दंतेवाड़ा: छत्तीसगढ़ का आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर अपनी अनोखी परंपरा, आदिवासी रीति-रिवाज, कला-संस्कृति के लिए देश-विदेश में पहचाना जाता है. बस्तर के आदिवासियों में जो परंपरा देखने को मिलती है, वह शायद ही किसी अन्य जगहों पर देखने को मिलेगी. आदिवासी अपनी परंपरा को अपना मुख्य धरोहर मानते हैं. यही वजह है कि आदिवासियों में सदियों से चली आ रही परंपरा आज भी कायम है. आदिवासी ग्रामीण अपनी परंपराओं को बखूबी निभाते आ रहे हैं.
पुरखों की निशानी को पत्थर के रूप में संजोने की परंपरा
आदिवासी समाज अपने पुरखों की निशानी को पत्थर के रूप में संजोए रखता है. ग्राम गमावाड़ा में एक संग्रहालय भी बनाया गया है. आदिवासी समाज के ग्रामीण गांव में किसी भी सदस्य की मृत्यु होने पर अंतिम संस्कार के बाद इसी संग्रहालय में उसके नाम का पत्थर गाड़ देते हैं. यह अनोखी परंपरा बस्तर में ही देखी जा सकती है.
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पत्थर की पूजा कर लेते हैं आशीर्वाद
पूर्व सरपंच जय कश्यप ने बताया कि हमारे गांव में अगर किसी की मृत्यु होती है तो इसी संग्रहालय में अंतिम संस्कार के बाद उसके नाम का पत्थर गाड़ा जाता है. यह परंपरा पुरखों से चली आ रही है. अपने पुरखों को याद कर उनके नाम के पत्थर के सामने पूजा-अर्चना कर आशीर्वाद लिया जाता है.