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बिलासपुर : पीरियड्स का दर्द 'बांट' रही है छत्तीसगढ़ की ये 'पैड गर्ल'

पीरियड्स, एक टैबू जिसे भारतीय महिलाएं और लड़कियां तोड़ रही हैं. पैड गर्ल पूनम सिंह ने नेचुरल सैनेटरी पैड बनाकर महिलाओं के बीच पहचान बना ली है, जो नुकसान रहित है. इसे इस्तेमाल होने के बाद आसानी से नष्ट भी किया जा सकता है और जेब पर भी बोझ नहीं पड़ता.

पीरियड्स का दर्द 'बांट' रही है छत्तीसगढ़ की ये 'पैड गर्ल'
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Published : May 28, 2019, 12:08 AM IST

बिलासपुर: पीरियड्स, एक टैबू जिसे भारतीय महिलाएं और लड़कियां तोड़ रही हैं. मासिक धर्म पर बनी एक भारतीय फिल्म ने हाल ही में ऑस्कर अवार्ड भी जीता है. जिसका नाम है पीरियड, एंड ऑफ सेंटेंस. और हां इससे पहले अक्षय कुमार भी पैडमैन बनकर हमारा दिल जीत चुके हैं.

पीरियड्स का दर्द 'बांट' रही है छत्तीसगढ़ की ये 'पैड गर्ल'

महिलाओं को होने वाले मासिक धर्म के बारे में रील लाइफ ने हमें पिछले कुछ महीनों में बहुत सिखाया लेकिन रियल लाइफ में भी कुछ लोग न सिर्फ इसे लेकर समाज में जागरूकता फैला रहे हैं बल्कि महंगे होने की वजह से एक तबके की पहुंच से दूर सैनेटरी नैपकिन जरूरतमंदों तक पहुंचा रहे हैं.

मिलिए इस पैड गर्ल से, जिसका नाम है पूनम सिंह. ये क्लास ये अपनी उम्र से ब़डी महिलाओं की इसलिए ले रही हैं, जिससे वे न सिर्फ पीरियड के दौरान होने वाली तकलीफ से बच सकें बल्कि इंफेक्शन से भी दूर रहें और हां उनकी जेब पर भी असर न पड़े. पूनम सिंह ने नेचुरल सैनेटरी पैड बनाकर महिलाओं के बीच पहचान बना ली है, जो नुकसान रहित है. इसे इस्तेमाल होने के बाद आसानी से नष्ट भी किया जा सकता है और जेब पर भी बोझ नहीं पड़ता.

पूमन सिंह बिलासपुर के डीपी कॉलेज की बॉयोलॉजी की सेंकेंड ईयर की छात्रा हैं. उन्हें रिसर्च के दौरान ये पता चला कि बाजार में मिलने वाली सैनेटरी नैपकिन्स खतरनाक हैं और इसकी वजह से कई महिलाओं को कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियां भी हो चुकी हैं.

पूनम के मुताबिक सेनेटरी पैड में जो पेट्रोलियम जैली जैसे पदार्थ और सिंथेटिक का इस्तेमाल किया जाता वो बेहद ही घातक है और इस्तेमाल के बाद आसानी से नष्ट भी नहीं होता. यह लंबे समय तक डिस्पोज नहीं होने के कारण वातावरण पर भी दुष्प्रभाव छोड़ता है.

इस जानकारी के बाद पूनम ने अपनी रिसर्च शुरू की और नेचुरल सेनेटरी पैड बनाने की ठान ली. पूनम की नई खोज में प्रमुख रूप से बेसिल सीड्स और मेथी के बीज का इस्तेमाल किया जाता है. यह रूई के विभिन्न परतों में बैंडेज के इस्तेमाल से तैयार होता है. जैसे पैड बाजार में उपलब्ध हैं, वैसे ही इसे पूनम ने डिजाइन किया है.

पूनम के मुताबिक बेसिल सीड्स में द्रव्य को सोखने के गुण होते हैं जो आसानी से उपलब्ध हैं और इस्तेमाल के बाद इसे डिस्पोज भी किया जा सकता है. आज पूनम अपने इस अनोखी खोज से महिलाओं में जनजागरूकता भी फैला रहीं हैं और लोगों को नेचुरल पैड के महत्व को समझा रहीं हैं.

