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खमतराई में 100 साल पहले स्थापित हुई थीं आपरूपी वन देवी, जानिये यहां क्यों चढ़ता है पत्थर का चढ़ावा

वैसे तो सैकड़ों ऐसे मंदिर हैं, जहां देवी-देवताओं के चढ़ावे के लिए प्रसाद, चुनरी या अन्य कई तरह की सामग्री चढ़ाई जाती है. लेकिन इनमें कुछ ऐसी देवी देवता भी हैं जिन्हें चढ़ावे के रूप में अलग तरह की वस्तु पसंद है और उनकी पसंद की वस्तु चढ़ाने पर इंसान की हर मनोकामना पूरी हो जाती है. बिलासपुर में भी इसी तरह की देवी है, जिन्हें पत्थर बेदह पसंद है और वह पत्थर के चढ़ावे से खुश जा जाती है. बिलासपुर के पास खमतराई गांव में स्थित बगदाई (वनदेवी) मंदिर है. यहां नवरात्र में देवी मां के दर्शन के लिए लोग पहुंचते हैं. यहां भक्त देवी मां को प्रसाद नहीं बल्कि पत्थर चढ़ाते हैं.

mother forest goddess
मां वन देवी
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Published : Oct 9, 2021, 8:45 PM IST

Updated : Oct 9, 2021, 10:37 PM IST

बिलासपुर: खमतराई गांव में वन देवी का मंदिर है. मंदिर में नवरात्रि के मौके पर भक्त पत्थर का चढ़ावा चढ़ाते हैं और देवी मां अपने हर भक्त की मनोकामना पूरी करती हैं. देवी भी भक्तों के चढ़ाव से खुश होती है और मनोकामना की पूर्ति करती है. 100 साल पहले एक पेड़ के नीचे खुद देवी की प्रतिमा स्थापित हुई थी. तभी से जंगल से निकलने वाले मुसाफिर यहां देवी मां के मंदिर में पत्थर चढ़ाकर आगे जाते थे. तब यहां कोई प्रसाद के लिए दुकान नहीं हुआ करती थी और देवी को चढ़ावा चढ़ाने के लिए कुछ नहीं होने पर लोग आसपास से पत्थर उठाकर देवी को अर्पित करते थे. तभी से यह परंपरा चली आ रही है.

वैसे तो सैकड़ों ऐसे मंदिर हैं, जहां देवी-देवताओं के चढ़ावे के लिए प्रसाद चुनरी या अन्य कई तरह की सामग्री चढ़ाई जाती है. लेकिन इनमें कुछ ऐसी देवी देवता हैं जिन्हें चढ़ावे के रूप में अलग तरह की वस्तु पसंद है और उनकी पसंद की वस्तु चढ़ाई जाती है तो मान्यता है कि इंसान की मनोकामना पूरी हो जाती है. बिलासपुर में भी इसी तरह की देवी है. जिन्हें पत्थर पसंद और वह पत्थर के चढ़ावे से खुश होती है. बिलासपुर के पास खमतराई गांव में स्थित बगदाई (वनदेवी) मंदिर है.

इस मंदिर में नवरात्र के समय श्रद्धालूओं की बड़ी संख्या पहुंच रही हैं. यह मंदिर अनूठा है. इसका निर्माण तो अभी के हाल ही के सालों में शुरू हुआ है. लेकिन इस स्थान पर लोगों की श्रद्धा काफी पुरानी 100 साल से भी ज्यादा की है. जब यहां जंगल हुआ करता था और जंगली जानवर घम करते थे. तब लोग यहां से आने-जाने वाले अपने घर या गंतव्य तक सकुशल पहुंचने के लिए पांच पत्थर रखकर मनोकामना मांगते हुए आगे बढ़ जाते थे और सुरक्षित अपने गंतव्य तक पहुंचते थे.

लोगों का मानना है कि धीरे- धीरे लोगों को वन देवी के विषय में जानकारी हुई और लोग यहां आने लगे. बाद के वर्षों में यहा जब बस्ती बसी तो यहां पेड़ के नीचे रखी रखी प्रतिमा के लिए आसपास के लोगों ने छोटे से मंदिर का निर्माण कराया. मंदिर से जुड़े लोग और श्रद्धालुओं ने बताया कि 100 साल पहले से भी वनदेवी स्थापित है और परंपरा चली आ रही है. लोगों का कहना है कि दूर-दूर से लोग आते हैं और उनकी मनोकामना वनदेवी मंदिर में पूरी होती है, जो अनूठा है.

