बिलासपुर : बिलासपुर के शहरी क्षेत्र में मच्छर के प्रकोप से आम जनता काफी परेशान है. नालियों में जमा पानी में मच्छरों के करोड़ों लार्वा बिलबिलाते रहते हैं. इन मच्छरों से परेशान होकर शहर के एक व्यक्ति ने इन्हें खत्म करने का बीड़ा उठाया (Sheikh Shaheen to eliminate mosquito in Bilaspur) है. वह शहर की नालियों में घूम-घूम कर मच्छरों का लार्वा खाने वाली मछलियां डालते हैं. इस काम को वे अपने बेटे और दुकान में काम करने वाले लड़कों के साथ मिलकर करते हैं.
शाहीन ने उठाया मच्छरों के खात्मे का बीड़ा
नगर निगम बारिश के पानी को बहाने के लिए मुख्य मार्गों और चौक-चौराहों पर बड़े नाला और नालियां बनाता है. ये नालियां बहती नहीं, बल्कि इसका पानी साल भर जमा रहता है. घरों के सामने की नालियां भी पूरी तरह बहती नहीं हैं. इसका पानी भी नालियों में पूरे साल भरा रहता है. इनमें ही मच्छर अंडे देते हैं, जो लार्वा बनकर नालियों में रहते हैं. इसके बाद वे मच्छर बन जाते हैं. नालियों में मच्छर बड़ी संख्या में पनपते हैं. यही मच्छर अपना प्रकोप फैलाते हैं. इन मच्छरों से परेशान होकर बिलासपुर के इमलीपारा रोड में रहने वाले शेख शाहीन ने इन्हें खत्म करने का बीड़ा उठाया है.
बाजार से लार्वा खाने वाली मछलियां लेकर आए शाहीन
शाहीन बाजार से साल भर पहले मच्छरों का लार्वा खाने वाली कुछ मछलियां लेकर आए थे. मच्छरों को खत्म करने की मंशा इन्होंने पहले ही बना ली थी. उन्होंने घर के सामने एक छोटी सी टंकी में मछलियां रखीं. कुछ समय बाद इन मछलियों की तादाद बढ़ती गई. शाहीन ने इन मछलियों को अपने घर के सामने नालियों में डाला. शाहीन ने देखा कुछ समय में उनके घर के सामने की नाली में बिलबिलाते मच्छरों के लार्वा खत्म हो गए. उन्हें काफी हद तक मच्छरों के प्रकोप से निजात मिल गई. इसके बाद शाहीन ने देखा कि नालियों के साफ पानी में लाखों की तादाद में लार्वा खाने वाली मछलियों की संख्या बढ़ गई थी.
कुछ ही समय में बढ़ने लगती हैं मछलियों की संख्या
फिर शाहीन ने सोचा कि इन्हीं मछलियों को आसपास की दूसरी जगह की नालियों में डालें. वहां भी मच्छरों के प्रकोप से लोगों को निजात मिलेगी. तब शाहीन ने इन मछलियों को नालियों से निकाल कर दूसरी जगह की नालियों में डाला. शाहीन इन मछलियों का नाम ठीक तरीके से नहीं बता पा रहे हैं. इन मछलियों को गम्बूजिया और आम बोलचाल में गप्पी कहा जाता है. शाहीन ने बताया कि वे कुछ संख्या में मछलियां लेकर आए थे. मछलियों को टंकी में रखा, फिर उन्होंने लार्वा खाने वाली इन मछलियों को एक्यूरियम में रखा. मछलियों को देने वाला चारा खिलाया करते थे. कुछ समय बाद इनकी संख्या बढ़ने से वे अपनी मंशा के अनुरूप दूसरे जगह की नालियों में डालने के काम को अंजाम देने लगे.
निगम को करना चाहिए ये काम
शाहीन का कहना है कि इस काम को नगर निगम को करना चाहिए. शाहीन ने ये भी कहा कि उनके इस काम को करने के पीछे का कारण जनहित में काम करना है. उन्होंने मांग की है कि प्रदेश सरकार भी इसी तरह का काम यदि करे तो कुछ समय बाद मच्छरों के प्रकोप से प्रदेशवासियों को मुक्ति मिल जाएगी.
एक्वेरियम में रखी जाती हैं लार्वा खाने वाली गप्पी मछलियां
ये गप्पी मछलियां घरों में एक्वेरियम में रखी जाती हैं. गप्पी मछलियां मच्छरों के अंडे और एक्यूरियम की गंदगी को साफ करती हैं. यह मछलियां बाजार में एक एक्वेरियम की मछली बेचने वालों के यहां उपलब्ध होती हैं. इसकी कीमत सामान्य होती है. यह मछली बाजार में सौ से लेकर 2 सौ रुपए तक के पेयर में मिलती है. इन मछलियों के पेट आकर्षक और चमकदार होते हैं. चमकीले पंख और पूंछ होती हैं, जिसे लोग पसंद करते हैं. कुछ लोग सैकड़ों की तादाद में इन मछलियां को एक्यूरियम में रखते हैं. बड़े साइज के एक्यूरियम में इन मछलियों को आवश्यक रूप से रखा जाता है, क्योंकि बड़े एक्यूरियम के पानी को बार-बार साफ नहीं किया जा सकता है. इनमें मच्छर अंडे देते हैं और लार्वा बनते हैं. यही कारण है कि गप्पी मछलियों को एक्यूरियम में रखा जाता है, ताकि वे मच्छरों के लार्वा का सफाया कर सकें.
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गम्बूजिया मछली खाती है मच्छरों के लार्वा
गम्बूजिया मछली भी पानी पर अंडे देने वाले डेंगू और मलेरिया के मच्छरों के लार्वा को मच्छर पैदा होने से पहले ही चट कर जाती है. मच्छरों की तादाद नहीं बढ़ती और कुछ हद तक रोक लग जाती है. बता दें कि एकदम गम्बूजिया मछली 24 घंटे में सौ से 3 सौ तक लार्वा खा सकती हैं. गम्बूजिया मछली को ग्रो होने में 3 से 6 महीने का वक्त लगता है. एक मछली 1 महीने में करीब 50 से 200 अंडे देती हैं. यह मछली करीब 4 से 5 साल जिंदा रह सकती हैं.