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VIDEO: यहां आज भी झिरिया का पानी पीने को मजबूर हैं लोग

जिले के गंगालूर के पहाडियों में एक ऐसा गांव बसा है. जंहा के लोग झिरिया का पानी पीकर अपनी प्यास बुझा रहे हैं.

झिरिया का पानी पीकर बुझा रहे प्यास
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Published : Jul 12, 2019, 9:43 AM IST

Updated : Jul 12, 2019, 12:43 PM IST

बीजापुर: सुदूर जंगलों के बीज गंगालूर की पहाड़ियों में बसा एडसमेटा गांव आजादी के 70 साल बाद भी विकास से काफी दूर है. यहां न तो नक्सलियों ने विकास होने दिया और न सरकार ने यहां के लोगों को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए किसी तरह की कोई कोशिश की.

वीडियो

बीहड़ में बसे इस गांव में लोगों को पीने के लिए साफ पानी तक नहीं है. शिक्षा, स्वास्थ्य और मकान तो यहां के लोगों के लिए एक सपने जैसा है. गांव के लोग आज भी जंगल में बने एक झिरिया से अपनी प्यास बुझा रहे हैं.

साफ पानी पीने को नसीब नहीं
इलाके में नक्सली आये दिन अपनी कायराना करतूतों को अंजाम देते रहते हैं, इसके कारण सरकार की योजनाएं यहां पहुंचने में नाकाम साबित हो रही है. इस गांव में एक भी बोरिंग नहीं है, जिससे लोगों को साफ पानी मिल सके. ग्रामीण बताते हैं कुछ साल पहले यहां एक बोरिंग लगाया गया था, लेकिन बीते कई सालों से बोरिंग खराब है. जिसपर कोई ध्यान नहीं दे रहा है.

पढ़ें: VIRAL VIDEO : नक्सली और ग्रामीण के बीच सेतू न जाए टूट, दे रहे रोजगार का प्रलोभन

नेताओं को पता है गांव की दुर्दशा
इस गांव में 6 साल पहले पुलिस-नक्सली मुठभेड़ हुई थी, जिसके बाद इस गांव को लोग अच्छी तरह से जानने लगे. इसी दौरान 2013 में कांगेस के कई बड़े नेता भी यहां पहुंचे थे, लेकिन नेताओं ने गांव की समस्याओं को देखकर चुपचाप लौट आये और आज तक कुछ नहीं किया.

बीजापुर: सुदूर जंगलों के बीज गंगालूर की पहाड़ियों में बसा एडसमेटा गांव आजादी के 70 साल बाद भी विकास से काफी दूर है. यहां न तो नक्सलियों ने विकास होने दिया और न सरकार ने यहां के लोगों को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए किसी तरह की कोई कोशिश की.

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बीहड़ में बसे इस गांव में लोगों को पीने के लिए साफ पानी तक नहीं है. शिक्षा, स्वास्थ्य और मकान तो यहां के लोगों के लिए एक सपने जैसा है. गांव के लोग आज भी जंगल में बने एक झिरिया से अपनी प्यास बुझा रहे हैं.

साफ पानी पीने को नसीब नहीं
इलाके में नक्सली आये दिन अपनी कायराना करतूतों को अंजाम देते रहते हैं, इसके कारण सरकार की योजनाएं यहां पहुंचने में नाकाम साबित हो रही है. इस गांव में एक भी बोरिंग नहीं है, जिससे लोगों को साफ पानी मिल सके. ग्रामीण बताते हैं कुछ साल पहले यहां एक बोरिंग लगाया गया था, लेकिन बीते कई सालों से बोरिंग खराब है. जिसपर कोई ध्यान नहीं दे रहा है.

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नेताओं को पता है गांव की दुर्दशा
इस गांव में 6 साल पहले पुलिस-नक्सली मुठभेड़ हुई थी, जिसके बाद इस गांव को लोग अच्छी तरह से जानने लगे. इसी दौरान 2013 में कांगेस के कई बड़े नेता भी यहां पहुंचे थे, लेकिन नेताओं ने गांव की समस्याओं को देखकर चुपचाप लौट आये और आज तक कुछ नहीं किया.

Intro:झारी के पानी से गुजारते है दिन
बीजापुर - जिले में माओवादियों द्वारा आए दिन घटनाओं को अंजाम देकर माओवादी प्रभावित जिला के नाम से जानने वाले जिले में एडसमेटा ऐसा जगह है जहां पर लोग झीरा के पानी से जिंदगी गुजारते हैं ।एडसमेटा गांव में आज तक बोरिंग नहीं लगा और जो बोरिंग पहले लगा था वह कई वर्षों से खराब पड़ा है ।


Body:इस गांव में करीब 6 वर्ष पूर्व पुलिस नक्सली मुठभेड हुआ था उस घटना के बाद से छत्तीसगढ़ में एडसमेटा नाम से जानने लग गए है ।2013 में कांगेस के बड़े बड़े नेता पहाड़ियां चढ इस गांव तक पहुंचे।इस गांव में कोई भी मूलभूत सुविधा नही है।जिले से करीब 35 किमी दूर गंगालूर से आगे पहाड़ियों में बसा गांव एड्समेटा में बसे आदिवासी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है।राशन पानी लेने करीब 15 किलो मीटर चल कर आना पड़ता है ।

Conclusion:खेती का काम कम हो पाता है फसल कम होता है । टोरा,महुआ व तेंदूपत्ता ही से पूरी ज़िंदगी गुजरने का मुख्य साधन है ।इस गांव में पिने के पानी के एक भी हेंड पम्प नही है ।बारिश में पानी से भरा झारी से जिंदगी गुजारने मझबूर है

बाईट - सम्मेया..ग्रामीण
Last Updated : Jul 12, 2019, 12:43 PM IST
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