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खतरे में कलचुरी काल की धरोहर

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Published : May 27, 2022, 1:40 PM IST

Updated : May 27, 2022, 4:36 PM IST

कलचुरी वंश छत्तीसगढ़ के इतिहास का स्वर्ण काल रहा है. कलचुरी वंश ने छत्तीसगढ़ में राज किया था. कल्चुरियों वंश के राजपूतों ने भारत के अलग-अलग स्थानों पर शासन किया. कल्चुरियों के कई शाखाएं थी, जिसमें छत्तीसगढ़ में रतनपुर और रायपुर में शाखाएं स्थापित हुई. इनके कलाकृतियां और प्रतिमाएं को जिला पुरात्तव विभाग में सुरक्षित रखी गई है, लेकिन पुराने भवन जर्जर हो गया है. पढ़ें पूरी रिपोर्ट...

Bilaspur Archaeological Department
बिलासपुर पुरात्तव विभाग संग्रहालय जर्जर

बिलासपुर: कलचुरी वंश छत्तीसगढ़ के इतिहास का स्वर्ण काल रहा है. कलचुरी वंश ने छत्तीसगढ़ में लगभग 9 सदी तक राज किया. इसका इतिहास स्वर्ण काल के रुप में कहा जाता है. इस वंश के राजाओं ने छत्तीसगढ़ के राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक को पोषित और उन्नत किया है. कल्चुरियों वंश के राजपूतों ने भारत के अलग-अलग स्थानों पर शासन किया. कल्चुरियों के कई शाखाएं थी, जिसमें छत्तीसगढ़ में रतनपुर और रायपुर में शाखाएं स्थापित हुई. खुदाई में मिलने वाले पुरातनकाल की प्रतिमाओं और कलाकृतिओं सहित कई बेशकीमती वस्तुओं को सहेजने और नई पीढ़ी को पुरातनकाल के अवशेषों को दिखाने के लिए प्रदेश में पुरात्तव विभाग काम करता है. बिलासपुर में भी पुरातत्व संग्रहालय स्थित है. जिला पुरातत्व संग्रहालय में रतनपुर, मल्हार, कोटा और कई जगहों की खुदाई में मिले प्रतिमाएं और कलाकृतियां रखी गई है.

खतरे में कलचुरी काल की धरोहर

नगर निगम के पुराने भवन टाउन हॉल जर्जर: जिला पुरातत्व संग्रहालय नगर निगम के पुराने भवन टाउन हॉल के एक खाली पड़े हॉल में बनाया गया है. इतना जर्जर हो गया है कि इसका सीलिंग कभी भी गिर सकता है. पुराने समय में छत ईटों का बनाया जाता था और पुरातत्व संग्रहालय की छत भी ईटों की है. अब पुराने होने की वजह से गिरने लगा है. छत में लगा सीमेंट गिर गया है और इंट साफ नजर आ रहा है. बेशकीमती प्रतिमाएं और कलाकृतियां खतरे में नजर आ रही हैं. कभी भी हादसा होगा तो संग्रहालय में रखे पुरातनकाल की प्रतिमाएं खंडित हो सकती है.

यह भी पढ़ें: छत्तीसगढ़ के इस जिले में पैदा होते हैं इंटरनेशनल खिलाड़ी

कलचुरी काल की प्रतिमाएं संग्राहलय में रखी गई है: बिलासपुर जिला की पुरातत्व संग्रहालय में कलचुरी काल की प्रतिमाएं, देवी देवताओं की प्रतिमाएं की कई कलाकृति रखी हुई है. यह ज्यादातर रतनपुर क्षेत्र में की गई. खुदाई से प्राप्त हुई थी. इसके अलावा मलहार, तालागांव, और बिलासपुर के कई इलाकों की प्रतिमाएं है. रतनपुर में हुई खुदाई में इंद्र देवता के अलावा कई देवियों की प्रतिमाएं है. साथ ही संभोग लीलाओं को भी प्रतिमाओं के माध्यम से दर्शाए गए. कलाकृतियां रखी हुई है. कलचुरी काल के राजाओं द्वारा निर्मित देवी देवताओं की प्रतिमाएं जो काले और लाल पत्थर से निर्मित है, उन्हें भी यहां रखा गया है. भवन की जर्जर स्थिति देख कर लगता है कि विभाग को इनकी चिंता ही नहीं है.

