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Crowd Management In Elections :चुनावी मौसम में बढ़ी भीड़ लाने वाले ठेकेदारों की मांग,जानिए क्यों भीड़ वोट में नहीं होती तब्दील

Crowd Management In Elections छत्तीसगढ़ में चुनाव को कुछ ही दिन बचे हैं.ऐसे में चुनावी रैलियों से लेकर नेताओं का दौरा चरम पर होगा.ऐसे में नेताओं के दौरों में जुटने वाली भीड़ को लेकर भी सबका ध्यान होगा. हर बड़ा नेता सभा में जुटने वाली भीड़ को देखने के बाद ये दावा करता है कि आने वाले चुनाव में उसकी पार्टी सत्ता में आएगी.लेकिन क्या ऐसा होता है.आखिर क्यों भीड़ से चुनाव जीतने और हारने का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता.ईटीवी भारत ने अपने एक्सपर्ट से ये जानने की कोशिश की. chhattisgarh Assembly Election 2023

Crowd Management In Elections
चुनावी मौसम में बढ़ी भीड़ लाने वाले ठेकेदारों की मांग
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Oct 12, 2023, 7:32 PM IST

Updated : Oct 13, 2023, 6:16 PM IST

चुनावी मौसम में बढ़ी भीड़ लाने वाले ठेकेदारों की मांग

बिलासपुर : छत्तीसगढ़ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस नेता राहुल और प्रियंका गांधी की बड़ी रैलियां हुईं.इन रैलियों में भीड़ बड़ी तादाद में आई. भीड़ देखने के बाद पार्टियां अपने-अपने पक्ष में दावा करने लगी.लेकिन क्या नेताओं की रैली में जुटने वाली भीड़ चुनाव के दौरान वोटों में कनवर्ट होती है.ये एक बड़ा सवाल है.क्योंकि हमने कई बार देखा है कि भारी भरकम भीड़ लेकर सभा करने वाली पार्टी के प्रत्याशी चुनाव के नतीजों में औंधे मुंह गिर जाते हैं.आखिर ऐसा क्या होता है कि लाखों की संख्या में जुटने वाली भीड़ चुनाव के समय अपना मन बदल देती है.

भीड़ और चुनाव का कनेक्शन : चुनाव के दौरान यदि किसी बड़े नेता की सभा आयोजित की जाती है तो रैली के दौरान ये माना जाता है कि उसे देखने और सुनने के लिए भारी संख्या में भीड़ जुटेगी.लेकिन हर बार ऐसा नहीं होता.क्योंकि कई बार भीड़ को इकट्ठा करने के लिए मैनेजमेंट का सहारा लेना पड़ता है.यानी किसी खास जगह की खास रैली में भीड़ को जुटाया जाता है.भीड़ इकट्ठा करने के लिए उनके आने जाने से लेकर खाने तक का इंतजाम पार्टियां करती हैं.कई बार मजदूरों को इकट्ठा करके उन्हें एक दिन के हिसाब से मजदूरी दी जाती है.ताकि वो सभा में डटे रहे.भले ही वो किसी भी पक्ष में वोट डाले.लेकिन मौजूदा समय में संंबंधित पार्टी की रैली का हिस्सा बनते हैं.

कैसे होता है भीड़ का मैनेजमेंट ? : राजनीतिक पार्टियों की सभाओं में भीड़ के रूप को देखकर अंदाजा लगाया जाता है कि प्रत्याशी को कितने प्रतिशत वोट पड़ेंगे. चुनावी सीजन आते ही इसलिए भीड़ को लेकर अलग बिजनेस शुरु होता है. इस बिजनेस में लोग बिना किसी लागत के कमीशन के रूप में बड़ी राशि कमाते हैं.ऐसे लोगों से कई राजनीतिक पार्टियां संपर्क करती है.इन लोगों की ग्रामीण से लेकर शहरी क्षेत्रों तक अच्छी पैठ मानी जाती है.इन लोगों के कहने पर ही लोग अपना सारा काम छोड़कर किसी भी रैली के लिए इकट्ठा हो जाते हैं.इस काम में व्यक्ति विशेष के हिसाब से पैसा तय किया जाता है.

