बिलासपुर: बिलासपुर सिम्स मेडिकल कॉलेज में बच्चों की मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा. बच्चों की मौत मामले में सिम्स के इलाज पर अब सवाल उठने लगे हैं. प्रबंधन मामले में 35 बच्चों की मौत होने की बात कह रहा (child death case in bilaspur cims) है. हालांकि आंकड़े कुछ और कहते हैं. बच्चों की मौत इलाज में लापरवाही के साथ-साथ अन्य कारणों से हुई है.
जनवरी में 60 बच्चों की हुई मौत
मौजूदा स्थिति ये है कि सिम्स मेडिकल कॉलेज में प्रतिदिन दो नावजत की मौत हो रही है. जनवरी माह में लगभग 7 बच्चों की अकाल मृत्यु हुई है. इनमें अधिकांश नवजातों का वजन कम था. सिम्स में रोजाना करीब 2 दर्जन महिलाओं का प्रसव होता है. डिलीवरी के बाद मां, बच्चे को अस्पताल से छुट्टी दे दी जाती है. लेकिन कई बच्चों की हालत गंभीर होने पर उन्हें एनआईसीयू में भर्ती किया जाता है. ऐसे बच्चों को इलाज के लिए सिम्स में अत्याधुनिक एनआईसीयू है. इसके बावजूद जनवरी माह में 60 नवजात बच्चों की मौत हो गई.
हर दिन दो बच्चों की होती है मौत
यहां हर दिन 2 बच्चों की इलाज के दौरान मौत होती है. इससे पहले सिम्स में हर माह करीब 48 मौतें होती थी. लेकिन जनवरी में लगभग 60 शिशुओं की मौत से सभी सकते में आ गए हैं. अचानक मौतों की संख्या बढ़ने से स्वास्थ्य विभाग पर कई सवाल खड़े होने लगे हैं. आश्चर्य की बात ये है कि, आधुनिक एनआईसीयू भी शिशुओं को नहीं बचा पा रहा है. इधर डॉक्टरों का तर्क यह है कि समय के पहले प्रसव होने की वजह से बच्चों की हालत कमजोर होती थी. उनका वजन भी मौत की एक वजह बताई गयी है. डॉक्टरों का कहना है कि मां के कुपोषित होने के कारण शिशु का वजन कम रहता है. शिशु का पूरा विकास नहीं हो पाता है. यह भी एक कारण हो सकता है.
पौष्टिक आहार की कमी
सिम्स मेडिकल कॉलेज की प्रवक्ता डॉ. आरती पांडे (Dr Aarti Pandey Spokesperson of cims Medical College) ने ईटीवी भारत से कहा कि, गर्भवती महिलाओं को पोषित आहार देने की जिम्मेदारी महिला एवं बाल विकास विभाग की है. लेकिन विभाग की कमजोरी है कि, वो इस बात पर ध्यान नहीं देते हैं. इसके कारण कई महिलाएं कुपोषण का शिकार हो जाती हैं. यही कारण है कि शिशुओं का वजन कम रहता है. वह पूरी तरह विकसित नहीं हो पाते. गर्भवती महिलाओं को कुपोषण से बचाने को राज्य सरकार ने कई योजना चला रखी है. इसके अलावा अज्ञानता की वजह से भी महिलाओं को पोषक आहार की जानकारी नहीं रहती. वह गर्भावस्था में पोषक आहार का सेवन नहीं कर पातीं हैं. इस वजह से भी प्रसव के दौरान बच्चों का वजन कम होता है, जिससे भी बच्चों की मौत हो जाती है.
गंभीर हालत में भी भर्ती होते हैं बच्चे
सिम्स मेडिकल कॉलेज में कई बार दूसरे अस्पतालों से रेफर किए बच्चे का इलाज किया जाता है. रेफर में आए बच्चे की स्थिति काफी गंभीर होती है, जिन्हें संभाल पाना बहुत मुश्किल होता है. कई बार निजी अस्पताल में बच्चों का इलाज सही ढंग से नहीं हो पाता है. स्थिति बिगड़ने पर सिम्स रेफर कर दिया जाता है. इसलिए भी बच्चों को सिम्स मेडिकल कॉलेज में रेफर किया जाता है. ऐसी स्थिति में इलाज के दौरान बच्चों की मौत होती है.