संग्रहालय के जर्जर स्थिति पर क्या कहते है अधिकारी: जिला पुरातत्व संग्रहालय जिस भवन से संचालित है. वह काफी जर्जर हो चुका है और स्थिति ऐसी है कि वह कभी भी गिर सकता है. ऐसे में अधिकारियों की माने तो बिलासपुर जिला पुरातत्व के अधिकारी डीएस ध्रुव ने बताया कि मैंने कई बार प्रयास किया है. संग्रहालय को तो कम से कम एक हॉल मिल चुका है, लेकिन कार्यालय अभी भी किराए के भवन से संचालित होता है. मैंने अपने स्तर से शासन स्तर पर जानकारी दी है. लेकिन शासन इस ओर ध्यान नहीं देता. राज्य शासन संग्रहालय के लिए एक भवन भी उपलब्ध नहीं करा रहा है. ऐसे में मैं भी मानता कि कलचुरी काल की प्रतिमाएं खतरे में तो हैं, लेकिन मैं इसके लिए कुछ कर नहीं पा रहा हूं.

देश में कब से कब तक था कलचुरी काल: भारत में कलचुरी नरेशो ने 550 ईस्वी से 1750 ईस्वी तक राज किया था. उत्तर तथा दक्षिण के प्रदेशों में अपना राज्य स्थापित किया था. इस वंश की स्थापना वामनराजदेव ने किया था. इस वंश के आदि पुरुष के रूप में कृष्ण राजदेव को माना जाता है. यह पूर्णता त्रिपुरी के निवासी थे. इन्हें कलचुरी के अलावा प्राचीन समय में अलग-अलग नामों से जाना गया है. कटचुरी, सहस्त्रार्जुन, कालतसुरी हैहय, चेदियनरेश आदि नामों से जाने जाते हैं. कलचुरी राजवंश प्राचीनतम राजवंशों में से एक है. इनका प्राचीन स्थान महिष्मति और बाद में त्रिपुरी वर्तमान में तेवर है. इसी त्रिपुरी राजवंश के एक लहोली शाखा के कालांतर में छत्तीसगढ़ में राज स्थापित किया गया था.

बिलासपुर: कलचुरी वंश छत्तीसगढ़ के इतिहास का स्वर्ण काल रहा है. कलचुरी वंश ने छत्तीसगढ़ में लगभग 9 सदी तक राज किया. इसका इतिहास स्वर्ण काल के रुप में कहा जाता है. इस वंश के राजाओं ने छत्तीसगढ़ के राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक को पोषित और उन्नत किया है. कल्चुरियों वंश के राजपूतों ने भारत के अलग-अलग स्थानों पर शासन किया. कल्चुरियों के कई शाखाएं थी, जिसमें छत्तीसगढ़ में रतनपुर और रायपुर में शाखाएं स्थापित हुई. खुदाई में मिलने वाले पुरातनकाल की प्रतिमाओं और कलाकृतिओं सहित कई बेशकीमती वस्तुओं को सहेजने और नई पीढ़ी को पुरातनकाल के अवशेषों को दिखाने के लिए प्रदेश में पुरात्तव विभाग काम करता है. बिलासपुर में भी पुरातत्व संग्रहालय स्थित है. जिला पुरातत्व संग्रहालय में रतनपुर, मल्हार, कोटा और कई जगहों की खुदाई में मिले प्रतिमाएं और कलाकृतियां रखी गई है.

