दंतेवाड़ा: दिवाली से एक दिन पहले मां दंतेश्वरी के मंदिर में खास पूजा होती है. मां के दरबार को दीयों की रोशनी से सजाया जाता है. मां की सेवा के लिए 12 लंकवार सेवादार 24 घंटे मौजूद रहते हैं. इन 12 सेवादारों में एक तुडपा समाज का भी सेवादार होता है. तुडपा समाज का सेवादार दिवाली से 9 दिन पहले से ही मां दंतेश्वरी सरोवर से रात के तीसरे पहर में पानी लाने के लिए निकल जाता है. मिट्टी के घड़े में लाए गए इसी पानी से मां को सुबह में स्नान कराया जाता है. स्नान के बाद माता का विशेष श्रृंगार किया जाता फिर उनकी पूजा अर्चना की जाती है.
मां की सेवा में रहते हैं लंकवार सेवादार: परंपरा मुताबिक कतियार राउत समाज के लोग जंगल से जड़ी बूटी खोजकर लाते हैं. लाई गई जड़ी बूटी को मिट्टी के हांडी में हल्की आंच पर उबाला जाता है. फिर उबाले गए जल को छानकर मां के स्नान के लिए लाए गए पानी में मिलाया जाता है. इसी जड़ी बूटी वाले पानी से मां को स्नान कराकर इसी पानी से दवाई बनाई बनाई जाती है. औषधि बनने के बाद सभी 12 लंकवार सेवादारों को मिट्टी की हांडी में ये दवा पीने के लिए परोसी जाती है. बाकी की बची हुई औषधि को गांव वालों और भक्तों के बीच बांटा जाता है. मान्यता है कि बांटी गई दवा से हर गंभीर बीमार जड़ से खत्म हो जाती है.
मां पूरी करती है हर मन्नत: पीढ़ियों से मनाई जा रही परंपरा अपने प्राचीन रुप में कायम है. दिवाली से एक दिन पहले जिन पांच हजार दीयों को मां के मंदिर में चढ़ाया गया था उन दीपकों से ही मंदिर को भव्य और जगमग किया जाएगा. दंतेश्वरी माई के दरबार में दशहरे से लेकर दिवाली तक लाखों भक्तों का आना होता है. मान्यता है कि सच्चे मन से मां का आशीर्वाद अगर भक्त मांगे तो उसके जन्म जन्मांतरों की मुरादें पूरी हो जाती हैं