बिलासपुर: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में डेंगू (dengue) कहर बनकर बरप रहा है. वहीं, बिलासपुर (Bilaspur)में लगातार डेंगू के मामलों में इजाफा (Increase in dengue cases) देखने को मिल रहा है. बिलासपुर मेडिकल साइंस (Bilaspur Medical Science) ने ये प्रूफ किया है कि कोई भी मच्छर 6 सप्ताह से दो माह तक ही जिंदा रहते है और डेंगू के मच्छर(dengue mosquito) जुलाई से सितंबर तक ही जिंदा रहते है. अगर ऐसा है तो फिर क्यों इस समय डेंगू के मरीज (dengue patients) मिल रहे है.
बारिश में अचानक बढ़ जाते हैं मच्छर
दरअसल, बारिश (Rain) के बाद मच्छरों का प्रकोप अचानक बढ़ जाता है. वहीं, बरसाती मच्छरों (rain mosquitoes) से कई मौसमी बीमारियां होती है. कई बीमारी तो जानलेवा भी होती है. इस समय डेंगू के प्रकोप खत्म हो जाते है. हालांकि बिलासपुर में डेंगू (dengue in bilaspur) के मरीज अब भी मिलने से स्थिति चिंताजनक है. जिस तरह मरीज की संख्या कम ज्यादा हो रही है, ये चिंताजनक है.
कचरों में रहती है मच्छरों की फौज
बताया जा रहा है कि बिलासपुर में शहर और ग्रामीण इलाकों में इस समय मच्छरों की फौज आ गई है. नालों के साथ ही कचरों में मच्छरों की फौज रहती है और शाम को ये घरों और मकानों में घुसकर लोगों को अपना निशाना बनाती है. लोग मच्छरों के प्रकोप से परेशान तो हैं ही साथ ही अब इनके काटने से लोग बीमार पड़ने लगे है. इस समय जिले में मच्छरों के काटने से डेंगू बीमारी फैली हुई है.
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जिले में 12 मरीज एक्टिव
वहीं, अगर बात आकड़ों की करें तो भले ही जिले में डेंगू के 12 एक्टिव मरीज (active Dengue patients) है, लेकिन आखिर ये मच्छर अभी तक जिंदा कैसे है. मेडिकल साइंस ने ये प्रूफ किया है कि 1 मच्छर 6 सप्ताह से 2 महीने तक ही जिंदा रहते है. डेंगू के मच्छर का जुलाई से सितंबर तक ही प्रकोप रहता है, तो फिर अभी डेंगू के मरीज क्यों मिल रहे है?
यूं अंडा से बनता है लार्वा
इस मामले में सिम्स मेडिकल कॉलेज वयरोलॉजिस्ट डॉक्टर रेखा गोन्नाडे से इटीवी भारत ने बातचीत की, तो उन्होंने बताया कि डेंगू के मच्छर का हमला जुलाई से सितंबर तक ही रहता है. इस समय मरीज मिलते है लेकिन डेंगू सहित अन्य मच्छर भले ही दो महीना जिंदा रहते है . इनके प्रजनन भी इन्हीं महीनों में होते हैं. यानी मच्छर बारिश के समय निषेचन क्रिया करते है और इनकी मादा कही भी अंडा दे देती है. मादा मच्छर नालियों के अलावा कचरा या कूलर, ऐसे समान जिनमे पानी भरता हो और सड़क किनारे, दीवार किनारे कही भी अंडा दे देती है. जब मादा मच्छर अंडा देती है तब ये अंडे अगर पानी वाली जगह या नाली में देती है, तो उससे लार्वा बनने लगता है लेकिन जब सूखे जगह में मच्छर के अंडे होते है तो वो अंडे हाइबरनेशन में चले जाते है और बारिश का पानी पड़ने पर वो अंडे ताजा हो जाते है और अगर वो पानी लंबे समय तक एक जगह जमा हो जाए तो इससे लार्वा बनकर वो मच्छर बन जाते है.
बेमौसम बारिश से पनपते हैं मच्छर
इस बारे में वयरोलॉजित ने बताया कि मच्छर जब सूखे जगह में अंडे देते है तो वो हाइबरनेशन में चले जाते है और बारिश के अलावा बेमौसम बारिश भी मच्छरों की तादात बढ़ाने में जिम्मेदार होते है. क्योंकि जैसे ही अंडों को पानी मिला वो बहकर नाली या कही भी लंबे समय तक जमा हुए तो अंडे लार्वा बनने के प्रोसेस को शुरू कर देता है. फिर लार्वा से मच्छर बन जाते है. कभी-कभी घर के छतो या कूलर या फिर कही भी लंबे समय तक पानी जमा हुआ मतलब वह मच्छर पनपने लगेगा. यही कारण है कि मच्छर कभी पूरी तरह खत्म नही होता और इनकी तादात हमेशा बढ़ते रहती है.
इस मामले में स्थानीय प्रशासन जिम्मेदार
बताया जा रहा है कि मच्छरों की बढ़ती संख्या का जिम्मेदार स्थानीय प्रशासन भी कुछ हद तक होती है. क्योंकि स्थानीय प्रशासन की जिम्मेदारी होती है कि वह लार्वा कंट्रोल करने व्यवस्थित लार्वा कंट्रोल लिक्विड नालियों में डालते रहें और इसके अलावा साफ-सफाई के साथ ही पानी भरने वाले जगह को भी मिट्टी डालकर समतल करें. ताकि पानी भरने की गुंजाइश ना हो.
मुद्दे में सियासत जारी
वहीं, इस मामले में सियासत भी चरम पर है. निगम प्रशासन में इस समय कांग्रेस की सरकार सत्ता काबीज है और लार्वा कंट्रोल के लिए स्थानीय प्रशासन ने अब प्रयास करना भी बंद कर दिया है. यहां सारे कार्य कागजों में तो जरूर होते हैं, लेकिन कभी धरातल पर दिखते नहीं. इस मामले में नगर निगम के उपनेता प्रतिपक्ष राजेश सिंह ने कहा कि लार्वा कंट्रोल का काम निगम केवल दिखावे का कर रही है. ना तो मच्छरों के लार्वा कंट्रोल हो रहे हैं और ना ही शहरवासियों को सुकून मिल पा रहा है. इसी मामले में भाजपा के पूर्व महापौर किशोर राय ने भी निगम प्रशासन पर आरोप लगाते हुए कहा कि अगर लार्वा कंट्रोल होता तो क्या शहरवासी डेंगू जैसी बीमारियों से नहीं जूझते रहते. यानी कि दोनों पार्टि इस मुद्दे पर एक दूसरे को आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं. हालांकि समाधान की ओर किसी का भी ध्यान नहीं है.