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जिस चैंपियन बेटी को स्टार बनना था, उसे नक्सलियों और सरकार ने मजबूर बना दिया

सरिता, ये उस बेटी का नाम है जिसने वक्त की मार और सिस्टम की दुत्कार के बावजूद हार नहीं मानी और ऐसा मुकाम हासिल किया, जिसके बारे में सोचना भी लोगों को दूर की कौड़ी लगता है.

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Published : Jul 19, 2019, 5:50 PM IST

Updated : Jul 19, 2019, 7:34 PM IST

दंतेवाड़ा: सरिता, इसका जैसा नाम है वैसी चुनौती, जैसे नदी के रास्ते में बड़े-बड़े पहाड़ क्यों न आ जाएं पर वो बिना हार माने अपने पथ पर अग्रसर रहती है. ठीक उसी तरह सरिता ने भी तमाम मुसीबतें झेली लेकिन वो अपने रास्ते से डिगी नहीं.

स्टोरी पैकेज

सरिता के सामने नक्सलियों ने ले ली थी पिता की जान
27 अप्रैल 2018 ये वो मनहूस तारीख थी, जिस दिन इस होनहार के सिर से पिता का साया उठ गया था. छत्तीसगढ़ में आतंक का पर्याय बन चुके नक्सलियों ने घर में घुसकर सरिता के पिता की बेरहमी से जान ले ली. जिस वक्त नक्सलियों ने हमला किया उस दौरान भी सरिता ने बहादुरी दिखाते हुए पिता की जान बचाने के लिए नक्सलियों से संघर्ष किया, लेकिन वो सफल नहीं हो पाई.

दो खेलों में किया प्रदेश का प्रधिनिधित्व
सरिता ने एक नहीं बल्कि दो-दो खेलों में छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व किया . सरिता बताती है कि है कि 'पिता चाहते थे दोनों बेटियां पढ़ाई के साथ-साथ खेलों में भी देश और दुनिया में अपना नाम करें.

कबड्डी और फुटबॉल खेलती है सरिता
माता रुक्मणी आश्रम जगदलपुर में पढ़ाई के दौरान कबड्डी और फुटबॉल के खेल में राष्ट्रीय स्तर की टीम में शामिल हुई. साइंस सब्जेक्ट से 12 वीं पास करने के बाद उसे लगा था कि वो पिता का सपना जरूर पूरा करेगी, लेकिन नक्सलियों ने सबकुछ बर्बाद कर दिया. दो वक्त की रोटी छोटी बहन की पढ़ाई के साथ-साथ बूढ़ी मां का ख्याल रखने जद्दोजेहद ने सरिता के सपनों ग्रहण लगा दिया.

नहीं मिली सरकार से कोई मदद
सरकार की ओर से मदद नहीं मिलने के वजह से आज सरिता खेत में मजदूरी करने को मजबूर है. पिता की हत्या को एक साल बीत गए बावजूद इसके सहिता के परिवार को अंतिम संस्कार के लिए दो हजार रुपये की मदद के सिवाए प्रशासन की ओर से फूटी कौड़ी तक नहीं मिली.

सरिता को पढ़ाने की होगी व्यवस्था: कलेक्टर
वहीं मामले में कलेक्टर का कहना है कि नक्सल हिंसा पीड़ित परिवार को पुनर्वास नीति के तहत नौकरी और सहायता राशि मिलने का प्रावधान है. पीड़ित पक्ष का आवेदन नहीं आया है. इस मामले को देखा जाएगा और लड़की की पढाई के लिए भी व्यवस्था करवाई जाएगी.

दंतेवाड़ा: सरिता, इसका जैसा नाम है वैसी चुनौती, जैसे नदी के रास्ते में बड़े-बड़े पहाड़ क्यों न आ जाएं पर वो बिना हार माने अपने पथ पर अग्रसर रहती है. ठीक उसी तरह सरिता ने भी तमाम मुसीबतें झेली लेकिन वो अपने रास्ते से डिगी नहीं.

स्टोरी पैकेज

सरिता के सामने नक्सलियों ने ले ली थी पिता की जान
27 अप्रैल 2018 ये वो मनहूस तारीख थी, जिस दिन इस होनहार के सिर से पिता का साया उठ गया था. छत्तीसगढ़ में आतंक का पर्याय बन चुके नक्सलियों ने घर में घुसकर सरिता के पिता की बेरहमी से जान ले ली. जिस वक्त नक्सलियों ने हमला किया उस दौरान भी सरिता ने बहादुरी दिखाते हुए पिता की जान बचाने के लिए नक्सलियों से संघर्ष किया, लेकिन वो सफल नहीं हो पाई.

दो खेलों में किया प्रदेश का प्रधिनिधित्व
सरिता ने एक नहीं बल्कि दो-दो खेलों में छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व किया . सरिता बताती है कि है कि 'पिता चाहते थे दोनों बेटियां पढ़ाई के साथ-साथ खेलों में भी देश और दुनिया में अपना नाम करें.