भीड़ इकट्ठा करने के लिए करनी पड़ती है जेब ढीली : राजनीतिक पार्टियों के लिए भीड़ इकट्ठा करने वाले लोगों को इसके लिए अच्छा पैसा भी मिल जाता है.ऐसे ही एक शख्स ने बिना नाम बताए भीड़ इकट्ठा करने के बारे में जानकारी दी. इस काम को करने वाले शख्स ने बताया कि राजनीतिक सभाओं और रैलियों में भीड़ इकट्ठा करने के लिए संपर्क किया जाता है. फिर ग्रामीण इलाकों के लोगों को तैयार कर पार्टियों की भेजी हुई गाड़ियों में रैली स्थल तक ले जाया जाता है.सभा खत्म हो जाने पर सभी लोगों की हाजिरी लेकर गाड़ी में बिठाया जाता है.फिर सबको एक दिन की रोजी के हिसाब से पेमेंट किया जाता है.

क्या भीड़ वोट में होती है तब्दील ? : राजनीति के जानकार निर्मल माणिक के मुताबिक बिलासपुर में हाल फिलहाल में देश के तीन बड़े नेताओं की आमसभा हुई थी. तीनों में एक लाख की भीड़ का दावा किया गया था .लगभग 50 से 80 हजार तक की भीड़ तीनों आमसभा में पहुंची थी. लेकिन इस भीड़ से यह आकलन नहीं किया जा सकता की जितनी भीड़ आमसभा में पहुंची है उसका पूरा वोट उसे पार्टी को मिल जाएगा.

''ज्यादातर भीड़ वोट पर तब्दील नहीं होती. इस भीड़ का कोई पार्टी विशेष से लगाव नहीं होता. कई बार यह भीड़ आने वाले नेता को देखना चाहती है तो कई बार पार्टी के कार्यों और कार्यक्रम के अनुसार आते हैं.'' निर्मल माणिक,राजनीति के जानकार

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बिलासपुर में आप पार्टी के दिल्ली और पंजाब के मुख्यमंत्री को देखने लोग पहुंचे थे जिनमे पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ बिलासपुर के बाहर के लोग थे.वहीं कांग्रेस के राहुल गांधी और पीएम मोदी की सभा भी हुई थी. इसमें आने वाले 80 फीसदी लोग ऐसे थे जिन्हें पार्टी से कोई लेना देना नहीं था.ये सभी मैनेजमेंट के तहत बुलाई गई भीड़ थी.जिनके खाने तक का इंतजाम पार्टी ने किया था.ऐसे में भीड़ वोट में कनवर्ट नहीं होती.

चुनावी मौसम में बढ़ी भीड़ लाने वाले ठेकेदारों की मांग

बिलासपुर : छत्तीसगढ़ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस नेता राहुल और प्रियंका गांधी की बड़ी रैलियां हुईं.इन रैलियों में भीड़ बड़ी तादाद में आई. भीड़ देखने के बाद पार्टियां अपने-अपने पक्ष में दावा करने लगी.लेकिन क्या नेताओं की रैली में जुटने वाली भीड़ चुनाव के दौरान वोटों में कनवर्ट होती है.ये एक बड़ा सवाल है.क्योंकि हमने कई बार देखा है कि भारी भरकम भीड़ लेकर सभा करने वाली पार्टी के प्रत्याशी चुनाव के नतीजों में औंधे मुंह गिर जाते हैं.आखिर ऐसा क्या होता है कि लाखों की संख्या में जुटने वाली भीड़ चुनाव के समय अपना मन बदल देती है.

