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स्पंदन ने बढ़ाया कैंसर पीड़ित महिलाओं का हौंसला

कैंसर बीमारी का नाम सुनते हैं इससे ग्रसित लोगों के मन में डर बैठ जाता है.इस डर को दूर करने का काम कर रहीं हैं स्पंदन संस्था से जुड़ी महिलाएं. जिनका लक्ष्य कैंसर की बीमारी का डर लोगों के मन से निकालना (Spandan boosted the spirits of women suffering from cancer ) है.

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स्पंदन ने बढ़ाया कैंसर पीड़ित महिलाओं का हौंसला
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Published : Jul 20, 2022, 2:16 PM IST

Updated : Jul 20, 2022, 10:14 PM IST

बिलासपुर : कैंसर एक ऐसी बीमारी है जो रोगी को मानसिक रुप से ज्यादा क्षति पहुंचाती है.इस बीमारी में अक्सर रोगी अपनी मौत का इंतजार करते रहते (Spandan boosted the spirits of women suffering from cancer ) हैं. लेकिन कुछ ऐसे लोग भी हैं जो इस बीमारी से ग्रसित होने के बाद इससे लड़ते हुए समाज के लिए मिसाल बन रहे हैं. ऐसा माना जाता है कि कैंसर का इलाज पूरी तरह से संभव नहीं हो पाया है.लिहाजा इससे ग्रसित लोग बीमारी के दौरान डरे रहते हैं.लेकिन अब कुछ महिलाओं ने इस बीमारी के डर को मरीज के अंदर से निकालने का बीड़ा उठाया है.इन महिलाओं में खास बात ये है कि ये खुद कैंसर की बीमारी से पीड़ित हैं.

स्पंदन ने बढ़ाया कैंसर पीड़ित महिलाओं का हौंसला

कौन हैं ये महिलाएं : कैंसर पीड़ित महिलाओं का एक समूह है. जो महिलाओं की मदद कर रही है. इस समूह को कैंसर सर्वाइवर महिला सदस्यों ने स्पंदन नाम दिया (Cancer survivor women group in Bilaspur) है. ये महिलाए एक संस्था बनाकर कैंसर पीड़ितों की मदद कर रही है. कैंसर सर्वाइवर महिलाएं कैंसर अस्पताल जाकर इस बीमारी से पीड़ितों को उनके अंदर के डर को भगाने का काम कर रही हैं. स्पंदन में 15 सदस्य है. संस्था में 4 कैंसर के डॉक्टर है. 11 सदस्यों में लगभग 6 सदस्य खुद कैंसर पीड़ित हैं. कुछ के परिवार के सदस्य कैंसर रोग से लड़ रहे हैं. सदस्यों में कुछ अब भी कीमोथैरेपी से अपना इलाज करा रहे हैं. तो कुछ लगभग ठीक हो रही हैं. तो कुछ के परिवार के सदस्य के साथ खुद भी कैंसर को दूर भगाने प्रयास कर रही है.


कैसे मदद करती है स्पंदन की सदस्य : स्पंदन संस्था की सदस्य कैंसर अस्पताल जाकर कैंसर पीड़ित महिलाओं को इसके खिलाफ लड़ने की हिम्मत देते हैं. संस्था की सदस्य पीड़ितों को बताते है कि वो खुद इस बीमारी से लड़ रही हैं. लेकिन वो आज भी सामान्य जीवन जी रही हैं और इसे एक सामान्य बीमारी मानकर अपना इलाज करा रही हैं. इन महिलाओं ने कैंसर पीड़ितों की मदद के लिए अस्पतालों में जाकर उन्हें पहले कीमो और ऑपरेशन के डर से उभारने का काम करती हैं. इससे ठीक होकर सामान्य जीवन जीने वालों के विषय में बताकर संबल देती (group of women suffering from cancer in bilaspur) हैं.



