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CG Election 2023 जेसीसीजे कितना पहुंचा सकती है नुकसान, क्या 2003 का इतिहास दोहराएगा छत्तीसगढ़ ? - अमित जोगी

CG Election 2023 छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 के लिए अब राजनीति गर्माने लगी है. पिछली बार चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी को लेकर जीत हार की चर्चाएं गर्म रही तो इस बार 2003 के चुनाव की बातें भी लोग करने लगे है.ऐसा इसलिए है क्योंकि 2003 में एनसीपी ने कांग्रेस का खेल बिगाड़ा था.इस बार जेसीसीजे एनसीपी की भूमिका में दिख रही है.Bilaspur Election News

CG Election 2023
जेसीसीजे कितना पहुंचा सकती है नुकसान
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Nov 3, 2023, 9:25 PM IST

Updated : Nov 4, 2023, 2:59 PM IST

क्या एनसीपी की तरह जेसीसीजे पहुंचा सकती है नुकसान ?

बिलासपुर : 2003 में जोगी सरकार को हटाने के लिए पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के बैनर पर पूरे 90 सीटों पर चुनाव लड़वाया था. उसी तरह इस बार भी जेसीसीजे ने पूरे 90 विधानसभा से प्रत्याशी खड़ा किया है. ऐसा माना जा रहा है कि इससे कहीं ना कहीं नुकसान कांग्रेस को होगा. 2003 में पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल कांग्रेस से अलग होकर चुनाव लड़ रहे थे. उन्होंने महाराष्ट्र की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के बैनर तले पूरे 90 विधानसभा में अपने प्रत्याशी खड़े किए थे.

कांग्रेस को हराने में थी अहम भूमिका : 2003 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को कोई खासी सफलता हासिल नहीं हुई थी. मात्र एक सीट चंद्रपुर से नोबेल वर्मा ही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से जीते थे. लेकिन कांग्रेस की अजीत जोगी की सरकार को उखाड़ फेंकने में एनसीपी की अहम भूमिका थी. यही वजह है कि इस बार भी आम जनता जेसीसीजे को लेकर वही सोच रखती है. जनता का मानना है कि यदि 2003 के चुनाव की पुनरावृत्ति होगी तो इस बार भी कांग्रेस को नुकसान हो सकता है, लेकिन इस मामले में राजनीती जानकार कुछ अलग ही कहते हैं.

जेसीसीजे से नुकसान को लेकर संदेह : राजनीती के जानकार निर्मल माणिक का कहना है कि 2003 में एनसीपी ने एक सीट जीती थी. लेकिन जब पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने जेसीसीजे का गठन किया तो उन्होंने बसपा से गठबंधन कर चुनाव लड़ा. जिसका नतीजा ये रहा कि बसपा के दो विधायक बने और उनकी पार्टी ने प्रदेश में पांच सीटों पर कब्जा कर लिया. इस बार की स्थिति कुछ अलग है. इस बार ना तो अजीत जोगी रहे और ना ही जेसीसीजे ने बसपा से गठबंधन किया है. इसके साथ ही न तो देवव्रत सिंह रहे और ना लोरमी विधायक धर्मजीत उनकी पार्टी में है. धर्मजीत सिंह भाजपा में, बलौदा बाजार के विधायक प्रमोद सिंह कांग्रेस में शामिल हो गए है.

रेणू जोगी ही बड़ी प्रत्याशी : निर्मल माणिक की माने तो जेसीसीजे के पास केवल एक ही विधायक रह गई है.वो हैं रेणु जोगी. बाकी लोग पार्टी में नहीं है. अभी जिन लोगों को चुनाव में टिकट दिया गया है. उनमें ज्यादातर कांग्रेस से नाराज लोग ही चुनाव लड़ रहे हैं. पार्टी ने जब उन्हें टिकट नहीं दिया तो वह बगावत कर चुनाव लड़ रहे हैं. उनका उद्देश्य केवल यह है कि उन्हें कांग्रेस को नुकसान पहुंचाना है. जीत और हार से उन्हें कोई लेना देना नहीं है, वैसे भी प्रदेश में बहुत कम ही लोग है जो दलबदलुओ को पसंद करते हैं.

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क्यों 90 सीटों पर खड़े किए प्रत्याशी : राजनीति के जानकार निर्मल मानिक ने यह भी बताया कि इस समय जेसीसीजे के अमित जोगी पूरे 90 विधानसभा में चुनाव में प्रत्याशी इसलिए उतार रहे हैं कि राष्ट्रीयकृत पार्टियों को पूरे चुनाव का 7% वोट की आवश्यकता होती है. जिससे उनकी पार्टी की मान्यता बरकरार रहती है. इस तरह से 2003 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने पूरे 90 विधानसभा में उम्मीदवार खड़े कर 8% वोट हासिल किया था. उसी तरह इस बार भी जेसीसीजे ने 7% वोट पाने के लिए पूरे प्रदेश में उम्मीदवार खड़े किए हैं. अमित जोगी प्रदेश में चुनावों में उन नेताओं को टिकट ज्यादा दिए हैं जो दूसरी पार्टियों से दल बदल कर उनके पास आए हैं. वो चुनाव लड़कर इतना वोट इकट्ठा कर लेंगे कि उनकी पार्टी की मान्यता बरकरार रहेगी. रही बात 2003 के एनसीपी की भूमिका की तो. अब कोई ऐसा नेता उनके पास नहीं बचा है जो सरकार बदलने की भूमिका निभा सके.