स्वयंभू स्थापित है देवी

वनदेवी के बारे में कहा जाता है कि वह स्वयंभू स्थापित हैं. क्योंकि लगभग 500 सालों से लोग यहां आ रहे हैं. लेकिन किसी को यह नहीं मालूम है कि देवी की प्रतिमा कौन लेकर आया है और यहां कैसे पहुंची. कहते हैं कि पेड़ के नीचे ही लोगों को देवी की प्रतिमा दिखी थी. लेकिन बाद में धीरे-धीरे लोगों को देवी मां के चमत्कार की जानकारी लगने लगी और छोटे से मंदिर के रूप में निर्माण कराकर देवी को स्थापित कर दिया गया.

देवी के कई चमत्कार लोगों को देखने को मिले

मंदिर आने वाले भक्तों ने बताया कि देवी के चमत्कार का जीता जागता सबूत वह स्वयं है. क्योंकि जब उसके हाथ की नस सूखने लगी थी और डॉक्टरों ने यह कह दिया था कि उनका हाथ धीरे धीरे काम करना बंद कर देगा, लेकिन जब इन्हें देवी के दैवीय चमत्कारों की जानकारी लगी तो वह यहां आकर देवी से प्रार्थना की. उन्होंने बताया कि अब जो भी हो देवी ही उन्हें ठीक करेगी. उन्होंने देवी की प्रतिमा के सामने पांच पत्थर रखे और कहा कि मां मुझे जल्दी ठीक कर दो. धीरे-धीरे उनका हाथ चलने लगा और हाथ की समस्या पूरी तरह खत्म हो गई.

यहां आने वाले भक्तों ने वन देवी के प्रताप के बारे में कई किस्से कहानी बताई है. उन्होंने बताया कि उनका बच्चा नहीं हो रहा था तब वह यह आये और पत्थर चढ़ाए और कुछ सालों में उनके यहां दो तीन बच्चे हो गए. मन्दिर के पुजारी ने बताया कि यह देवी काफी प्रताप वाली है और पिछले 16 सालों से वही यहा देवी की सेवा कर रहे हैं.

2002 में बिलासपुर नगर निगम (Bilaspur Municipal Corporation) के कमिश्नर राजू थे और उन्होंने इस क्षेत्र के बेजा कब्जा में बसे 85 मकानों को तोड़ने का आदेश दे दिया था. तब इन मकानों में रहने वाले लोगों ने देवी मंदिर पहुंचकर प्रार्थना की. उनका मकान ना टूटे और पांच पत्थर रखे थे. तब रातों-रात कमिश्नर का मन बदल गया और दूसरे दिन वह स्वयं इलाके में पहुंच कर लोगों से कहा कि अब उनका मकान तोड़ने का आदेश उन्होंने वापस ले लिया है और उन्होंने कहा कि वह जब तक रहना चाहे रह सकते हैं, लोगों को भरोसा था कि देवी उनकी समस्या का समाधान करेगी और उनकी समस्या का समाधान होते ही लोगों ने आपस में पैसे जमा कर मंदिर का भव्य निर्माण कराया और यहां की श्रद्धा और विश्वास ने उनका आशियाना बचा लिया.

बिलासपुर: खमतराई गांव में वन देवी का मंदिर है. मंदिर में नवरात्रि के मौके पर भक्त पत्थर का चढ़ावा चढ़ाते हैं और देवी मां अपने हर भक्त की मनोकामना पूरी करती हैं. देवी भी भक्तों के चढ़ाव से खुश होती है और मनोकामना की पूर्ति करती है. 100 साल पहले एक पेड़ के नीचे खुद देवी की प्रतिमा स्थापित हुई थी. तभी से जंगल से निकलने वाले मुसाफिर यहां देवी मां के मंदिर में पत्थर चढ़ाकर आगे जाते थे. तब यहां कोई प्रसाद के लिए दुकान नहीं हुआ करती थी और देवी को चढ़ावा चढ़ाने के लिए कुछ नहीं होने पर लोग आसपास से पत्थर उठाकर देवी को अर्पित करते थे. तभी से यह परंपरा चली आ रही है.

वैसे तो सैकड़ों ऐसे मंदिर हैं, जहां देवी-देवताओं के चढ़ावे के लिए प्रसाद चुनरी या अन्य कई तरह की सामग्री चढ़ाई जाती है. लेकिन इनमें कुछ ऐसी देवी देवता हैं जिन्हें चढ़ावे के रूप में अलग तरह की वस्तु पसंद है और उनकी पसंद की वस्तु चढ़ाई जाती है तो मान्यता है कि इंसान की मनोकामना पूरी हो जाती है. बिलासपुर में भी इसी तरह की देवी है. जिन्हें पत्थर पसंद और वह पत्थर के चढ़ावे से खुश होती है. बिलासपुर के पास खमतराई गांव में स्थित बगदाई (वनदेवी) मंदिर है.

