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धमतरी : सोशल मीडिया बना प्रचार-प्रसार का हथियार, गलियों से गायब हुए चुनावी बैनर और पोस्टर

लोकसभा चुनाव में प्रचार का पैटर्न पूरी तरह से बदल चुका है. प्रचार के लिए दशकों से चली आ रहे बैनर, होर्डिंग, वाल पेंटिंग, बिल्ले, स्टीकर इस बार पूरी तरह से गायब हैं.

लोकसभा चुनाव में प्रचार का पैटर्न बदला
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Published : Apr 12, 2019, 8:54 PM IST

धमतरी : लोकसभा चुनाव में प्रचार का पैटर्न पूरी तरह से बदल चुका है. प्रचार के लिए दशकों से चली आ रहे बैनर, होर्डिंग, वाल पेंटिंग, बिल्ले, स्टीकर इस बार पूरी तरह से गायब हैं. इस बार सोशल मीडिया और सीधे जनसंपर्क से ही मतदाता को एप्रोच किया जा रहा है. इसके पीछे इंटरनेट यूजर्स की बाढ़ और चुनाव आयोग की सख्ती. ये दोनो बड़े कारण हैं.

सोशल मीडिया बना प्रचार-प्रसार का हथियार

लोकसभा चुनाव की सरगर्मी अपने चरम पर है, लेकिन शहर और गांवों की सड़कों पर देखें ये कह पाना मुश्किल है कि चुनाव है भी या नहीं, क्योंकि नजारे वैसे बिल्कुल नहीं है जैसे बीते लोकसभा चुनाव के दौरान थे. यहां तक कि बीते विधानसभा में भी ऐसा नजारा देखने को नहीं मिला.

शहर में इक्का-दुक्का जगहों को छोड़ दें तो न कहीं वाल पेंटिंग है न बैनर हैं, न झंडे है न होर्डिंग हैं. इसके पीछे दो बड़ी वजह है पहली इंटरनेट यूजर्स की बढ़ती संख्या और दूसरी चुनाव आयोग की खर्च पर कड़ी निगरानी.

बुजुर्ग नेताओं के मुताबिक पुराने जमाने में और आज के जमाने में जमीन-आसमान का फर्क आ चुका है. सोशल मीडिया से मतदाता तक सीधे पहुंचना आसान भी है और कई गुना सस्ता भी और कहीं ज्यादा असरदार भी.

सियासी दलों ने सोशल मीडिया पर प्रचार-प्रसार और लोगों से जुड़ने के लिए साइबर वार रूम बना रखे हैं, जहां से लगातार कंप्यूटर और मोबाइल के जरिए पोस्ट किए जाते हैं. इसका एक फायदा ये भी है कि ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्स एप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मतदाताओं का मूड भी फौरन पता चल जाता है. इसके लिए राजीनतिक दल अलग से रणनीति बनाते हैं ताकि वरोधी दल को पछाड़ा जा सके. वैसे इंटरनेट की सुलभता का सबसे बड़ा फायदा ये है कि आज ज्यादा से ज्यादा लोग राजनीतिक रूप से जागरूक हो चुके हैं, हालांकि सोशल मीडिया पर प्रचार-प्रसार करने से होर्डिंग, वाल पेंटर और पम्पलेट वालों का जरूर नुकसान हो रहा है.

धमतरी : लोकसभा चुनाव में प्रचार का पैटर्न पूरी तरह से बदल चुका है. प्रचार के लिए दशकों से चली आ रहे बैनर, होर्डिंग, वाल पेंटिंग, बिल्ले, स्टीकर इस बार पूरी तरह से गायब हैं. इस बार सोशल मीडिया और सीधे जनसंपर्क से ही मतदाता को एप्रोच किया जा रहा है. इसके पीछे इंटरनेट यूजर्स की बाढ़ और चुनाव आयोग की सख्ती. ये दोनो बड़े कारण हैं.

सोशल मीडिया बना प्रचार-प्रसार का हथियार

लोकसभा चुनाव की सरगर्मी अपने चरम पर है, लेकिन शहर और गांवों की सड़कों पर देखें ये कह पाना मुश्किल है कि चुनाव है भी या नहीं, क्योंकि नजारे वैसे बिल्कुल नहीं है जैसे बीते लोकसभा चुनाव के दौरान थे. यहां तक कि बीते विधानसभा में भी ऐसा नजारा देखने को नहीं मिला.