क्या एनसीपी की तरह जेसीसीजे पहुंचा सकती है नुकसान ?

बिलासपुर : 2003 में जोगी सरकार को हटाने के लिए पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के बैनर पर पूरे 90 सीटों पर चुनाव लड़वाया था. उसी तरह इस बार भी जेसीसीजे ने पूरे 90 विधानसभा से प्रत्याशी खड़ा किया है. ऐसा माना जा रहा है कि इससे कहीं ना कहीं नुकसान कांग्रेस को होगा. 2003 में पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल कांग्रेस से अलग होकर चुनाव लड़ रहे थे. उन्होंने महाराष्ट्र की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के बैनर तले पूरे 90 विधानसभा में अपने प्रत्याशी खड़े किए थे.

कांग्रेस को हराने में थी अहम भूमिका : 2003 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को कोई खासी सफलता हासिल नहीं हुई थी. मात्र एक सीट चंद्रपुर से नोबेल वर्मा ही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से जीते थे. लेकिन कांग्रेस की अजीत जोगी की सरकार को उखाड़ फेंकने में एनसीपी की अहम भूमिका थी. यही वजह है कि इस बार भी आम जनता जेसीसीजे को लेकर वही सोच रखती है. जनता का मानना है कि यदि 2003 के चुनाव की पुनरावृत्ति होगी तो इस बार भी कांग्रेस को नुकसान हो सकता है, लेकिन इस मामले में राजनीती जानकार कुछ अलग ही कहते हैं.

जेसीसीजे से नुकसान को लेकर संदेह : राजनीती के जानकार निर्मल माणिक का कहना है कि 2003 में एनसीपी ने एक सीट जीती थी. लेकिन जब पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने जेसीसीजे का गठन किया तो उन्होंने बसपा से गठबंधन कर चुनाव लड़ा. जिसका नतीजा ये रहा कि बसपा के दो विधायक बने और उनकी पार्टी ने प्रदेश में पांच सीटों पर कब्जा कर लिया. इस बार की स्थिति कुछ अलग है. इस बार ना तो अजीत जोगी रहे और ना ही जेसीसीजे ने बसपा से गठबंधन किया है. इसके साथ ही न तो देवव्रत सिंह रहे और ना लोरमी विधायक धर्मजीत उनकी पार्टी में है. धर्मजीत सिंह भाजपा में, बलौदा बाजार के विधायक प्रमोद सिंह कांग्रेस में शामिल हो गए है.

रेणू जोगी ही बड़ी प्रत्याशी : निर्मल माणिक की माने तो जेसीसीजे के पास केवल एक ही विधायक रह गई है.वो हैं रेणु जोगी. बाकी लोग पार्टी में नहीं है. अभी जिन लोगों को चुनाव में टिकट दिया गया है. उनमें ज्यादातर कांग्रेस से नाराज लोग ही चुनाव लड़ रहे हैं. पार्टी ने जब उन्हें टिकट नहीं दिया तो वह बगावत कर चुनाव लड़ रहे हैं. उनका उद्देश्य केवल यह है कि उन्हें कांग्रेस को नुकसान पहुंचाना है. जीत और हार से उन्हें कोई लेना देना नहीं है, वैसे भी प्रदेश में बहुत कम ही लोग है जो दलबदलुओ को पसंद करते हैं.

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क्यों 90 सीटों पर खड़े किए प्रत्याशी : राजनीति के जानकार निर्मल मानिक ने यह भी बताया कि इस समय जेसीसीजे के अमित जोगी पूरे 90 विधानसभा में चुनाव में प्रत्याशी इसलिए उतार रहे हैं कि राष्ट्रीयकृत पार्टियों को पूरे चुनाव का 7% वोट की आवश्यकता होती है. जिससे उनकी पार्टी की मान्यता बरकरार रहती है. इस तरह से 2003 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने पूरे 90 विधानसभा में उम्मीदवार खड़े कर 8% वोट हासिल किया था. उसी तरह इस बार भी जेसीसीजे ने 7% वोट पाने के लिए पूरे प्रदेश में उम्मीदवार खड़े किए हैं. अमित जोगी प्रदेश में चुनावों में उन नेताओं को टिकट ज्यादा दिए हैं जो दूसरी पार्टियों से दल बदल कर उनके पास आए हैं. वो चुनाव लड़कर इतना वोट इकट्ठा कर लेंगे कि उनकी पार्टी की मान्यता बरकरार रहेगी. रही बात 2003 के एनसीपी की भूमिका की तो. अब कोई ऐसा नेता उनके पास नहीं बचा है जो सरकार बदलने की भूमिका निभा सके.

Last Updated : Nov 4, 2023, 2:59 PM IST
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