खतरे में कलचुरी काल की धरोहर

नगर निगम के पुराने भवन टाउन हॉल जर्जर: जिला पुरातत्व संग्रहालय नगर निगम के पुराने भवन टाउन हॉल के एक खाली पड़े हॉल में बनाया गया है. इतना जर्जर हो गया है कि इसका सीलिंग कभी भी गिर सकता है. पुराने समय में छत ईटों का बनाया जाता था और पुरातत्व संग्रहालय की छत भी ईटों की है. अब पुराने होने की वजह से गिरने लगा है. छत में लगा सीमेंट गिर गया है और इंट साफ नजर आ रहा है. बेशकीमती प्रतिमाएं और कलाकृतियां खतरे में नजर आ रही हैं. कभी भी हादसा होगा तो संग्रहालय में रखे पुरातनकाल की प्रतिमाएं खंडित हो सकती है.

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कलचुरी काल की प्रतिमाएं संग्राहलय में रखी गई है: बिलासपुर जिला की पुरातत्व संग्रहालय में कलचुरी काल की प्रतिमाएं, देवी देवताओं की प्रतिमाएं की कई कलाकृति रखी हुई है. यह ज्यादातर रतनपुर क्षेत्र में की गई. खुदाई से प्राप्त हुई थी. इसके अलावा मलहार, तालागांव, और बिलासपुर के कई इलाकों की प्रतिमाएं है. रतनपुर में हुई खुदाई में इंद्र देवता के अलावा कई देवियों की प्रतिमाएं है. साथ ही संभोग लीलाओं को भी प्रतिमाओं के माध्यम से दर्शाए गए. कलाकृतियां रखी हुई है. कलचुरी काल के राजाओं द्वारा निर्मित देवी देवताओं की प्रतिमाएं जो काले और लाल पत्थर से निर्मित है, उन्हें भी यहां रखा गया है. भवन की जर्जर स्थिति देख कर लगता है कि विभाग को इनकी चिंता ही नहीं है.

संग्रहालय के जर्जर स्थिति पर क्या कहते है अधिकारी: जिला पुरातत्व संग्रहालय जिस भवन से संचालित है. वह काफी जर्जर हो चुका है और स्थिति ऐसी है कि वह कभी भी गिर सकता है. ऐसे में अधिकारियों की माने तो बिलासपुर जिला पुरातत्व के अधिकारी डीएस ध्रुव ने बताया कि मैंने कई बार प्रयास किया है. संग्रहालय को तो कम से कम एक हॉल मिल चुका है, लेकिन कार्यालय अभी भी किराए के भवन से संचालित होता है. मैंने अपने स्तर से शासन स्तर पर जानकारी दी है. लेकिन शासन इस ओर ध्यान नहीं देता. राज्य शासन संग्रहालय के लिए एक भवन भी उपलब्ध नहीं करा रहा है. ऐसे में मैं भी मानता कि कलचुरी काल की प्रतिमाएं खतरे में तो हैं, लेकिन मैं इसके लिए कुछ कर नहीं पा रहा हूं.

देश में कब से कब तक था कलचुरी काल: भारत में कलचुरी नरेशो ने 550 ईस्वी से 1750 ईस्वी तक राज किया था. उत्तर तथा दक्षिण के प्रदेशों में अपना राज्य स्थापित किया था. इस वंश की स्थापना वामनराजदेव ने किया था. इस वंश के आदि पुरुष के रूप में कृष्ण राजदेव को माना जाता है. यह पूर्णता त्रिपुरी के निवासी थे. इन्हें कलचुरी के अलावा प्राचीन समय में अलग-अलग नामों से जाना गया है. कटचुरी, सहस्त्रार्जुन, कालतसुरी हैहय, चेदियनरेश आदि नामों से जाने जाते हैं. कलचुरी राजवंश प्राचीनतम राजवंशों में से एक है. इनका प्राचीन स्थान महिष्मति और बाद में त्रिपुरी वर्तमान में तेवर है. इसी त्रिपुरी राजवंश के एक लहोली शाखा के कालांतर में छत्तीसगढ़ में राज स्थापित किया गया था.

Last Updated : May 27, 2022, 4:36 PM IST
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