गौरेला पेंड्रा मरवाही : जिले में खाद्य विभाग की उदासीनता के कारण एक अच्छी योजना का नुकसान हो रहा है. खाद्य विभाग की अकर्मण्यता के कारण ग्रामीणों को कुपोषण से बचाने के लिए शुरू की गई फोर्टिफाइड राइस स्किम फेल हो रही है. प्रचार-प्रसार और जानकारी के अभाव में राशन दुकानों से मिले चावल में डाले गए फोर्टिफाइड राइस को प्लास्टिक का चावल समझ कर ग्रामीण निकालकर बाहर फेंक रहे (villagers throwing fortified rice of marwahi) हैं.
क्यों बांटा गया था फोर्टिफाइड चावल : देश में कुपोषण की चुनौतियों से निपटने के लिए फोर्टिफाइड चावल वितरण प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण-पीएम पोषण' के तहत किया जा रहा है. पहले चरण में देशभर के 90 जिलों को चिन्हांकित किया गया है. जबकि दूसरे चरण में 291 जिलों में फोर्टिफाइड चावल वितरण का लक्ष्य रखा गया है. वहीं 2024 तक पूरे देश में फोर्टीफाइड चावल वितरित किया जाएगा. पहले चरण की शुरुआत अक्तूबर 2021 में कर दी गई थी. ग्रामीणों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए पूरक पोषण योजना अंतर्गत छत्तीसगढ़ के कई जिलों में फोर्टीफाइड चावल का वितरण किया जा रहा है. यह चावल देखने में बिल्कुल सामान्य चावल की तरह ही नजर आता है. बस आकार में थोड़ा बड़ा एवं मोटा है.
ग्रामीण इलाकों में स्कीम फेल : ग्रामीण इलाके में लोग प्लास्टिक का चावल समझ कर चावल चुनने के वक्त इसे निकालकर बाहर कर देते (Lack of awareness in villagers of marwahi) हैं. प्लास्टिक का चावल होने की जानकारी मिलने के बाद ग्रामीणों ने इसकी जानकारी मीडिया को दी कि उन्हें राशन दुकानों से इस बार प्लास्टिक का चावल मिला राशन दिया गया है. मामले पर पूरी जानकारी लेने पर पता चला कि ये फोर्टिफाइड चावल है.जिसमें आयरन, फोलिक एसिड और विटामिन बी-12 मिश्रित किया जाता है. यह चावल एनीमिया और आयरन की कमी से होने वाली मौतों को कम कर सकताहै.
स्वास्थ्यकर्मियों को ही नहीं है जानकारी : स्वास्थ्य विभाग में इकाई के रूप में काम करने वाली स्वास्थ्य मितानिन और एएनएम को इस मामले में जानकारी नहीं है. वो खुद ही चावल से फोर्टीफाइड राइस को चुनकर बाहर कर रही हैं. उसे डर है कहीं इसे खाने से उसके शरीर में दुष्प्रभाव ना पड़ जाए.
प्रचार प्रसार की जिम्मेदारी किसकी : फोर्टिफाइड राइस के प्रचार प्रसार की जिम्मेदारी खाद्य विभाग के साथ-साथ शासन को सौंपी गई थी. लेकिन खाद्य विभाग ने अब तक फोर्टिफाइड चावल के संबंध में ग्रामीणों को कोई जानकारी नहीं दी. इतना ही नहीं प्रशासन में बैठे एसडीएम को भी इस संबंध में जानकारी का अभाव है. हालांकि मामला सामने आने के बाद प्रशासनिक अधिकारी अब फोर्टिफाइड चावल के लाभ की जानकारी मुनादी कराकर या कोटवारों के माध्यम से एवं शिविर के माध्यम से अब ग्रामीणों को देने की बात कह रहे हैं.
क्या कहते हैं आंकड़े : प्रति किलो चावल फोर्टिफिकेशन में 50 पैसे से 73 पैसे का खर्च आता है,जबकि देश में कुपोषण से होने वाली बीमारियों और मौत से सालाना 77 हजार करोड़ रुपए की उत्पादकता प्रभावित होती है. एक आंकड़े में बताया गया है कि कुपोषण के कारण देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में एक फीसद (2.03 लाख करोड़ रुपए) की क्षति होती है. जो आयरन की कमी और एनीमिया से होता है. पोषक तत्वों पर एक रुपए खर्च करने से सार्वजनिक वित्त व्यवस्था में 34 से 38.6 रुपए की वृद्धि होती है.marwahi latest news