बिलासपुर : आंखों में मोतियाबिंद की बीमारी होने पर आंखों का इलाज ऑपरेशन से होता है.ऑपरेशन के बाद आंखों की रौशनी वापस आ जाती है.लेकिन आंखों की एक बीमारी ऐसी है जिससे आंखों की रौशनी जाने के बाद वापस नहीं आती है. इस बीमारी को डॉक्टरी भाषा में ग्लूकोमा कहा जाता है. ग्लूकोमा यानी कांचबिन होता है.
मोतियाबिंद से भी ज्यादा खतरनाक कांचबिन : मोतियाबिंद में ऑपरेशन कर दोबारा रोशनी तो पाई जा सकती है, लेकिन एक बार आंखों में कांचबिन हो जाए तो फिर दोबारा आंखों में रोशनी नहीं आती. आंखों की नसे कांचबिन की वजह से सूख जाती हैं, इसी वजह से इंसान अंधेपन का शिकार हो जाता है. आज हम अपने एक्सपर्ट से जानेंगे ग्लूकोमा से बचने के उपाय
कितना खतरनाक है ग्लूकोमा : आंखों के स्पेशलिस्ट डॉक्टर एलसी मढ़रिया ने बताया कि '' ग्लूकोमा को सामान्य बोलचाल की भाषा मे कांचबिन कहा जाता है.यह इतनी खतरनाक बीमारी है कि एक बार किसी की आंखों में हो जाए, तो फिर वह जीवन भर कुछ देख नहीं पाता. वह पूरी तरह से अंधत्व का शिकार हो जाता है. ऐसे में उसका जीवन अंधकार में चला जाता है. कांचबिन की वजह से आंखों की नसें सूख जाती हैं. जो रिकवर नहीं हो पाती.''
कैसे बीमारी को बढ़ने से रोके : डॉ एलसी मढ़रिया ने बताया कि '' यदि किसी को शुरुआती दौर में कांचबिन की समस्या हो तो उसे बढ़ने से रोका जा सकता है, लेकिन यदि एक बार यह रोग लग जाए तो इसका इलाज संभव नहीं है. शुरुआती दौर पर जांच कराया जाए और जानकारी लगे कि आंखों में 30 फीसदी ग्लूकोमा हो गया है तो, इलाज करके उसे वहीं रोका जा सकता है. इलाज कराने से ग्लूकोमा 30 प्रतिशत में ही रुक जाता है और बढ़ नहीं पाता. लेकिन ये भी है कि इलाज कराने के बाद भी वह 30 प्रतिशत खत्म नहीं होगा सिर्फ वहीं रुका रहेगा.''
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कैसे होता है ग्लूकोमा : डॉ एलसी मढ़रिया ने बताया कि '' ग्लूकोमा जन्मजात बीमारी होती है. ग्लूकोमा होने का सबसे बड़ा कारण वंशानुगत दोष है. मां के गर्भावस्था के दौरान असामान्य विकास भी ग्लूकोमा होने का एक कारण है. ग्लूकोमा होने से रोका तो नहीं जा सकता लेकिन एक बार हो जाए तो इसके लिए जिंदगी भर आंखों में दवाई डाली जाती है. जिस तरह बीपी और शुगर के लिए जिंदगी भर दवा खाना होता है. उसी तरह ग्लूकोमा होने पर दवाई डालना पड़ता है. सबसे अच्छा बचाव का तरीका ये है कि 40 साल की उम्र के बाद हर व्यक्ति को हर 6 माह में आंखों की जांच करानी चाहिए. जिससे ग्लूकोमा के बढ़ने से पहले उसकी जानकारी लग जाए .शुरुवाती दौर में ही इसका इलाज शुरू कर दिया जाए. इससे आंखों को सुरक्षित रखने में मदद मिलेगी.''