मासिक धर्म के दौरान तमिलनाडु में झोपड़ी में रह रही बच्ची की मौत ने सवाल छेड़ दिया था कि क्या जरूरत है महिलाओं को प्राकृतिक देन की वजह से तकलीफ देने की. रिपोर्ट कहती है कि नेपाल में हर साल दो महिलाओं की मौत पीरियड की वजह से होती है और दर्द तो दुनियाभर की औरतों का एक जैसा है. हम चाहते हैं पूनम की तरह ही और लड़कियां और महिलाओं समाज में जागरूकता फैलाएं और हां पूनम को इस नेक काम का इनाम जरूर मिले.

बिलासपुर: पीरियड्स, एक टैबू जिसे भारतीय महिलाएं और लड़कियां तोड़ रही हैं. मासिक धर्म पर बनी एक भारतीय फिल्म ने हाल ही में ऑस्कर अवार्ड भी जीता है. जिसका नाम है पीरियड, एंड ऑफ सेंटेंस. और हां इससे पहले अक्षय कुमार भी पैडमैन बनकर हमारा दिल जीत चुके हैं.

पीरियड्स का दर्द 'बांट' रही है छत्तीसगढ़ की ये 'पैड गर्ल'

महिलाओं को होने वाले मासिक धर्म के बारे में रील लाइफ ने हमें पिछले कुछ महीनों में बहुत सिखाया लेकिन रियल लाइफ में भी कुछ लोग न सिर्फ इसे लेकर समाज में जागरूकता फैला रहे हैं बल्कि महंगे होने की वजह से एक तबके की पहुंच से दूर सैनेटरी नैपकिन जरूरतमंदों तक पहुंचा रहे हैं.

मिलिए इस पैड गर्ल से, जिसका नाम है पूनम सिंह. ये क्लास ये अपनी उम्र से ब़डी महिलाओं की इसलिए ले रही हैं, जिससे वे न सिर्फ पीरियड के दौरान होने वाली तकलीफ से बच सकें बल्कि इंफेक्शन से भी दूर रहें और हां उनकी जेब पर भी असर न पड़े. पूनम सिंह ने नेचुरल सैनेटरी पैड बनाकर महिलाओं के बीच पहचान बना ली है, जो नुकसान रहित है. इसे इस्तेमाल होने के बाद आसानी से नष्ट भी किया जा सकता है और जेब पर भी बोझ नहीं पड़ता.

पूमन सिंह बिलासपुर के डीपी कॉलेज की बॉयोलॉजी की सेंकेंड ईयर की छात्रा हैं. उन्हें रिसर्च के दौरान ये पता चला कि बाजार में मिलने वाली सैनेटरी नैपकिन्स खतरनाक हैं और इसकी वजह से कई महिलाओं को कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियां भी हो चुकी हैं.

पूनम के मुताबिक सेनेटरी पैड में जो पेट्रोलियम जैली जैसे पदार्थ और सिंथेटिक का इस्तेमाल किया जाता वो बेहद ही घातक है और इस्तेमाल के बाद आसानी से नष्ट भी नहीं होता. यह लंबे समय तक डिस्पोज नहीं होने के कारण वातावरण पर भी दुष्प्रभाव छोड़ता है.

इस जानकारी के बाद पूनम ने अपनी रिसर्च शुरू की और नेचुरल सेनेटरी पैड बनाने की ठान ली. पूनम की नई खोज में प्रमुख रूप से बेसिल सीड्स और मेथी के बीज का इस्तेमाल किया जाता है. यह रूई के विभिन्न परतों में बैंडेज के इस्तेमाल से तैयार होता है. जैसे पैड बाजार में उपलब्ध हैं, वैसे ही इसे पूनम ने डिजाइन किया है.

पूनम के मुताबिक बेसिल सीड्स में द्रव्य को सोखने के गुण होते हैं जो आसानी से उपलब्ध हैं और इस्तेमाल के बाद इसे डिस्पोज भी किया जा सकता है. आज पूनम अपने इस अनोखी खोज से महिलाओं में जनजागरूकता भी फैला रहीं हैं और लोगों को नेचुरल पैड के महत्व को समझा रहीं हैं.

मासिक धर्म के दौरान तमिलनाडु में झोपड़ी में रह रही बच्ची की मौत ने सवाल छेड़ दिया था कि क्या जरूरत है महिलाओं को प्राकृतिक देन की वजह से तकलीफ देने की. रिपोर्ट कहती है कि नेपाल में हर साल दो महिलाओं की मौत पीरियड की वजह से होती है और दर्द तो दुनियाभर की औरतों का एक जैसा है. हम चाहते हैं पूनम की तरह ही और लड़कियां और महिलाओं समाज में जागरूकता फैलाएं और हां पूनम को इस नेक काम का इनाम जरूर मिले.

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