भ्रांतियां हो रही है खत्म : किसी समय में कैंसर को लाइलाज बीमारी माना जाता था. लेकिन अब बदलते समय और नई-नई दवाइयों की खोज और ऑपरेशन ने इस बीमारी का इलाज ढूंढ लिया है. बीमारी से किसी समय में लोगों की मौत निश्चित थी. अब इस बीमारी से पीड़ित ठीक भी हो रहे है. कैंसर पीड़ित कुछ महिलाओं ने स्पंदन संस्था के माध्यम से पीड़ितों के अंदर से इस बीमारी का डर दूर कर रहे हैं. वो बता रहे हैं कि इस बीमारी से डरना नही बल्कि लड़ने की जरूरत है. वो पीड़ितों को हिम्मत देकर इस बीमारी के प्रति जागरूक कर रही हैं. ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित महिलाओं की आर्थिक मदद के साथ ही उन्हें जरूरत पड़ने वाले समान भी नि:शुल्क प्रदान कर रही है.



स्पंदन समूह की कैसे हुई शुरुआत : स्पंदन संस्था की एक पीड़ित महिला तो मिशाल बन कर उभरी हैं. संस्था की प्रमुख आराधना त्रिपाठी खुद भी एक कैंसर सर्वाइवर है और उन्होंने अपने विषय मे बताते हुए कहा कि ''जब उन्हें सन 2012 में पता चला कि वह कैंसर से पीड़ित हो गई है तो वह काफी डर गई और इस डर से वो सहमी सहमी रहने लगी. फिर उन्होंने इस बीमारी से डरना छोड़ दिया और लड़ने की ठान ली. जब वह अपना इलाज कराने अस्पताल जाती थी. तो दूसरे मरीजों को डरा देखकर उन्हें हिम्मत देती थी. उनकी यही हिम्मत से लोग उनके साथ जुड़ते गए हैं.आराधना त्रिपाठी ने साल 2019 स्पंदन नाम से संस्था बनाया और आज लगभग 3 सौ से ज्यादा कैंसर पीड़ितों की मदद कर चुकी है.



कैंसर सरवाइवर ने बताया एक्सपीरियंस : कैंसर सरवाइवर रेनू बाजपेई ने बताया कि '' जब उन्हें पहली बार पता चला कि उन्हें ब्रेस्ट कैंसर है.तो उनके पैरों के नीचे से मानो जमीन खिसक गई हो. रेणु अकेली अस्पताल गई थी. तब वह नहीं जानती थी कि उन्हें ब्रेस्ट कैंसर है. डॉक्टर ने जब उन्हें जानकारी दी तो वे ऐसा महसूस करने लगी. जैसे मानो आंखों के सामने अंधेरा छा गया हो. रेणु बाजपेई ने बताया कि ''उनमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह अकेली घर जा सके. उन्होंने अपने हस्बैंड को बुलाया और तब वह उनके साथ घर जा सकी. रेणु अभी भी ब्रेस्ट कैंसर सरवाइव कर रही हैं, लेकिन इस संस्था से जुड़ने के बाद लोगों को बताती हैं कि वह भी कैंसर पीड़ित हैं और इस बीमारी से जूझ रहे लोगों को हिम्मत देती हैं. वो कहती हैं कि जिस तरह वह खुद इस बीमारी से ग्रसित होने के बाद भी सामान्य जीवन जी रही हैं. तो आप भी इसी तरह से जीवन जी सकते हैं. रेनू बाजपेई और इनके साथ ही सदस्यों ने कैंसर पीड़ित को हिम्मत देने के साथ ही उन्हें यह बता दिया है कि वह इस बीमारी को मात देने के लिए तैयार है.''

कैंसर पीड़ित ने की हिमालय में 12 हजार फीट की ट्रैकिंग : बिलासपुर के यदुनंदन नगर में रहने वाली '' प्रियंका शुक्ला कैंसर पीड़ित है. वह भी इस बीमारी को मात दे रही है. वह कैंसर से लड़ते हुए हिमालय के 12 हजार फीट की ऊंचाई में ट्रैकिंग कर लौट (Cancer Survivor Priyanka Shukla Trekking Himalayas) चुकी हैं. प्रियंका उन महिलाओं के लिए मिसाल बन कर उभर रही हैं.जो इस बीमारी से लड़ते हुए हिम्मत हार जाती है. प्रियंका शुक्ला हिमालय में 12 हजार फीट ऊपर तक ट्रैकिंग कर चुकी है. वहां से वह सकुशल लौट गई है. उन्होंने बताया कि वह कैसे इस बीमारी को लेकर चिंतित रहती थी. फिर किस तरह वह हिमालय की 12000 फीट ऊपर ट्रैकिंग की. उन्होंने ट्रैकिंग के अनुभव को साझा करते हुए कहा कि आज भी वो कैंसर से लड़ रहे हैं, लेकिन अब वो इसे बीमारी नहीं बल्कि दिनचर्या की सामान्य तबियत खराब होने जैसा मानती है.''

