बिलासपुर : प्रदेश के संभागों में कांग्रेस के जितने भी कार्यकर्ता सम्मेलन हुए हैं, उसमें गुटबाजी साफ नजर आई है. अलग अलग गुटों के नेताओं को कार्यकर्ता सम्मेलन में खुलकर अपनी बात रखने का मौका दिया गया. उनकी बातों में गुटबाजी की झलक दिखी. जनप्रतिनिधियों को सम्मेलन से दूर रखने और उन पर सम्मेलन की जिम्मेदारी देने से भी नाराजगी दिखी. कहीं संगठन के नेताओं से कार्यकर्ता नाराज नजर आएं तो कहीं संगठन और सत्ता पक्ष के लोगों का एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते नजर आए.
क्या है राजनीति के जानकार का कहना : राजनीति के जानकार राजेश अग्रवाल ने इस बारे में बताया कि '' गुटबाजी जैसी बात तो ज्यादा दिखाई नहीं दे रही है, लेकिन आपसी नाराजगी और मनमुटाव दिख रहा है. जैसे टीएस सिंहदेव के साथ ढाई साल के कार्यकाल की बात रही और मोहन मरकाम भी मुख्यमंत्री के मामले में थोड़ा सा मनमुटाव उनके अंदर भी है. लेकिन इसे सुलझाया जा सकता है.अभी गुटबाजी उतनी चरम पर नहीं पहुंची है. जितनी 15 साल के सरकार नहीं होने के दौरान थी. अभी ऐसा भी नहीं है कि कांग्रेस से टूटकर कोई नया दल बन रहा हो. टीएस सिंहदेव चुनाव लड़ने, नहीं लड़ने को लेकर पहले ही साफ कर दिए हैं. अरविंद नेताम भी पहले से ही अलग हैं, लेकिन कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच दूरी बनी हुई है. यदि ऐसा ही जारी रहा तो आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ सकता है.''
बीजेपी ने कही सत्ता में वापसी की बात : कांग्रेस की आपसी गुटबाजी को लेकर भाजपा के पूर्व महापौर किशोर राय ने कहा कि '' कांग्रेस में शुरू से ही गुटबाजी रही है. यही कारण रहा है कि गुटबाजी की वजह से 15 साल तक राज्य में उनकी सरकार नहीं रही.लेकिन सरकार आने के बाद यह गुटबाजी चरम पर पहुंच गई है. इसके साथ ही आम जनता की अनदेखी भी इन्हें भारी पड़ेगी. जनता भी समझ गई है कि बीजेपी ही प्रदेश का विकास कर सकती है, इसलिए जनता ने मन बना लिया है कि बीजेपी को प्रदेश की सत्ता में बिठाना है.
चुनाव से पहले पार्टियों के लिए सिरदर्द : छत्तीसगढ़ में आगामी कुछ माह में विधानसभा चुनाव होने हैं. चुनाव से पहले दोनों ही पार्टियां कार्यकर्ताओं की बैठक और सम्मेलन आयोजित कर रहीं हैं.लेकिन इन सम्मेलनों में सत्ता पक्ष के नेता इस बात को लेकर नाराज हैं कि उन्हें कार्यकर्ता सम्मेलन की तैयारी की जिम्मेदारी तो दी गई, लेकिन उन्हें सम्मेलन में भाग लेने का मौका नहीं मिला. दूसरी तरफ संगठन के कार्यकर्ता सत्ता पक्ष से नाराज हैं.
क्या मोहब्बत की दुकान से निकलेगा हल :संगठन और सत्ता पक्ष की दूरी अब सार्वजनिक मंचों में भी दिखने लगी है. पिछले दिनों ऐसी आशंकाओं को देखते हुए पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने प्रदेश में मोहब्बत की दुकान तक लगाने की बात कही है. लेकिन क्या मोहब्बत की दुकान लगाने से कार्यकर्ताओं का हुजूम उसके काउंटर पर इकट्ठा होकर खरीदारी करेगा या फिर दुकान के संचालक खाली बैठकर सिर्फ मक्खियां उड़ाते दिखेंगे,इस सवाल का जवाब भविष्य में छिपा है.