कबड्डी और फुटबॉल खेलती है सरिता
माता रुक्मणी आश्रम जगदलपुर में पढ़ाई के दौरान कबड्डी और फुटबॉल के खेल में राष्ट्रीय स्तर की टीम में शामिल हुई. साइंस सब्जेक्ट से 12 वीं पास करने के बाद उसे लगा था कि वो पिता का सपना जरूर पूरा करेगी, लेकिन नक्सलियों ने सबकुछ बर्बाद कर दिया. दो वक्त की रोटी छोटी बहन की पढ़ाई के साथ-साथ बूढ़ी मां का ख्याल रखने जद्दोजेहद ने सरिता के सपनों ग्रहण लगा दिया.

नहीं मिली सरकार से कोई मदद
सरकार की ओर से मदद नहीं मिलने के वजह से आज सरिता खेत में मजदूरी करने को मजबूर है. पिता की हत्या को एक साल बीत गए बावजूद इसके सहिता के परिवार को अंतिम संस्कार के लिए दो हजार रुपये की मदद के सिवाए प्रशासन की ओर से फूटी कौड़ी तक नहीं मिली.

सरिता को पढ़ाने की होगी व्यवस्था: कलेक्टर
वहीं मामले में कलेक्टर का कहना है कि नक्सल हिंसा पीड़ित परिवार को पुनर्वास नीति के तहत नौकरी और सहायता राशि मिलने का प्रावधान है. पीड़ित पक्ष का आवेदन नहीं आया है. इस मामले को देखा जाएगा और लड़की की पढाई के लिए भी व्यवस्था करवाई जाएगी.

Intro: ये है तो बहादुर बिटिया,लेकिन सिस्टम ने परेशान कर दिया। दंतेवाड़ा ब्लॉक के मोलासनार पंचायत में रहने वाली खिलाड़ी बिटिया ने जितने साहस से खेल मैदान को मारा था आज वह सिस्टम से मार खा रही है। मोलासनार की रहने बाली सरिता ने etv की टीम को अपनी दर्द भरी दस्ता सुनाई। उसने बताया 27 अप्रैल 2018 को नक्सलियों ने घर मे घुस कर पिता कुमा भास्कर को मौत के घाट उतार दिया। पिता पर हो हो रहे धारदार हथियारों से वारों के बीच नक्सलियों से लड़ी। लेकिन उनकी जान को नही बचा सकी। पिता की मौत के बाद उनके सारे सपने उन्ही की चिता में दफन हो गए। पिता चाहते थे दोनो बेटी पढ़ कर और खेल कर देश दुनिया मे नाम करे इस सपने को साकार करने के लिए भी कोई कसर नही छोड़ी। माता रुक्मणी आश्रम जगदलपुर में पढ़ाई के दौरान कबड्डी और फुटबॉल में नेशनल स्तर के खेल में शामिल हुई। विज्ञान संकाय से 12 पास कर लिया।पिता को यह सब देख बेहद खुशी मिलती थी। उनकी मौत के बाद तो सपना सिर्फ सपना ही राह गया। दो वक्त की रोटी छोटी बहन की पढ़ाई व बूढ़ी मा को पालने की जद्दोजहद चल रही है। अब खेत मे काम कर इनको पालने और छोटी बहन को पढ़ने के लिए पैसा जुटा रही हूं।


Body:एक साल बाद भी नही मिला नक्सल पीडित हिंसा का पैसा पिता की हत्या को एक साल पूरा गुजर गया। अभी तक सरकार की ओर से कोई सहायता नही मिली है। पंचायत ने पिता के अंतिम संस्कार में 2 हजार रुपए दिए थे। इसके बाद से कोई सहायता नही मिली। पहले तो सिस्टम से इस बात के लिए लड़ती रही कि पिता की हत्या नक्सलियों ने की है। पुलिस कहती रही कि जांच की जा रही इस बात की वाकई पिता को नक्सलियों ने ही मारा है कि नही। मई 2019 में पुलिस ने प्रमाणपत्र दिया कि पिता की हत्या नक्सलियों ने की है। इस बात को भी दो माह गुजार गए। नौकरी की बात छोड़ो यहां पैसा ही नही मिला है।


Conclusion:ये कहा कलक्टर ने कलक्टर टोपेश्वर वर्मा ने कहा नक्सल हिंसा पीड़ित परिवार को पुनर्वास नीति के तहत नौकरी और पैसे मिलने का प्रावधान है। पीड़ित पक्ष का आवेदन नही आया है। इस मामले को दिखवाते है। लड़की की पढाई के लिए भी व्यवस्था करवाई जाएगी
Last Updated : Jul 19, 2019, 7:34 PM IST
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