इस मंदिर में नवरात्र के समय श्रद्धालूओं की बड़ी संख्या पहुंच रही हैं. यह मंदिर अनूठा है. इसका निर्माण तो अभी के हाल ही के सालों में शुरू हुआ है. लेकिन इस स्थान पर लोगों की श्रद्धा काफी पुरानी 100 साल से भी ज्यादा की है. जब यहां जंगल हुआ करता था और जंगली जानवर घम करते थे. तब लोग यहां से आने-जाने वाले अपने घर या गंतव्य तक सकुशल पहुंचने के लिए पांच पत्थर रखकर मनोकामना मांगते हुए आगे बढ़ जाते थे और सुरक्षित अपने गंतव्य तक पहुंचते थे.

लोगों का मानना है कि धीरे- धीरे लोगों को वन देवी के विषय में जानकारी हुई और लोग यहां आने लगे. बाद के वर्षों में यहा जब बस्ती बसी तो यहां पेड़ के नीचे रखी रखी प्रतिमा के लिए आसपास के लोगों ने छोटे से मंदिर का निर्माण कराया. मंदिर से जुड़े लोग और श्रद्धालुओं ने बताया कि 100 साल पहले से भी वनदेवी स्थापित है और परंपरा चली आ रही है. लोगों का कहना है कि दूर-दूर से लोग आते हैं और उनकी मनोकामना वनदेवी मंदिर में पूरी होती है, जो अनूठा है.

स्वयंभू स्थापित है देवी

वनदेवी के बारे में कहा जाता है कि वह स्वयंभू स्थापित हैं. क्योंकि लगभग 500 सालों से लोग यहां आ रहे हैं. लेकिन किसी को यह नहीं मालूम है कि देवी की प्रतिमा कौन लेकर आया है और यहां कैसे पहुंची. कहते हैं कि पेड़ के नीचे ही लोगों को देवी की प्रतिमा दिखी थी. लेकिन बाद में धीरे-धीरे लोगों को देवी मां के चमत्कार की जानकारी लगने लगी और छोटे से मंदिर के रूप में निर्माण कराकर देवी को स्थापित कर दिया गया.

देवी के कई चमत्कार लोगों को देखने को मिले

मंदिर आने वाले भक्तों ने बताया कि देवी के चमत्कार का जीता जागता सबूत वह स्वयं है. क्योंकि जब उसके हाथ की नस सूखने लगी थी और डॉक्टरों ने यह कह दिया था कि उनका हाथ धीरे धीरे काम करना बंद कर देगा, लेकिन जब इन्हें देवी के दैवीय चमत्कारों की जानकारी लगी तो वह यहां आकर देवी से प्रार्थना की. उन्होंने बताया कि अब जो भी हो देवी ही उन्हें ठीक करेगी. उन्होंने देवी की प्रतिमा के सामने पांच पत्थर रखे और कहा कि मां मुझे जल्दी ठीक कर दो. धीरे-धीरे उनका हाथ चलने लगा और हाथ की समस्या पूरी तरह खत्म हो गई.

यहां आने वाले भक्तों ने वन देवी के प्रताप के बारे में कई किस्से कहानी बताई है. उन्होंने बताया कि उनका बच्चा नहीं हो रहा था तब वह यह आये और पत्थर चढ़ाए और कुछ सालों में उनके यहां दो तीन बच्चे हो गए. मन्दिर के पुजारी ने बताया कि यह देवी काफी प्रताप वाली है और पिछले 16 सालों से वही यहा देवी की सेवा कर रहे हैं.

2002 में बिलासपुर नगर निगम (Bilaspur Municipal Corporation) के कमिश्नर राजू थे और उन्होंने इस क्षेत्र के बेजा कब्जा में बसे 85 मकानों को तोड़ने का आदेश दे दिया था. तब इन मकानों में रहने वाले लोगों ने देवी मंदिर पहुंचकर प्रार्थना की. उनका मकान ना टूटे और पांच पत्थर रखे थे. तब रातों-रात कमिश्नर का मन बदल गया और दूसरे दिन वह स्वयं इलाके में पहुंच कर लोगों से कहा कि अब उनका मकान तोड़ने का आदेश उन्होंने वापस ले लिया है और उन्होंने कहा कि वह जब तक रहना चाहे रह सकते हैं, लोगों को भरोसा था कि देवी उनकी समस्या का समाधान करेगी और उनकी समस्या का समाधान होते ही लोगों ने आपस में पैसे जमा कर मंदिर का भव्य निर्माण कराया और यहां की श्रद्धा और विश्वास ने उनका आशियाना बचा लिया.

Last Updated : Oct 9, 2021, 10:37 PM IST
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