बिलासपुर : कैंसर एक ऐसी बीमारी है जो रोगी को मानसिक रुप से ज्यादा क्षति पहुंचाती है.इस बीमारी में अक्सर रोगी अपनी मौत का इंतजार करते रहते (Spandan boosted the spirits of women suffering from cancer ) हैं. लेकिन कुछ ऐसे लोग भी हैं जो इस बीमारी से ग्रसित होने के बाद इससे लड़ते हुए समाज के लिए मिसाल बन रहे हैं. ऐसा माना जाता है कि कैंसर का इलाज पूरी तरह से संभव नहीं हो पाया है.लिहाजा इससे ग्रसित लोग बीमारी के दौरान डरे रहते हैं.लेकिन अब कुछ महिलाओं ने इस बीमारी के डर को मरीज के अंदर से निकालने का बीड़ा उठाया है.इन महिलाओं में खास बात ये है कि ये खुद कैंसर की बीमारी से पीड़ित हैं.

स्पंदन ने बढ़ाया कैंसर पीड़ित महिलाओं का हौंसला

कौन हैं ये महिलाएं : कैंसर पीड़ित महिलाओं का एक समूह है. जो महिलाओं की मदद कर रही है. इस समूह को कैंसर सर्वाइवर महिला सदस्यों ने स्पंदन नाम दिया (Cancer survivor women group in Bilaspur) है. ये महिलाए एक संस्था बनाकर कैंसर पीड़ितों की मदद कर रही है. कैंसर सर्वाइवर महिलाएं कैंसर अस्पताल जाकर इस बीमारी से पीड़ितों को उनके अंदर के डर को भगाने का काम कर रही हैं. स्पंदन में 15 सदस्य है. संस्था में 4 कैंसर के डॉक्टर है. 11 सदस्यों में लगभग 6 सदस्य खुद कैंसर पीड़ित हैं. कुछ के परिवार के सदस्य कैंसर रोग से लड़ रहे हैं. सदस्यों में कुछ अब भी कीमोथैरेपी से अपना इलाज करा रहे हैं. तो कुछ लगभग ठीक हो रही हैं. तो कुछ के परिवार के सदस्य के साथ खुद भी कैंसर को दूर भगाने प्रयास कर रही है.


कैसे मदद करती है स्पंदन की सदस्य : स्पंदन संस्था की सदस्य कैंसर अस्पताल जाकर कैंसर पीड़ित महिलाओं को इसके खिलाफ लड़ने की हिम्मत देते हैं. संस्था की सदस्य पीड़ितों को बताते है कि वो खुद इस बीमारी से लड़ रही हैं. लेकिन वो आज भी सामान्य जीवन जी रही हैं और इसे एक सामान्य बीमारी मानकर अपना इलाज करा रही हैं. इन महिलाओं ने कैंसर पीड़ितों की मदद के लिए अस्पतालों में जाकर उन्हें पहले कीमो और ऑपरेशन के डर से उभारने का काम करती हैं. इससे ठीक होकर सामान्य जीवन जीने वालों के विषय में बताकर संबल देती (group of women suffering from cancer in bilaspur) हैं.



भ्रांतियां हो रही है खत्म : किसी समय में कैंसर को लाइलाज बीमारी माना जाता था. लेकिन अब बदलते समय और नई-नई दवाइयों की खोज और ऑपरेशन ने इस बीमारी का इलाज ढूंढ लिया है. बीमारी से किसी समय में लोगों की मौत निश्चित थी. अब इस बीमारी से पीड़ित ठीक भी हो रहे है. कैंसर पीड़ित कुछ महिलाओं ने स्पंदन संस्था के माध्यम से पीड़ितों के अंदर से इस बीमारी का डर दूर कर रहे हैं. वो बता रहे हैं कि इस बीमारी से डरना नही बल्कि लड़ने की जरूरत है. वो पीड़ितों को हिम्मत देकर इस बीमारी के प्रति जागरूक कर रही हैं. ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित महिलाओं की आर्थिक मदद के साथ ही उन्हें जरूरत पड़ने वाले समान भी नि:शुल्क प्रदान कर रही है.



