दंतेवाड़ा: दंतेवाड़ा में फाल्गुन मेले की शुरुआत हो चुकी है. इस पावन मेले में 900 से ज्यादा गांव के देवी देवता दंतेश्वरी धाम दंतेवाड़ा में पहुंचते हैं. वर्षों से चली आ रही परंपरा के हिसाब से हर देवी देवता इस मेले में शामिल होते हैं. जो अपने साथ अपने धाम की देवी देवताओं के गुल्लक(कोन्डी) को मां दंतेश्वरी को समर्पित करते हैं. जो गांव के लोग देवी देवताओं को चढ़ाते हैं. इस गुल्लक के पैसों की गिनती मंदिर के सेवादार गुल्लक फोड़कर करते हैं. फिर उसे मां दंतेश्वरी के खजाने में डाल दिया जाता है. यह परंपरा यहां सालों से चली आ रही है. जिसे मंदिर टेंपल कमिटी और मेले में शामिल होने आए ग्रामीण निभाते हैं. जिससे मां दंतेश्वरी के प्रति गांव वालों की आस्था जुड़ी हुई है.
दूर-दूर से ग्रामवासी होते हैं शामिल: दंतेश्वरी मंदिर के पुजारी विरेंद्र नाथ ने बताया कि "हर वर्ष फागुन मेले में यह परंपरा निभाई जाती है. जिसमें दंतेवाड़ा जिले के दूर-दूर से ग्रामवासी अपनी देवी-देवताओं के गुड़ी में रखी गई कोडी (मिट्टी का गुल्लक)को मां दंतेश्वरी के चरणों में समर्पित करते हैं"
दस दिनों तक चलता है मेला: दंतेश्वरी मंदिर के पुजारी विरेंद्र नाथ ने बताया कि "इस परंपरा के पीछे मां दंतेश्वरी माई के प्रति ग्राम वासियों की आस्था जुड़ी हुई है. 10 दिन तक चलने वाले इस मेले में हर दिन मां दंतेश्वरी की पालकी निकाली जाती है. जिसे नारायण मंदिर तक धूमधाम से 12 लंकावार, सेवादार, माझी, चालकी के ग्रामवासियों के साथ बस्तर की परंपरा अनुसार ढोल नगाड़ा के साथ ले जाया जाता है. जिसे परिक्रमा कर वापस मंदिर लाया जाता है."
अंतिम दिन देवी देवताओं की होती है विदाई: दंतेश्वरी मंदिर के पुजारी विरेंद्र नाथ ने बताया कि "जिसके बाद जब दसवें दिन सभी देवी देवताओं की विदाई होती है. तो फिर से मां दंतेश्वरी टेंपल कमिटी दूर-दूर से आए देवी-देवताओं को भेंट स्वरूप मां दंतेश्वरी की ओर से साड़ी, चुनरी, चूड़ी, कंगन, चावल, दाल, आटा, और मिट्टी से बने गुल्लक देते हैं. जिसमें ग्रामवासी साल भर अपनी देवी देवता के पास रख उसमें श्रद्धा अनुसार पैसे डालते हैं और अगले साल उसी के साथ फिर मेले में सम्मिलित होते हैं."
मंदिरों के मरम्मत की मांग: जिला प्रशासन अंदरूनी क्षेत्र में देवी देवता की देवगुड़ी के निर्माण पर पैसा खर्च कर रही है. ताकि छत्तीसगढ़ की संस्कृति का विस्तार हो सके.