है.बांध की दूरी शहर से 15 किमी है.वही बाँध में जल धारण क्षमता 15,000 क्यूसेक है.यह बांध जीवनदायिनी भी है इसी बांध से सालभर किसानों को सिंचाई सुविधा दी जाती है इसके अलावा भिलाई स्टील प्लांट और राजधानी रायपुर को भी पानी दिया जाता है.गंगरेल को न केवल कुदरत ने अपने बेहतरीन खजाने से नवाजा है बल्कि पानी की ताकत से पैदा होती बिजली यानी हाईडल पावर तो दूरदराज से आने वालो के लिऐ खास दिलचस्पी की वजह बन गया है.

इस बांध के लिए कई लोगों ने अपनी जमीन जायजाद की कुर्बानी दी है गंगरेल बांध के नाम पर 55 से ज्यादा गांव डूब में शामिल हो चुके है.बांध के निर्माण कार्य का शिलान्यास 5 मई 1972 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था.करीब 6 साल तक लगातार काम चलने के बाद 1978 में बांध बनकर तैयार हुआ.इसमें धमतरी के अलावा बालोद और कांकेर जिले का भी बड़ा हिस्सा शामिल है.इधर गंगरेल में ही पहाडो बीच मे विराजित माॅ अंगारमोती का भव्य दरबार भी है जो बीते 6 सौ सालो के इतिहास को अपने अन्दर समेटे हुए है.जब 1972 मे बाॅध बनने से पूरा गाॅव डूब गया तो भक्तो ने नदी के किनारे माता का दरबार बना दिया.यही वजह है कि इस भक्ति स्थल का बाॅध से गहरा नाता है.

पिछले कुछ सालों से गंगरेल बांध प्रदेश के बड़े पर्यटन केन्द्र के रूप में उभर रहा है और यहां प्रदेश के अलावा अन्य प्रदेशों के भी पर्यटक बड़ी संख्या में आने लगे है.पर्यटन मंत्रालय की स्वदेश दर्शन योजना के तहत ट्रायबल टूरिस्ट सर्किल परियोजना से जुड़ने की वजह से यहां सुविधाएं विकसित करने के प्रयास भी प्रशासन व्दारा किया जा रहा है.पर्यटकों के ठहरने के लिए कॉटेज तैयार किए गए है.इसके आलावा एडवेंचर,मोटरबोट, वाटरजेट जैसे आधुनिक वाटर एडवेंचर से भरपूर स्पोर्ट्स भी यहां संचालित हो रही है.Conclusion:गंगरेल में सुविधाओं के साथ यहां आने वाले पर्यटको के जेब भी ढीली हो रही है.वाटर स्पोटर्स की फीस सामान्य लोगों के बस के बाहर है इनके आलावा काॅटेज भी काफी मंहगे है.वही बांध के मुख्य गेट पर ताला लटका है जिसके वजह से प्र्यटक बांध का दीदार नही कर पा रहे है ऐसे में सैलानियों में खासी मायूसी है.

वाक्सपॉप-सैलानी
बाईट_खूबलाल ध्रुव,स्थानीय युवा
बाईट_रंजीत छाबड़ा,स्थानीय नागरिक
बाईट_रजत बंसल,कलेक्टर धमतरी

रामेश्वर मरकाम,ईटीवी भारत,धमतरी
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