बिलासपुर: छत्तीसगढ़ में मानसिक रोगियों को इलाज नहीं मिल पाने और मानसिक अस्पतालों में स्टाफ की कमी पर बुधवार को हाईकोर्ट ने राज्य शासन को जानकारी देने के निर्देश दिए हैं. इस मामले की अगली सुनवाई के लिए कोर्ट ने 4 सप्ताह बाद का समय निर्धारित किया है. राज्य में मानसिक रोगियों के इलाज के लिए 2017 में बने अधिनियम के अनुसार प्रावधान और सुविधा नहीं होने पर रायपुर के अधिवक्ता विशाल कोहली ने अधिवक्ता हिमांशु पांडे के माध्यम से हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है.
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इस याचिका में बताया गया है कि, 10 हजार लोगों पर एक मनोचिकित्सक होना चाहिए जबकि राज्य में 8 लाख लोगों पर एक चिकित्सक है. प्रावधान के अनुसार हर जिले में एक मानसिक स्वास्थ्य केंद्र और मनोचिकित्सक होने चाहिए. याचिका में यह भी बताया गया कि प्रदेश के एकमात्र राज्य मानसिक चिकित्सालय बिलासपुर सेंदरी के लिए 11 चिकित्सकों के पद स्वीकृत हैं. लेकिन उसमें सिर्फ 3 पदों पर ही मनोचिकित्सक की नियुक्ति हुई है. इसके अलावा एक और चिकित्सक की नियुक्ति कर दी गई है.
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कोर्ट ने राज्य सरकार को जारी किया था नोटिस
बुधवार को इस मामले में हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने इस बात को गंभीरता से लिया कि मनोचिकित्सक के पद भी नहीं भरे गए. कोर्ट ने पूछा कि प्रावधान के अनुसार इलाज के लिए प्रदेश में की जा रही व्यवस्था और मानसिक चिकित्सालय में रिक्त पद भरने के लिए क्या किया जा रहा है. राज्य शासन को 4 सप्ताह में बताने के निर्देश कोर्ट ने दिए हैं. याचिका में यह भी बताया गया कि राज्य में मानसिक स्वास्थ्य से प्रभावित 78 परसेंट लोगों को उपचार नहीं मिल पा रहा है. जबकि 2017 में मानसिक स्वास्थ्य देख-रेख के लिए एक अधिनियम बना था, इसमें मनोचिकित्सा के लिए राज्य सरकार को अलग से बजट देने को कहा गया है. इसके बाद भी छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार द्वारा सत्र 2020-21 के लिए कोई बजट नहीं दिया गया. इतना ही नहीं, ना ही भविष्य में बजट देने की भी बात कही गई. याचिका पर पिछली सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने स्वास्थ्य सचिव,प्रमुख सचिव, परिवार कल्याण राज्य मानसिक चिकित्सालय बिलासपुर के डॉक्टर बीपी आर्य और दो डॉक्टर को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था.