स्पंदन समूह की कैसे हुई शुरुआत : स्पंदन संस्था की एक पीड़ित महिला तो मिशाल बन कर उभरी हैं. संस्था की प्रमुख आराधना त्रिपाठी खुद भी एक कैंसर सर्वाइवर है और उन्होंने अपने विषय मे बताते हुए कहा कि ''जब उन्हें सन 2012 में पता चला कि वह कैंसर से पीड़ित हो गई है तो वह काफी डर गई और इस डर से वो सहमी सहमी रहने लगी. फिर उन्होंने इस बीमारी से डरना छोड़ दिया और लड़ने की ठान ली. जब वह अपना इलाज कराने अस्पताल जाती थी. तो दूसरे मरीजों को डरा देखकर उन्हें हिम्मत देती थी. उनकी यही हिम्मत से लोग उनके साथ जुड़ते गए हैं.आराधना त्रिपाठी ने साल 2019 स्पंदन नाम से संस्था बनाया और आज लगभग 3 सौ से ज्यादा कैंसर पीड़ितों की मदद कर चुकी है.



कैंसर सरवाइवर ने बताया एक्सपीरियंस : कैंसर सरवाइवर रेनू बाजपेई ने बताया कि '' जब उन्हें पहली बार पता चला कि उन्हें ब्रेस्ट कैंसर है.तो उनके पैरों के नीचे से मानो जमीन खिसक गई हो. रेणु अकेली अस्पताल गई थी. तब वह नहीं जानती थी कि उन्हें ब्रेस्ट कैंसर है. डॉक्टर ने जब उन्हें जानकारी दी तो वे ऐसा महसूस करने लगी. जैसे मानो आंखों के सामने अंधेरा छा गया हो. रेणु बाजपेई ने बताया कि ''उनमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह अकेली घर जा सके. उन्होंने अपने हस्बैंड को बुलाया और तब वह उनके साथ घर जा सकी. रेणु अभी भी ब्रेस्ट कैंसर सरवाइव कर रही हैं, लेकिन इस संस्था से जुड़ने के बाद लोगों को बताती हैं कि वह भी कैंसर पीड़ित हैं और इस बीमारी से जूझ रहे लोगों को हिम्मत देती हैं. वो कहती हैं कि जिस तरह वह खुद इस बीमारी से ग्रसित होने के बाद भी सामान्य जीवन जी रही हैं. तो आप भी इसी तरह से जीवन जी सकते हैं. रेनू बाजपेई और इनके साथ ही सदस्यों ने कैंसर पीड़ित को हिम्मत देने के साथ ही उन्हें यह बता दिया है कि वह इस बीमारी को मात देने के लिए तैयार है.''

कैंसर पीड़ित ने की हिमालय में 12 हजार फीट की ट्रैकिंग : बिलासपुर के यदुनंदन नगर में रहने वाली '' प्रियंका शुक्ला कैंसर पीड़ित है. वह भी इस बीमारी को मात दे रही है. वह कैंसर से लड़ते हुए हिमालय के 12 हजार फीट की ऊंचाई में ट्रैकिंग कर लौट (Cancer Survivor Priyanka Shukla Trekking Himalayas) चुकी हैं. प्रियंका उन महिलाओं के लिए मिसाल बन कर उभर रही हैं.जो इस बीमारी से लड़ते हुए हिम्मत हार जाती है. प्रियंका शुक्ला हिमालय में 12 हजार फीट ऊपर तक ट्रैकिंग कर चुकी है. वहां से वह सकुशल लौट गई है. उन्होंने बताया कि वह कैसे इस बीमारी को लेकर चिंतित रहती थी. फिर किस तरह वह हिमालय की 12000 फीट ऊपर ट्रैकिंग की. उन्होंने ट्रैकिंग के अनुभव को साझा करते हुए कहा कि आज भी वो कैंसर से लड़ रहे हैं, लेकिन अब वो इसे बीमारी नहीं बल्कि दिनचर्या की सामान्य तबियत खराब होने जैसा मानती है.''

Last Updated : Jul 20, 2022, 10:14 PM IST

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