शहर में इक्का-दुक्का जगहों को छोड़ दें तो न कहीं वाल पेंटिंग है न बैनर हैं, न झंडे है न होर्डिंग हैं. इसके पीछे दो बड़ी वजह है पहली इंटरनेट यूजर्स की बढ़ती संख्या और दूसरी चुनाव आयोग की खर्च पर कड़ी निगरानी.

बुजुर्ग नेताओं के मुताबिक पुराने जमाने में और आज के जमाने में जमीन-आसमान का फर्क आ चुका है. सोशल मीडिया से मतदाता तक सीधे पहुंचना आसान भी है और कई गुना सस्ता भी और कहीं ज्यादा असरदार भी.

सियासी दलों ने सोशल मीडिया पर प्रचार-प्रसार और लोगों से जुड़ने के लिए साइबर वार रूम बना रखे हैं, जहां से लगातार कंप्यूटर और मोबाइल के जरिए पोस्ट किए जाते हैं. इसका एक फायदा ये भी है कि ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्स एप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मतदाताओं का मूड भी फौरन पता चल जाता है. इसके लिए राजीनतिक दल अलग से रणनीति बनाते हैं ताकि वरोधी दल को पछाड़ा जा सके. वैसे इंटरनेट की सुलभता का सबसे बड़ा फायदा ये है कि आज ज्यादा से ज्यादा लोग राजनीतिक रूप से जागरूक हो चुके हैं, हालांकि सोशल मीडिया पर प्रचार-प्रसार करने से होर्डिंग, वाल पेंटर और पम्पलेट वालों का जरूर नुकसान हो रहा है.

Intro:देश में हो रहे सोलहवें लोकसभा चुनाव में प्रचार का पैटर्न पूरी तरह से बदल चुका है.दशकों से चली आ रहे बैनर,होर्डिंग,वाल पेंटिग,बिल्ले,स्टीकर इस बार पूरी तरह से गायब हैं.इस बार सौशल मीडिया और सीधे जनसंपर्क से ही मतदाता को एप्रोच किया जा रहा है.इसके पीछे इंटरनेट यूजर्स की बाढ़ और चुनाव आयोग की सख्ती.ये दोनो बड़े कारण है.Body:हालांकि लोकसभा चुनाव की सरगर्मी अपने चरम पर है लेकिन शहर और गांवो की सड़को पर देखे तो लगता है कि चुनाव है भी या नहीं.क्योंकि नजारे वैसे बिल्कुल नहीं है जैसे बीते लोकसभा के दौरान थे.यहां तक कि बीते विधानसभा में भी ऐसा नहीं था.शहर में इक्का दुक्का जगहो को छोड़ दें तो न कहीं वाल पेंटिंग है न बैनर है न झंडे है न होर्डिंग है बैच बिल्लो और स्टीकर की बात ही छोड़िये.ये चुनाव प्रचार के इतिहास में युग परिवर्तन जैसा है तो सवाल ये आता है कि आकिर ऐसा क्यों इसके पीछे दो बड़ी वजह है.पहली इंटरनेट यूजर्स की बाढ़ जो लगातार गुणात्मक रूप से बढ़ रही है क्या शहर क्या गांव अब सभी जगह पेसबुक और व्हाट्सएप की साख है.दूसरा कारण युनाव आयोग द्वारा खर्च पर कड़ी निगरानी और सीमित बजट बुजुर्ग नेता भी मानते है कि पुराने जमाने में और आज के जमाने में जमीन आसमान का फर्क आ चुका है.सोशल मीडिया से मतदाता तक सीधे पहुंचना आसान भी है और कई गुना सस्ता भी और कही ज्यादा असरदार भी इसके लिये सियासी दलो ने साईबर वार रूम बना रखे है.जहां से लगातार कंप्यूटर और मोबाईल के जरिये पोस्ट अपलोड किये जाते है.इसका एक फायदा और है कि ट्वीटर,फेसबुक,व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर मतदाता का मूड भी फौरन पता चल जाता है.इसके लिये राजीनतिक दल अलग से रणनीति बनाते है ताकि वरोधी दल को साईबर रेस में पछाड़ सकें.वैसे इंटरनेट की सुलभता का सबसे बड़ा फायदा ये है कि आज ज्यादा से ज्यादा लोग राजनीतिक रूप से जागरूक हो चुके है.देश दुनिया के हालात से फौरन अपडेट रहते है और सही सरकार चुनने के लिये यही तो ज्यादा जरूरी है.

बाईट ...हर्षद मेहता, पूर्व विधायक धमतरी (बुजुर्ग)
बाईट ...कविंद्र जैन, प्रवक्ता जिला भाजपा(युवा)

रामेश्वर मरकाम धमतरी
Conclusion:
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