भीड़ और चुनाव का कनेक्शन : चुनाव के दौरान यदि किसी बड़े नेता की सभा आयोजित की जाती है तो रैली के दौरान ये माना जाता है कि उसे देखने और सुनने के लिए भारी संख्या में भीड़ जुटेगी.लेकिन हर बार ऐसा नहीं होता.क्योंकि कई बार भीड़ को इकट्ठा करने के लिए मैनेजमेंट का सहारा लेना पड़ता है.यानी किसी खास जगह की खास रैली में भीड़ को जुटाया जाता है.भीड़ इकट्ठा करने के लिए उनके आने जाने से लेकर खाने तक का इंतजाम पार्टियां करती हैं.कई बार मजदूरों को इकट्ठा करके उन्हें एक दिन के हिसाब से मजदूरी दी जाती है.ताकि वो सभा में डटे रहे.भले ही वो किसी भी पक्ष में वोट डाले.लेकिन मौजूदा समय में संंबंधित पार्टी की रैली का हिस्सा बनते हैं.

कैसे होता है भीड़ का मैनेजमेंट ? : राजनीतिक पार्टियों की सभाओं में भीड़ के रूप को देखकर अंदाजा लगाया जाता है कि प्रत्याशी को कितने प्रतिशत वोट पड़ेंगे. चुनावी सीजन आते ही इसलिए भीड़ को लेकर अलग बिजनेस शुरु होता है. इस बिजनेस में लोग बिना किसी लागत के कमीशन के रूप में बड़ी राशि कमाते हैं.ऐसे लोगों से कई राजनीतिक पार्टियां संपर्क करती है.इन लोगों की ग्रामीण से लेकर शहरी क्षेत्रों तक अच्छी पैठ मानी जाती है.इन लोगों के कहने पर ही लोग अपना सारा काम छोड़कर किसी भी रैली के लिए इकट्ठा हो जाते हैं.इस काम में व्यक्ति विशेष के हिसाब से पैसा तय किया जाता है.

भीड़ इकट्ठा करने के लिए करनी पड़ती है जेब ढीली : राजनीतिक पार्टियों के लिए भीड़ इकट्ठा करने वाले लोगों को इसके लिए अच्छा पैसा भी मिल जाता है.ऐसे ही एक शख्स ने बिना नाम बताए भीड़ इकट्ठा करने के बारे में जानकारी दी. इस काम को करने वाले शख्स ने बताया कि राजनीतिक सभाओं और रैलियों में भीड़ इकट्ठा करने के लिए संपर्क किया जाता है. फिर ग्रामीण इलाकों के लोगों को तैयार कर पार्टियों की भेजी हुई गाड़ियों में रैली स्थल तक ले जाया जाता है.सभा खत्म हो जाने पर सभी लोगों की हाजिरी लेकर गाड़ी में बिठाया जाता है.फिर सबको एक दिन की रोजी के हिसाब से पेमेंट किया जाता है.

क्या भीड़ वोट में होती है तब्दील ? : राजनीति के जानकार निर्मल माणिक के मुताबिक बिलासपुर में हाल फिलहाल में देश के तीन बड़े नेताओं की आमसभा हुई थी. तीनों में एक लाख की भीड़ का दावा किया गया था .लगभग 50 से 80 हजार तक की भीड़ तीनों आमसभा में पहुंची थी. लेकिन इस भीड़ से यह आकलन नहीं किया जा सकता की जितनी भीड़ आमसभा में पहुंची है उसका पूरा वोट उसे पार्टी को मिल जाएगा.

''ज्यादातर भीड़ वोट पर तब्दील नहीं होती. इस भीड़ का कोई पार्टी विशेष से लगाव नहीं होता. कई बार यह भीड़ आने वाले नेता को देखना चाहती है तो कई बार पार्टी के कार्यों और कार्यक्रम के अनुसार आते हैं.'' निर्मल माणिक,राजनीति के जानकार

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Last Updated : Oct 13, 2023, 6:16 PM IST
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